Thursday, September 11, 2008

भागवत कथा आत्मा का ब्यूटी पार्लर है-पं. प्रदीप मिश्रा

सीहोर 10 सितम्बर (नि.सं.)। भगवान पर भरोसा रखो तो ही भगवान तुम्हारी मदद करेगा, तुम्हारी रक्षा करेगा। जब तक भरोसा नहीं रहेगा तो तुम्हे कैसे कुछ खाने देगा। भगवान कहते हैं कि मनुष्य ने मुझ पर भरोसा करना छोड़ दिया इसलिये मैने पृथ्वी पर जाना छोड़ दिया।
भक्ति रस को समझाते हुए आज श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन पं. प्रदीप मिश्रा जी ने कहा यहाँ श्रीमुन्नालाल भारुका अग्रवाल पंचायती भवन में कहा कि एक बार बड़े प्रेम से रुकमणी ने भगवान के खीर बनाई, और खीर खाने की शुरुआत करते-करते अचानक भगवान रुक, कटोरा रखा और भागे। पर बाद में आये बड़े दुखी मन से। रुकमणी के पूछने पर बोले एक भक्त भूखा था, और मुझे याद कर रहा था पीड़ीत था तो मैं उसके लिये जाने लगा, तभी उसने मेरी याद छोड़ दी और पड़ोसी के घर में चोरी करने घुस गया।
आज कल देवी-देवताओं के चित्रों को हर कहीं छापने और उसके प्रयोग करने की प्रथा को अपसंस्कृति और असभ्यता कहते हुए कथावाचक पं.श्री मिश्रा ने कहा कि जब कभी विदेशी किसी देवी-देवता का चित्र छाप देते हैं तो यहाँ बड़ा बवाल मचता है, जबकि इसमें गलती हमारी है। चाहे जो गणेश जी, लक्ष्मी जी, राम-सीता के फोटो हर कहीं छाप देता है, गणेश छाप बीड़ी हो या लक्ष्मी दाल मिल हर जगह फोटो छपेंगे। शर्म आनी चाहिये ऐसी लक्ष्मी के फोटो छपे बोरे जब दाल खत्म होने के बाद उपयोग में आते हैं लोग घर में उसका पैर पोंछने के काम में लेते हैं। चित्रों को कचरे के डिब्बे में नाली में फेंक दिया जाता है। हम खुद अपने देवी-देवताओं का अपमान करते हैं तो फिर कै से बचेगी हमारी संस्कृति, सभ्यता । अब गणेश जी जगह-जगह बैठाये गये हैं देखने में आता है की उत्सव समिति के लोग रात मण्डप की आड़ में शराब भी पीते और जुंआ भी खेलते हैं, विसर्जन के समय छोटी प्रतिमाओं को उछालकर विसर्जन करते हैं...क्या यही आपकी भगवान के प्रति श्रध्दा है। एक घटना बताते हुए श्री मिश्रा ने कहा कि सागर के पास एक पांडाल में गणेश जी को शूट-टाई, चश्मा पहनाकर चार्ली चैपलिन बनाया गया था हमने वहाँ जाकर विरोध किया और बाद में समिति वालों को सजा दिलाई। इस प्रकार अपसंस्कृति का विरोध करते हुए हमें अपनी भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये सदैव तत्पर रहना चाहिये।
श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा प्रवाह में आपने कहा कि राजा परीक्षित को दो बार सांप के डंसने से मृत्यु होने का श्राप मिला था एक बार तो जब वह 4 साल के थे और खेलते हुए उन्होने एक पत्थर अपने हाथ में एक काले कपड़े में बांधा और घुमाते हुए फेंक दिया था जो श्रम्यक ऋषि के आसन के नीचे जाकर गिरा। अचानक ऋषि का ध्यान गया तो वह सांप समझकर खड़े हो गये। उनके इस प्रकार कपड़े से डर जाने के दृश्य को देखकर उनके शिष्य बहुत जोर से हंसे, जिससे कुपित होकर ऋषि ने परीक्षित को सांप के डंसने से मृत्यु होने का श्राप दिया। ध्यान देने की बात है कि यहाँ ऋषि ने समय सीमा तय नहीं की। लेकिन जब बचपन की हुई गलती की पुनरावृत्ति और पाप के भोगने का समय आया तब श्रृंगी ने श्राप दिया और कहा कि आज से सातवे दिन सांप का नाम तय कर दिया कि तक्षक नाग द्वारा डंसने से उस राजा की मृत्यु होगी जिसने मेरे पिता के गले में मरा हुआ सांप डाला। पंडित जी ने कहा कि बचपन में की गई गलती की सजा जवानी में, जवानी की गलती बुढापे में भोगना पड़ती है लेकिन बुढ़ापे में भी यदि गलती करोगे तो फिर नर्क के द्वार खुले हैं इसलिये बुढ़ापे में सत्संग और धर्म कार्य करना चाहिये।
उन्होने कहा कि मरने के बाद तो सभी भागवत जी भी कराते हैं, राम नाम सत्य भी बोलते हैं, गरुड़ पुराण भी पढ़ते हैं, ब्राह्मणों को दान भोजन भी कराते हैं लेकिन जीते-जी लगता है कि काम, कमाई और शरीर ही सत्त है, और जब आत्मा निकल जाती हैं तो लगता है राम नाम सत्य है।
उन्होने कहा कि जिस प्रकार शरीर का श्रृंगार केन्द्र ब्यूटी पार्लर होता है, वहाँ सज-संवर कर स्त्री अपने पति को प्रसन्न करती हैं ठीक इसी प्रकार आत्मा का ब्यूटी पार्लर यह भागवत कथा का धार्मिक स्थल है जहाँ आत्मा का श्रृंगार होता है और यहाँ से जिस आत्मा का श्रृंगार हो जाता है उसे फिर भगवान पसंद करने लगते हैं।
तीन लोगों के भाग्य का धन मनुष्य को मिलता है, एक गाय जिसको आप कुछ दान करोगे तो उसके भाग्य का धन आपको मिलेगा दूसरा ब्राह्मण को यदि कुछ दान दोगे तो उसके भाग्य का और तीसरा है बेटी के भाग्य का धन। इसलिये गौमाता पर हो रहे अत्याचारों से बचना चाहिये। चुटकी लेते हुए पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि गाय को आजकल लोग पालते नहीं है उसे पालते तो मरते वक्त उनका गोवंश के बैल बाबा नंदी जी निश्चित आपको स्वर्ग के रास्ते पर ले जाते लेकिन आज कल तो भैंस की सेवा हो रही है तो जब आदमी मरे तब भैंस का बालक पाड़ा तो यमराज से ही आपके लिये निवेदन कर सकता है तो फिर कहाँ जाओगे सोच लो।
उन्होने कहा कि नकली भेरु को अनेक मिल जाते हैं लेकिन असली भेरु अर्थात असली गुरु सद्गुरु को ढूंढ मुश्किल है । राजा परीक्षित असली गुरु को ढूंढा और अपनी गति सुधार ली।


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