सीहोर। एक नई कहावत है जहाँ-जहाँ पैर पढ़े संतन के...तहाँ-तहाँ बंटाधार...। यह कहावत आजकल बन बैठे आधुनिक संतों के लिये है, असल में आज संत मिलना मुश्किल है, लेकिन संत बनकर घूम रहे लोगों की कोई कमी भी नहीं है...किसी एक कला में पारंगत होते ही कुछ लोग स्वयं को संत सिध्द करने में उद्यत हो जाते हैं....यदि कोई व्यक्ति पंडित है... यदि कोई योतिषाचार्य है....कोई अंकशास्त्री है....कोई किसी देवता का सिध्द भक्त है....यदि कोई भागवत कथाकार है जिसके पास भक्तों की भीड़ लगी रहती हो...या कोई रामायण जी पर प्रवचन अच्छे देता है...अथवा कोई योगासन में पारंगत है....कोई प्रवचन अच्छे दे लेता है....तो क्या इन विधाओं के लोग संत जैसी विशिष्ट पदवी के मान लिये जायेंगे ? आज कल देखने में आ रहा है कि ऐसी विधाओं में पारंगत कई लोग स्वयं को संत सिध्द करने में जुट जाते है... और इस आढ़ में फिर वही रुपयों की भूख मिटाने का प्रयास करते नजर आते हैं....। इनके साथ ऐसे राजनेता और रुपये वाले शहद में मक्खी की तरह चिपक जाते हैं कि फिर वह स्वयं को इनका बड़ा भक्त सिध्द करने का प्रयास करते हैं....यह क्रम पूरे देश में ही नहीं बल्कि विश्व में देखने को मिल रहा है। इन राजनेताओं की अपनी गणित रहती है और रुपये वाले लोग रु पये के बाद 'यश' की कामना से ऐसे कथित संत या अन्य प्रकार के उस्तादों के आगे-पीछे नाचते नजर आते हैं।
इछावर से लेकर सीहोर तक के सैकड़ो बांस कटवाकर और सागौन की लकड़ियों को एकत्र करके गत वर्षों में जिस क थित संत ने अपना चौमासा धूमधाम से मना डाला था, आज वही संत फ्री घूम रहे हैं ? फ्री का मतलब फालतू हैं.... बरसात हो रही है तो होने दो इस बार यह चातुर्मास नहीं कर रहे ? गोया चातुर्मास नहीं हुआ उपवास हो गया कि एक बार कर लिया दूसरी बार नहीं करेंगे ?
आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी के बीच चार माह के समय को हिन्दु धर्मशास्त्र में चातुर्मास का समय बताया गया है। शास्त्रों में इस दौरान एक स्थान पर बैठकर चिंतन -मनन करने की बात कही गई है, तो विज्ञान भी इन चार महिनों में शारीरिक और मानसिक विकास की बात स्वीकार करते हुए सावधानियाँ बरतने की बात कहता है। एक कथा के अनुसार शंखचूर का वध करने के दौरान भगवान श्री हरि को थकान की अनुभूति हुई। थकान को दूर करने के लिये वे क्षीर सागर में अनंत शय्या पर जिस दिन गये, वो आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी था, उनके शयन पर जाने के दिन को देवशयनी एकादशी कहा गया वहाँ वे चार मास तक निंद्रा में रहे। उनका जागरण दिवस कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी है। न सिर्फ चातुर्मास से धार्मिकता जुड़ी है बल्कि वैज्ञानिकता भी जुड़ी है। रामायण के किष्किंधा कांड में श्रीराम ने सुग्रीव का राजतिलक करने के बाद कहा था कि चातुर्मास प्रारंभ होने वाला है । इस दौरान संत, राजा, व्यापारी और भिखारी अपनी यात्राओं को विराम देते हैं। चातुर्मास के लिये स्वयं भगवान श्रीराम भी एक स्थान पर रुक गये थे। माता सीता को खोजने के अतिमहत्वपूर्ण कार्य को भी मर्यादापुरुषोत्तम ने चातुर्मास में रोक दिया था।
ऐसे में आज के कथित संत चातुर्मास में वाहनों में घूमते नजर आते हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि कल जो संत चातुर्मास कर रहे थे और बजाय शांति से चिंतन, मनन, अध्ययन करने के वह लाखों रुपये खर्च कर यज्ञ आहूतियाँ छुड़वा रहे थे, चढ़ावा स्वीकार कर रहे थे वही संत आज चातुर्मास अवधि में घूमते फिर रहे हैं, अपने भक्तों के पास पहुँचकर स्वागत-सत्कार करवा रहे हैं......।
राम जी भला करें...नदी चौराहे पर इछावर में हो रहे एक यज्ञ की समाप्ति के बाद बांसो का एक दरवाजा खड़ा हुआ था, जिसके संबंध में फुरसत में एक खबर छपी थी, उसके बाद इस बांसों के दरवाजे को जनता ने जाकर तोड़ दिया था और उसी रात महिने भर से रुकी हुई बरसात जिससे जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा था....घूमड़-घूमड़ कर बादल आये और खूब बरसात हुई। पिछले दिनों इछावर में एक बार फिर एक कथित संत के पैर पड़े और इधर जिले भर में बरसात रुक गई है। इछावर में संकल्प हुआ है कि आगामी कुछ वर्ष में फिर कोई महायज्ञ और कोई चातुर्मास आदि होगा....। जो भी हो लेकिन बरसात अभी रुकी हुई है....सहज कहने में आ रहा है कि उनके पैर क्या पड़े...बरसात ही थम गई।
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