इलाज को तरसते कुष्ठ रोगी घिसट-घिसट कर जीवन जी रहे
सीहोर 8 फरवरी (आनन्द गांधी) । प्रदेश में कुष्ठ रोग का पूरी तरह उन्मूलन हो चुका है। इसलिये अब प्रदेश में कुष्ठ चिकित्सालयों की कोई आवश्यकता ही नहीं है। यह कुतर्क देकर दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में सीहोर सहित प्रदेश में कार्यरत कुष्ठ चिकित्सालय बंद कर दिये गये थे और सीहोर कुष्ठ चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को उजैन की किसी स्वयंसेवी संस्था को सौंप दिया गया था। जहाँ से यह कुष्ठ रोगी घबराकर और बीमारी से परेशान होकर कुछ समय बाद ही सीहोर लौट आये थे और फिर दर-दर की ठोकरें खाते हुए भीख मांग कर अपना गुजारा करने को मजबूर हो गये। इसके बावजूद एक तरफ कुष्ठ चिकित्सालय अधिकारी का पद व पूरा कार्यालयीन कर्मचारी मण्डल का उपयोग नहीं हो रहा ? कुष्ठ चिकित्सालय भवन पर कब्जा हो रहा है ? लेकिन कथनी-करनी में अंतर करते हुए शिवराज सरकार ने गत दिवस प्रशिक्षु नर्स युवतियों से कुष्ठ अधिकारियों के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि को कुष्ठ निवारण दिवस के रुप में मनाते हुए शहर के प्रमुख मार्गों से रैली निकालकर कुष्ठ रोग को जड से समाप्त करने का संकल्प दोहराया बल्कि 31 जनवरी से लेकर 20 फरवरी तक कुष्ठ जन जाग्रति अभियान भी चलाया जा रहा है ? प्रश् उठता है कि जब कुष्ठ रोग का उन्मूलन ही हो चुका है ? कुष्ठ चिकित्सालय ही बंद कर दिया गया है ? तो यह कौन-से कुष्ठ रोग को जड़ से समाप्त करने के नारे लगाये जा रहे हैं ? तो फिर किस प्रकार कुष्ठ रोग को लेकर जनता को चेताया जा रहा है ? इस हिन्दुराष्ट्र में सबसे बुरा रोग कुष्ठ रोग माना जाता है और उसी को लेकर दो मुँही कार्यप्रणाली सरकार द्वारा चलाई जा रही है। आखिर सरकार क्या चाहती है......कुष्ठ रोग के संबंध में चल रही इस कार्यप्रणाली पर प्रस्तुत है फुरसत की विशेष खबर।
गोर फरमाईये कि प्रदेश में कुष्ठ रोग चिकित्सालय बकायदा स्थापित थे और अनेक कुष्ठ रोगी इन चिकित्सालयों में इलाज भी करवा रहे थे। हालांकि चिकित्सालय गिनती मात्र 4-5 ही थे लेकिन पूरे प्रदेश के लिये यह पर्याप्त थे। एक समय अचानक दिग्विजय सिंह सरकार के समय कहा गया कि पूरे प्रदेश से अब कुष्ठ रोग समाप्त हो चुका है और इसलिये कुष्ठ चिकित्सालय बंद किये जाना चाहिये और तत्काल चिकित्सालय बंद भी कर दिये गये। सीहोर में इसको लेकर विरोध भी हुआ और कहा गया कि इसकी आवश्यकता है लेकिन फिर भी किसी नहीं सुनी ।
जहाँ कुष्ठ रोगियों को प्रतिदिन सीहोर से समाजसेवी जन किसी भी आयोजन के समय याद कर ही लेते थे। लोग अपने जन्मदिन पर भी कुष्ठ रोगियों को भोजन खिलाने पहुँच जाते थे। कुष्ठ रोगियों को कपड़े एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना अपना धर्म समझते थे कि वे अभी भी समाज का अभिन्न अंग हैं। नागरिकों की सहानुभूति, सहायता और अपनापन कुष्ठ चिकित्सालय में भर्ती मरीजों में आत्मविश्वास का संचार करता रहता था। लेकिन शासन ने कहा कि जब रोग ही खत्म हो गया तो फिर अस्पताल किस बात का।
अब दूसरी बात पर गौर फरमाईये- प्रदेश सरकार ने 31 जनवरी शहीद दिवस को कुष्ठ उन्मूलन दिवस के रुप में मनाते हुए 20 फरवरी तक कुष्ठ जन जाग्रति अभियान चलाया जा रहा है जिसके तहत कुष्ठ रोग के प्रति जनजाग्रति की जायेगी। दोनो बातें सिरे से एक दूसरे की विरोधी हैं यदि कुष्ठ रोग समाप्त ही हो चुका है तो फिर इसे इतिहास की पुस्तकों में जगह दी जानी चाहिये लेकिन ऐसा नहीं किया जाकर कई लाख रुपये का बजट कुष्ठ रोग पखवाड़ों और जनजाग्रति अभियान के नाम से प्रचार-प्रसार के लिये बना दिया गया है। प्रश् उठता है कि क्या दिग्विजय सरकार कुष्ठ रोग से प्रदेश मुक्त कर चुकी थी और शिवराज सरकार के आने के बाद कुष्ठ रोग वापस आ गया है। असल में जब कुष्ठ रोग खत्म ही नहीं हुआ है तो कुष्ठ चिकित्सालयों को बंद करने की कौन-सी आवश्यकता आन पड़ी थी। जिस समय सीहोर कुष्ठ चिकित्सालय बंद किया गया था उस समय सीहोर चिकित्सालय में कुष्ठ रोग से गंभीर पीड़ित स्त्री-पुरुष उपचार के लिये भर्ती थे और वह पूरी तरह ठीक भी नहीं हुए थे। अब कुष्ठ रोग को लेकर जनजागरण की बात करना क्या बेमानी नहीं लगता ? क्या कुष्ठ निवारण के नाम पर शासकिय धन की बर्वादी नहीं होगी। लेकिन शासन के अफलातूनी आदेश पर बंद किये गये अस्पताल ने कुष्ठ रोगियों को कहीं का नहीं छोड़ा न वे घर के रहे और ना ही घांट के सरकार की नीतियों के परिणाम स्वरुप अपाहिज कुष्ठ रोगी आज अपना जीवन घिसट-घिसट कर गुजार रहे हैं। यदि अब नए कुष्ठ रोगी की पहचान होती है तो उसकी चिकित्सा कहाँ होगी ? यह विचारणीय प्रश् है।sehore-fursat
गोर फरमाईये कि प्रदेश में कुष्ठ रोग चिकित्सालय बकायदा स्थापित थे और अनेक कुष्ठ रोगी इन चिकित्सालयों में इलाज भी करवा रहे थे। हालांकि चिकित्सालय गिनती मात्र 4-5 ही थे लेकिन पूरे प्रदेश के लिये यह पर्याप्त थे। एक समय अचानक दिग्विजय सिंह सरकार के समय कहा गया कि पूरे प्रदेश से अब कुष्ठ रोग समाप्त हो चुका है और इसलिये कुष्ठ चिकित्सालय बंद किये जाना चाहिये और तत्काल चिकित्सालय बंद भी कर दिये गये। सीहोर में इसको लेकर विरोध भी हुआ और कहा गया कि इसकी आवश्यकता है लेकिन फिर भी किसी नहीं सुनी ।
जहाँ कुष्ठ रोगियों को प्रतिदिन सीहोर से समाजसेवी जन किसी भी आयोजन के समय याद कर ही लेते थे। लोग अपने जन्मदिन पर भी कुष्ठ रोगियों को भोजन खिलाने पहुँच जाते थे। कुष्ठ रोगियों को कपड़े एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना अपना धर्म समझते थे कि वे अभी भी समाज का अभिन्न अंग हैं। नागरिकों की सहानुभूति, सहायता और अपनापन कुष्ठ चिकित्सालय में भर्ती मरीजों में आत्मविश्वास का संचार करता रहता था। लेकिन शासन ने कहा कि जब रोग ही खत्म हो गया तो फिर अस्पताल किस बात का।
अब दूसरी बात पर गौर फरमाईये- प्रदेश सरकार ने 31 जनवरी शहीद दिवस को कुष्ठ उन्मूलन दिवस के रुप में मनाते हुए 20 फरवरी तक कुष्ठ जन जाग्रति अभियान चलाया जा रहा है जिसके तहत कुष्ठ रोग के प्रति जनजाग्रति की जायेगी। दोनो बातें सिरे से एक दूसरे की विरोधी हैं यदि कुष्ठ रोग समाप्त ही हो चुका है तो फिर इसे इतिहास की पुस्तकों में जगह दी जानी चाहिये लेकिन ऐसा नहीं किया जाकर कई लाख रुपये का बजट कुष्ठ रोग पखवाड़ों और जनजाग्रति अभियान के नाम से प्रचार-प्रसार के लिये बना दिया गया है। प्रश् उठता है कि क्या दिग्विजय सरकार कुष्ठ रोग से प्रदेश मुक्त कर चुकी थी और शिवराज सरकार के आने के बाद कुष्ठ रोग वापस आ गया है। असल में जब कुष्ठ रोग खत्म ही नहीं हुआ है तो कुष्ठ चिकित्सालयों को बंद करने की कौन-सी आवश्यकता आन पड़ी थी। जिस समय सीहोर कुष्ठ चिकित्सालय बंद किया गया था उस समय सीहोर चिकित्सालय में कुष्ठ रोग से गंभीर पीड़ित स्त्री-पुरुष उपचार के लिये भर्ती थे और वह पूरी तरह ठीक भी नहीं हुए थे। अब कुष्ठ रोग को लेकर जनजागरण की बात करना क्या बेमानी नहीं लगता ? क्या कुष्ठ निवारण के नाम पर शासकिय धन की बर्वादी नहीं होगी। लेकिन शासन के अफलातूनी आदेश पर बंद किये गये अस्पताल ने कुष्ठ रोगियों को कहीं का नहीं छोड़ा न वे घर के रहे और ना ही घांट के सरकार की नीतियों के परिणाम स्वरुप अपाहिज कुष्ठ रोगी आज अपना जीवन घिसट-घिसट कर गुजार रहे हैं। यदि अब नए कुष्ठ रोगी की पहचान होती है तो उसकी चिकित्सा कहाँ होगी ? यह विचारणीय प्रश् है।sehore-fursat