Saturday, October 4, 2008

साहब जानकारी नहीं, बस आप तो सेवा बताईये क्या पेश कर दूँ, कलेक्टर से भी नहीं डरता हूँ...सब भ्रष्ट हैं कहाँ नहीं है करप्शन

सीहोर 3 अक्टूबर (नि.सं.)। महिला बाल विकास विभाग शहरी परियोजना अधिकारी कार्यालय जहाँ से पूरे नगर की आंगनबाड़ी, मुख्यमंत्री की लाड़ली लक्ष्मी योजना का संचालन होता है। नगरीय क्षेत्र की आंगनबाड़ियों में क्या कुछ हो रहा है और यहाँ कितनी गड़बड़ी चल रही है इसकी जानकारी आज हर एक घर परिवार तक पहुँच चुकी है क्योंकि अधिकांश हितग्राही बच्चों को आंगनबाड़ी से न कुछ खाने मिलता है ना कोई सामग्री दी जाती है। वहीं लाड़ली लक्ष्मी योजना में शहर सबसे पीछे नजर आ रहा है।
ऐसे में यदि कभी शहरी विकास परियोजना अधिकारी महिला बाल विकास विभाग से इस संबंध में कोई पूछताछ की जाती है, खाद्य सामग्री नहीं मिलने की बात बताई जाती है तो वहाँ से हमेशा एक ही जबाव दिया जाता है कि हम जो कर रहे हैं, सही कर रहे हैं, आपसे बने तो ऊपर शिकायत कर दो, कलेक्टर से कह दो, नीचे से लेकर ऊपर तक करप्शन है यदि हम भी इसमें शामिल हैं तो कौन-सी अनोखी बात हो गई।
आखिर शहर में जितनी आंगनबाड़ियाँ चल रही हैं उनमें कितनी खाद्य सामग्री भेजी जा रही है ? सर्वाधिक चर्चा में रहने वाली ब्रेड आखिर क्यों बच्चों न बंटकर मोहल्ले के घर-परिवार में जाती है ? बच्चों को मिलने वाले पोष्टिक खाद्य सामग्री चाहे वह दलिया हो या हो कुरकुरे-मुरमुरे वह चले कहाँ जाते हैं...? आखिर आंगनबाड़ियाँ कभी किसी के घर में तो कभी कहीं छुपकर क्यों लगाई जाती हैं...? क्यों कर आंगनबाड़ियों में बच्चों की संख्या कम रहती है...? आखिर कितनी खाद्य सामग्री बनवाई जा रही है...? कितनी मंगवाई जा रही है...? और कितनी बंट रही है....? आखिर आंगनबाड़ी में बंटने वाली पंजीरी कहा चली गई है...? और किसके मुँह में जाना चाहिये और कि सके मुँह में जा रही है? आंगनबाड़ी में बंटने वाला हलवा कौन-से घी से बनकर आ रहा है....? और आखिर क्या कारण है कि भोपाल के लोगों से बनवाकर इसे सीहोर बुलवाया जाता है और फिर बंटता है...? आखिर क्यों आंगनबाड़ी पर्यवेक्षकों द्वारा आंगनबाड़ी सहायिकाओं पर समय-समय पर दबाव बनाया जाता है और चौथ वसूली की जाती है...? लाड़ली लक्ष्मी योजना के फार्म आखिर क्यों उपलब्ध नहीं है...? क्या मुख्यमंत्री जी ने यह फार्म बांटने से मना कर दिया है....? क्यों पात्र हितग्राहियों को इस योजना का लाभ उठाने के लिये, इन फार्मों को खरीदने के लिये 5 से 50 रुपये तक अदा करना पड़ते हैं...?
ऐसे ही अनेकानेक सवालों का जबाव यदि आप महिला बाल विकास विभाग में पदस्थ परियोजना अधिकारी से पूछते हैं तो फिर वह सवाल के जबाव में बचते हुए या तो कहते हैं कि हमारे सांख्यिकी अधिकारी से आप बात कर लीजिये आपकी सारी समस्या हल हो जायेगी...? अथवा यहाँ से संदेश दिया जाता है कि साहब जानकारी नहीं आप तो ''सेवा'' बताईये क्या पेश कर दूं....।
और यदि इस ''सेवा'' की बात सुनकर कोई आम व्यक्ति नाराज होकर अधिकारियों से सही काम करने की बात कहे तो फिर सीधे यहाँ कहा जाता है कि आप चाहे जों करें, मुख्यमंत्री से कहें या कलेक्टर से कह दे, हमारा कुछ नहीं होगा...नीचे से लेकर ऊपर तक करप्शन है...सभी इसमें लिप्त हैं....आप भी जुड़ जाईये वरना जो बने कर लीजिये....।
शहर में स्थापित एक शासकिय कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार का चरम इसी बात से इंगित हो जाता है कि यहाँ कोई जानकारी देने के नाम छोटा-सा बाबू भी यह कह देता कि साहब सेवा बताईये और मेवा खाईये। जिस विभाग से आने वाली पीढ़ी, जच्चा-बच्चे का स्वास्थ्य, कुपोषण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे जुडे हैं, जिस विभाग से लाड़ली लक्ष्मी योजना जुड़ी है, उस विभाग में भ्रष्टाचार का यह आलम है।