आष्टा 4 अक्टूबर (सुशील संचेती)। एक ओर केन्द्र सरकार किसानों का ऋण माफ कर अपने को किसानों की हितैशी सरकार होने का दावा करते नहीं थक रही है वही दूसरी और वो ऐसे निर्णय ले रही जिससे देश का अन्नदाता कहा जाने वाला किसान इन दिनों दर-दर भटक रहा है। इन दिनों पेट्रोल पम्पों पर जो डीजल पेट्रोल आदि पूर्व में दिया जाता था उसमें 30 से 40 प्रतिशत तक की कटौती कर दिये जाने से किसान डीजल के लिए दिन-दिन भर हाथों में ड्रम लिये या टेक्टर खडे कर डीजल का इंतजार करता रहता था।
खेतों में खड़ा सोयाबीन कट गया है उसे निकालने के लिए बाहर से जो बड़ी-बड़ी हडम्बा मशीने आई है उन्हें डीजल नहीं मिलने से वे मंहगा डीजल ला रहे है और सोयाबीन निकालने का प्रति घंटे का शुल्क 300 से बड़कर 350 -400 रुपये कर दिया है। सोयाबीन कटने के बाद किसान गीते खेत को हाथ से नहीं जाने देना चाहता है तुरंत बख्खर फैर कर बोनी करने की इच्छा रखता है लेकिन उसे डीजल नहीं मिल रहा है जिससे वो परेशान है कडकड़ाती धूप के कारण गीले खेत सुखते जा रहे है वही इस बार बरसात कम होने से जल स्त्रोत भी साथ देने की स्थिति में नहीं है की वो पलेवा कर ले और फिर बोवनी क्षेत्र के किसान डीजल नहीं मिलने से परेशान है वही जो डीजल आता है उसे बड़े-बड़े लोग भरवा लेते है और छोटा किसान वंचित रह जाता है स्थानीय एवं जिला प्रशासन को इस और ध्यान देना चाहिये।