27 हजार मुस्लिम मतदाताओं को नेताओं ने स्वयं के लाभ के लिये करवा दिये कई फाड़
सीहोर 18 नवम्बर (विशेष संवाददाता)। मुस्लिम मतदाताओं की सूझबूझ और संगठन शक्ति के आगे सारे राजनैतिक दल पानी भरते नजर आते हैं। भाजपा हो या कांग्रेस या फिर चाहे कोई निर्दलीय प्रत्याशी वक्त आने पर मुस्लिम मतदाता किस तरफ झुकेगा और किसे एक साथ अपना समर्थन देगा यह तय नहीं किया जा सकता। हालांकि सीहोर में मुस्लिम मतदाता अक्सर एक साथ ही एक तरफ झुकता है और पिछले चुनाव में विशेषकर सीहोर में तो जिस तरह निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में झुककर कांग्रेस को भी मतदाता ने यह बता दिया था कि हम किसी एक पार्टी से बंधे हुए नहीं हैं उससे यह बात स्पष्ट हो गई थी मतदाता बहुत सूझबूझ के साथ निर्णय लेता है। इसलिये भाजपा, कांग्रेस या फिर भाजपा की बहन उमाश्री भारती की जनशक्ति हो सभी मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने का प्रयास तो कर रहे हैं लेकिन यह तय नहीं कर पा रहे कि वह किस और झुकेंगे। वैसे ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम मतदाता भाजपा की तरफ कभी भी अधिक संख्या में नहीं जाते हैं। इस बार तीनों ही पार्टी के अलावा कुछेक मुस्लिम समाज के नेताओं ने भी समाज को एक नहीं होने देने के प्रयास शुरु कर दिये हैं जिससे समाज की ताकत लगातार कम होती जा रही है।
मुस्लिम वोट बैंक के कई फाड़ होने की स्थिति नजर आने लगी है जिससे किसी भी एक पार्टी को लाभ नहीं होगा और मुस्लिम मतदाताओं की ताकत भी लगभग समाप्त हो जायेगी। देखते हैं वक्त आने पर क्या मुस्लिम मतदाता ग्रामीण क्षेत्र से लेकर सीहोर तक एकजुट हो पाते हैं या टूट-फूट से कमजोर ही रह जायेंगे....।
अल्पसंख्यक समुदाय के रुप में पहचाने जाने वाले मुस्लिम समाज की ताकत उनकी संगठन शक्ति के दम पर हमेशा से सीहोर विधानसभा क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती रही है। अक्सर हिन्दुत्व की बात करने वाली भाजपा को मुस्लिम समाज सामान्यत: पसंद नहीं करता है, यही कारण है कि पूरे देश सहित सीहोर में भी कांग्रेस की झोली में ही मुस्लिम वोट बैंक को माना जाता है। लेकिन सीहोर का मुस्लिम मतदाता उससे एक कदम आगे बढक़र सोचता है और उसने पिछले कुछ चुनावों में इस मिथक को तोड़ा भी है। नगर पालिका चुनावों में ही रमेश सक्सेना ने अपने प्रत्याशी रुद्र प्रकाश राठौर को मैदान में उतारा था, तब भाजपा को किसी भी तरह मात देने के लिये निर्दलीय प्रत्याशी राकेश राय का साथ देना ही एक मात्र निर्णय हो सकता था, और मुस्लिम वोट बैंक ने सामुहिक रुप से यही निर्णय लिया था कि वह निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में चले गये थे। जिससे भाजपा प्रत्याशी को हार का मुँह देखना पड़ा था।
तब से मुस्लिम वोट बैंक जहाँ भाजपा के लिये खतरा बन गई थी वहीं भाजपा के विधायक रमेश सक्सेना के लिये भी एक समस्या बन गई थी। हालांकि मुस्लिम वोट बैंक सदैव भाजपा के लिये संकट बना रहा है लेकिन फिर भी निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में जब रमेश सक्सेना ने चुनाव लड़ा था तब उनकी जीत इसी मुस्लिम वोट के दम पर सुनिश्चित हुई थी लेकिन जहाँ उन्होने 10 साल पहले भाजपा में प्रवेश कर अपने इस मतदाता को दुखी कर दिया था वहीं अब रुद्र प्रकाश राठौर को अपने साथ बैठा लेने से तो मुस्लिम समाज बुरी तरह खिन्न ही हो गया था। कुल मिलाकर भाजपा के लिये यह खतरे की घंटी थी जिसे वर्तमान विधानसभा चुनाव के पूर्व से ही भाजपा ने महसूस करना भी शुरु कर दिया था।
इस बार विधानसभा चुनाव में प्रमुख तीन प्रत्याशी सामने मैदान में खड़े हैं जिनमें भाजपा, जनशक्ति और कांग्रेस है। ऊपरी रुप से कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोट बैंक गिरेगा यह समझा जा रहा है लेकिन लगातार मुस्लिम वोट बैंक में तोड़-फोड़ करने, उन्हे रिझाने के प्रयास के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में उनके मत पलटने के प्रयास भी किये जा रहे हैं। जनशक्ति की उमाश्री भारती ने जहाँ मुस्लिमों को रिझाने के लिये पहली ही सभा में कई मुस्लिमों को साथ ले लिया था, वहीं भाजपा के साथ तो हमेशा कुछ मुस्लिम बने ही रहते हैं। इस बार कुछ मुस्लिम युवकों ने एक पर्चा भी छपवाकर बंटवा दिया जिसमें लिखी सामग्री का आशय यह है कि हम किसी एक ही पार्टी के नहीं हैं। इस पर्चे को बंटवाने में भी किसी तरह से कुछ पार्टी के नेता और कुछ खुद का लाभ देखने वाले सामाजिक मुस्लिम नेताओं की मिली भगत होने की संभावनाएं लगती हैं क्योंकि इसके पूर्व ऐसे पर्चे समाज के बीच कभी बंटे नहीं देखे गये।
कुल मिलाकर इस बार मुस्लिम एकजुटता की ताकत तोड़ने के लिये भाजपा और जनशक्ति अपने पूरे हथकण्डे अपनाने में लग गये हैं, ताकि इनका रुझान उनकी तरफ भी बढ़े, साथ ही इनका साथ देने वाले कुछेक मुस्लिम नेता ही अपने लाभ के लिये ऐसा कर रहे हैं। हालांकि विशेष रुप से यहाँ यह तो तय ही है कि विधायक सक्सेना की कार्यप्रणाली से प्रसन्न रहने वाले एक निश्चित मुस्लिम मतदाता सदैव उनके साथ बने रहते हैं। लेकिन इस बार सवाल स्थानीय राजनीति के साथ-साथ प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टियों की नीतियों और विचारधारा को लेकर भी निश्चित तौर पर मतदाताओं के मन में होंगे।
कुल मिलाकर एक साथ 27 हजार मतों की शक्ति को लेकर चुनाव से पहले रणनीति बनना और बिगड़ना स्वभाविक पहलु तो है ही लेकिन अलग-अलग नेताओं और आयोजनों में हिस्सेदारी को लेकर मन में शंकाए भले ही पैदा हो लेकिन इस वोट बैंक में गहरी पैठ ही किसी की भी जीत सुनिश्चित कर सकेगी। क्योंकि 100 प्रतिशत समर्थन देने की बात तो अब तक न तो किसी फतवे के रुप में सामने आई है ना ही कोई सम्मेलन या कार्यक्रम आयोजित कर किसी के लिये घोषणा की गई है, देखते हैं इस बार क्या होता है....।