सीहोर 3 अक्टूबर (आनन्द भैया )। अचानक उम्मीद्वारी जताते हुए प्रकट हुई उमाश्री भारती की पार्टी भारतीय जन शक्ति ने यहाँ पहले ही दिन से कहना शुरु कर दिया है कि वर्तमान विधायक की जमानत जप्त हो जायेगी...अब पार्टी के पदाधिकारी भी यही कहते हैं कि हमारी जीत तो तभी सुनिश्चित हो जायेगी जब भाजपा रमेश सक्सेना को उम्मीद्वार बना देगी। जनशक्ति का यह प्रलाप धुरंधर राजनीतिक खूब समझते हैं कि कहीं ना कहीं जनशक्ति को भाजपा से सक्सेना की उम्मीद्वारी क ा खतरा ही सबसे यादा लग रहा है और इसलिये ही अभी तक सीहोर से जनशक्ति की उम्मीद्वारी को स्पष्ट नहीं किया गया है।
भारतीय जनता पार्टी में निर्दलीय विजयी प्रत्याशी के रुप में आये और आज भाजपा के विधायक लोकप्रिय रमेश सक्सेना की आगामी विधानसभा को लेकर उम्मीद्वारी का अभी तक असमंजस की स्थिति में बनी हुई है। भाजपा में जहाँ संघ परिवार की पूरी पैनल हर बार की तरह इस बार भी सक्सेना के अंदर ही अंदर विरोध में नजर आ रही है वहीं कुछ नेता भी इस संबंध में चुप्पी साधे बैठे हैं। कुछ भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से सक्सेना की वर्षों पुरानी दुश्मनी के गड़े मुर्दे भी बार-बार चित्कार करने में लगे हुए हैं। ऐसे में खुद विधायक श्री सक्सेना का पिछले दिनों अपनी उम्मीद्वारी के प्रति असमंजस की स्थिति और अन्य लोगों से टिकिट मांगे जाने की बातें करने के बाद नगरीय क्षेत्र में काफी चर्चाएं सरगर्म हो गई हैं।
इधर भतीजे देवेन्द्र सक्सेना की तेज होती गतिविधियों ने भी चर्चाओं के बाजार को सरगर्म कर दिया है।
भाजपा के पुराने और धुरंधर नेताओं का मानना है कि इस बार टिकिट को लेकर काफी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है और यही कारण कि पिछले दिनों जहाँ मुख्यमंत्री की सभा में सीहोर विधानसभा क्षेत्र के लोगों की अनुपस्थिति सर्वाधिक चर्चा में रही वहीं पिछले दिनों भाजपा के सर्वाधिक महती कार्यक्रम 25 सितम्बर के महाकुंभ में भी सीहोर से गये अधिकांश वाहन खाली ही थे। इस सबको कहीं ना कहीं विधायक सक्सेना के अनमने मन का कारण बताया जा रहा है।
ऐसे में संगठन और सत्ता में मतभेद भी सीहोर विधानसभा क्षेत्र को लेकर उभरने लगे हैं। कांग्रेस के कमजोर प्रत्याशियों के सामने खड़ी सत्तासीन भाजपा के अधिकांश लोग यही चाहते हैं कि इस बार उनकी भी पूछ परख हो जाये अथवा टिकिट उन्हे मिल जाये। इसलिये बारम्बार भोपाल से कई भाजपा नेता टिकिट मांगने और लेने के लिये प्रयासरत हैं और यही लोग दूसरे प्रत्याशियों की कमी का बखान भी बखूबी कर रहे हैं, दूसरे प्रत्याशियों कब-कब भाजपा के खिलाफ, मुख्यमंत्री के खिलाफ, संघ के खिलाफ बोला है, अथवा दूसरे प्रत्याशियों की भावनाएं भाजपा व संघ के प्रति क्या है इसका बखान भी खूब हो रहा है।
जो भी हो, भाजपा के इस अंतद्वंद ने कांग्रेस और हाल ही उमाश्री की एक सभा के बाद सामने आई जनशक्ति की जान सांसत में डाल रखी है। विशेषकर जनशक्ति की बयानबाजी की चर्चाएं सर्वाधिक सरगर्म रहती हैं। जहाँ उमाश्री ने आते ही श्यामपुर की सभा में खुलकर कहा कि वर्तमान विधायक की जमानत जप्त हो जायेगी। इसका मतलब था कि भाषण सुन रही जनता का विधायक के प्रति झुकाव को उमाश्री कम करना चाहती थीं। इस भाषण की चर्चाएं उतनी सरगर्म नहीं हो सकी जितनी जनशक्ति को अपेक्षा थी इसके बाद जनशक्ति के पदाधिकारियों ने खुले रुप से यह कहना शुरु कर दिया कि जनशक्ति को सिर्फ यही चाहती है कि भाजपा से विधायक रमेश सक्सेना को टिकिट मिल जाये...ताकि जनशक्ति की जीत सुनिश्चित हो जाये।
जनशक्ति का यह कहना भी कहीं ना कहीं विधायक सक्सेना की दमदारी की और इंगित करता है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो राजनीति का यह भी एक तरीका है कि सामने वाले को कमजोर प्रदर्शित करना शुरु कर दिया जाये ताकि उसका टिकिट ही कट जाये और अपनी लाईन साफ हो जाये। बार-बार जनशक्ति का यह कहना कि रमेश सक्सेना यदि लड़ेंगे तो जनशक्ति जीत जायेगी इससे लगता है कि जनशक्ति चाहती है कि सक्सेना लड़े ही नहीं। क्योंकि अगर जनशक्ति स्वयं की जीत सुनिश्चित ही कहना चाहती तो वह यही कहती कि हमारी जीत तो सुनिश्चित है, हम जीतेंगे चाहे कोई भी सामने हो, लेकिन बार-बार भाजपा के विधायक का नाम लिया जाना कहीं न कहीं जनशक्ति के सहमे होने की और इंगित कर रहा है। क्योंकि जनशक्ति ने सिर्फ रमेश सक्सेना का नाम लिया और किसी अन्य भाजपा से संभावित उम्मीद्वार का नाम नहीं लिया। उधर उमाश्री ने भी सिर्फ वर्तमान उम्मीद्वार के खिलाफ बोला।
कुल मिलाकर जनशक्ति द्वारा अभी तक स्वयं के उम्मीद्वार की घोषणा नहीं किये जाने से भी उसकी घबराहट सामने आ रही है। संभव है अपने तीर छोड़ने के बाद जनशक्ति देखना चाहती हो कि वह भाजपा के पर निशाने पर लगे या नहीं और यही निशाने पर लग गये तो जनशक्ति अपना उम्मीदवार मैदान में सामने ले आयेगी। हर दिन राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं देखते हैं आगे क्या होता है और कौन-सी राजनीतिक बिसात बिछाई जाती है।