Thursday, January 15, 2009

गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूसों ने सीहोर में इंकलाब का नारा बुलंद किया था

स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक पृष्ठों पर अंकित सिपाही बहादुर सरकार के क्रांतिकारियों को भूल गया सीहोर

      स्वतंत्रता संग्राम के लिये सीहोर के बहादुर सैनिकों के अमिट योगदान को कौन भुला सकता है। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिये सन् 6 अगस्त 1857 को गठित 'सिपाही बहादुर सरकार' ने सीहोर, भोपाल में अपनी बहादुरी के झण्डे गाड़ दिये थे और यहाँ से अंग्रेजों को खदेड़कर बाहर कर दिया था। लेकिन बाद में भोपाल बेगम की सहायता और बाहरी फौजों के आ जाने से सिपाही बहादुर सरकार के सभी प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को पकड लिया गया और उन्हे सामुहिक रूप से भून डाला गया।

      स्वतंत्रता संग्राम के समृध्द इतिहास को अपने गर्भ में संजोये सीहोर को लेकर मध्य प्रदेश शासन और स्थानीय प्रशासन ने कभी कोई गंभीर कदम नहीं उठाये। यहाँ ऐतिहासिक स्मारकों और जीर्ण-शीर्ण हो रही समाधियों की देखरेख आज तक नहीं की गई।

      स्वयं मध्य प्रदेश माध्यम भोपाल शासन द्वारा मुद्रित, स्वराज संस्थान संचालनालय रवीन्द्र भवन परिसर, भोपाल द्वारा प्रकाशित और मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रविन्द्रनाथ टैगोर मार्ग, बाणगंगा भोपाल द्वारा वितरित की गई स्वर्गीय लेखक असल उगा खाँ द्वारा लिखी पुस्तक ''सिपाही बहादुर'' में स्पष्ट रूप से सीहोर की इस सिपाही बहादुर सरकार द्वारा जंगे आजादी के लिये किये गये सारे कारनामों का सिलसिलेवार उगेख है। इस प्रकार मध्य प्रदेश शासन द्वारा इस बात को मान्यता दी गई है कि सीहोर का गौरवमयी इतिहास और यहाँ स्वतंत्रता संग्राम सैनानी में सिपाही बहादुर सरकार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन आज तक स्थानीय जिला प्रशासन ने इसको लेकर कभी कोई गंभीर कदम नहीं उठाये हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में शासन द्वारा प्रकाशित कराई गई 'सिपाही बहादुर' किताब में स्पष्ट उगेख है कि ''6 अगस्त 1857 को सीहोर में अंग्रेजी-राज के विरुध्द सिपाही बहादुर सरकार स्थापित की थी जिसका मूल्य तीन सौ छप्पन से अधिक जॉबाज वतन परस्तों ने सामुहिक रूप से सजा-ए-मौत पाकर चुकाया'' । इसी सिपाही बहादुर किताब के पृष्ठ मांक 7 पर चर्बी वाले कारतूसों की शिकायत शीर्षक से स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि ''मेरठ की तरह सीहोर के फौज़ियों की भी एक शिकायत यह भी थी कि जो नये कारतूस फौज में उपयोग किये जा रहे हैं उनमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। सिपाहियों का विचार था कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों की दीन-ईमान को खराब कर देना चाहते हैं। इस अवसर पर किसी ने फौज में यह अफवाह फैला दी कि सिकन्दर बेगम अंग्रेजों को खुश करने के लिये छुपकर ईसाई हो गई हैं। इन अफवाहों से फौज में रोष व्याप्त हो गया। भोपाल नगर के लिये छुपकर स्टिान 'ईसाई' हो गई हैं जब ये अफवाह सिकन्दर बेगम तक पहुँची तो उन्होने रियासत के वकील मुंशी भवानी प्रसाद से कहा जिस पर भवानी प्रसाद ने उन्हे खामोश रहने और बर्दाश्त करने को कहा। कारतूसों में चर्बी के उपयोग की शिकायत की जाँच फौज के बख्शी साहब की उपस्थिति में सीहोर के हथियार खाने में की गई। इस जांच में छ: पेटी में से दो पेटी संदेहास्पद पाई गई, जिन्हे अलग कर दिया गया और ये आदेश दिये गये कि संदेह वाले कारतूसों को तोड़कर तोपों के गोला बारुद में उपयोग में लाय जाये। परन्तु इस आदेश के पश्चात भी बागियों के शक में कोई कमी नहीं हुई बल्कि उन्हे यकीन हो गया कि नये कारतूसों में अवश्य ही गाय और सुअर की चर्बी उपयोग की जा रही है। इस प्रकार फौज के एक बडे वर्ग में बगावत फैल गई।''

      मध्य प्रदेश शासन के मध्य प्रदेश स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा प्रकाशित 'सिपाही बहादुर' किताब के पृष्ठ मांक 56 में सिपाही बहादुर का खात्मा शीर्षक के अन्तर्गत लिखा है कि ''सिपाही बहादुर सरकार जिसकी स्थापना 6 अगस्त 1857 को सीहोर में हुई थी, 31 जनवरी 1858 को उस दिन समाप्त हो गई जब फाज़िल मोहम्मद खाँ को राहतगढ़ किले के दरवाजे पर जनरल रोज़ के आदेश से मृत्यु दण्ड दिया जाकर फांसी पर लटका दिया गया। बगावत असफल होने के पश्चात भी सीहोर के बागी जिन्होने सिपाही बहादुर सरकार गठित की थी किसी न किसी प्रकार अपना आंदोलन चलाते रहे परन्तु व्यापक स्तर पर उनकी गिरफ्तारियों, देश निकाले और कई सजाओं ने उनके दमखम तोड़ दिये, इसे उस समय भारी क्षति उठानी पडी जब उसके राष्ट्रभक्त सिपाहियों को 14 जनवरी 1858 को सीहोर में जनरल रोज़ के आदेश से सामुहिक हत्याकाण्ड के द्वारा मार डाला गया। इस सामुहिक कत्लेआम ने सिपाही बहादुर की कमर तोड़ दी।'' किताब के पृष्ठ मांक 50 पर सीहोर में इंकलाबियों का कत्ले आम शीर्षक से स्पष्ट लिखा है कि ''14 जनवरी 1858 को सीहोर के सैकडो राष्ट्रवादी कैदियों को जेल से निकाला गया और एक मैदान में लाकर ख़डाकर दिया गया । यहाँ उनकी छोटी-छोटी टुकड़ियाँ बनाकर गोलियों से भून डाला गया । इस प्रकार 356 कैदियों को बिना किसी नियमित जांच के गोलियों से उडा दिया गया।''इस संदर्भ में हयाते सिकन्दरी किताब में उल्लेख है ।

      दुर्भाग्य से आज तक सीहोर के इन शहीदों का स्मरण न तो सीहोर ने किया और ना ही मध्य प्रदेश शासन ने इस व्यवस्थित इतिहास को आवश्यक रूप से शिक्षा विभाग के पाठय पुस्तकों में ही कोई स्थान दिलाया। आज भी इन शहीदों के समाधियाँ सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर स्थित हैं जहाँ विगत कुछ वर्षों से बसंत उत्सव आयोजन समिति द्वारा एक पुष्पांजली कार्यम भर ही किया जाता है जबकि शासन द्वारा न तो इन अवशेषों के संरक्षण के लिये कोई प्रयास किया जा रहा है न ही इस दिन विशेष छुट्टी आदि रखी जाती है।
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