आष्टा 24 अगस्त (नि.सं.)। आज कृष्ण जन्माष्टमी है जो विशेष महत्व एवं प्रेरणा देने आई है यूं तो हर माह में दो बार अष्टमी आती है लेकिन आज जो अष्टमी है उसका एक अलग ही महत्व है क्योंकि आज कृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण जी के विभिन्न स्वरुप एवं क्रियाएं हमें अलग-अलग संदेश देते हैं। श्री कृष्ण की बांसुरी जीवन में सरलता, मधुरता और वाणी में मिठास हो का संदेश देती है। अन्य दर्शनों की तरह जैन दर्शन भी कृष्ण को मानता है। जिस प्रकार स्थान-स्थान पर मटकी फोड़ी जाती है आज हम भी यह निश्चित करें कि कर्मो की मटकी को फोड़ेंगे।
उक्त उद्गार महावीर भवन स्थानक में विराजित पूय साध्वी श्री मधुबाला जी ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर अपने प्रवचन में कहे। उन्होने कहा कि कृष्ण की बांसुरी जो सीधी होती है उसमें कचरा नहीं होता है, तथा जब उसे बजाने का प्रयास किया जाता है तभी वह बजती है और जब उसमें से आवाज निकलती है तो वो आवाज भी सुर से मीठी होती है ठीक उसी प्रकार जीवन में बांसुरी की तरह सरलता, मधुरता होनी चाहिये जब भी बोला तो बोल मीठे होने चाहिये तथा जब कोई नहीं बोले तो नहीं बोलना चाहिये।
यह संदेश हमें कृष्ण की बांसुरी देती है तभी आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाना भी सार्थक होगा। मटकी फोड़ हमें संदेश देती है कि आज के दिन अंहकार के भाव को छोड़े। महाराज श्री ने कहा कि जो तीर्थंकर होते हैं वे धार्मिक पुरुष कहलाते हैं तथा जो चक्रवर्ती कहलाते हैं वे भोग पुरुष कहलाते हैं। श्रीकृष्ण वासुदेव के पास चक्रवर्ती की आधी रिध्दी थी धर्म की जो आराधना चक्रवर्ती कर सकते हैं वो वासुदेव नहीं कर सकते लेकिन कृष्ण वासुदेव ने धर्म की ऐसी दलाली की थी कि वे तीर्थंकर नाम कर्म का बंध कर आने वाली चौबीसी में 12 वे तीर्थंकर बनेंगे।
महाराज श्री ने बनाया की श्री कृष्ण वासुदेव की 32 हजार माताएं थी वे प्रतिदिन 400 माताओं के चरण स्पर्श करते थे और इस प्रकार करते हुए जन्म देने वाली माता देवकी का नम्बर 6 माह में आता था। आज व्यक्ति अपने एक माता पिता के चरण स्पर्श करने में भी शर्म महसूस करता है। श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था क्यों ? क्योंकि कर्म सत्ता के कारण महाराज सा. ने सत्ता 3 प्रकार की बताई है राज सत्ता, कर्मसत्ता और धर्मसत्ता। उन्होने कहा कि राजसत्ता हमारे द्वारा बनाई होती है लेकिन कर्मसत्ता को धर्मसत्ता से परास्त किया जा सकता है।
इस अवसर पर सुनीता जी म.सा. ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में सब प्रकार के खर्चों का बजट फिक्स है। क्या किसी ने किसी प्रकार दान कितना करना है फिक्स किया है। शायद उत्तर आयेगा नहीं। क्योंकि जो व्यक्ति लोभ कसाय, लोभ मोहनीय कर्म से युक्त होता है वो व्यक्ति कभी दान नहीं कर सकता है। लोभी व्यक्ति नोटों को देखकर खुश होता है।
वो दान पुण्य नहीं करता है और ऐसे व्यक्ति के पास जो धन होता है उसका नाश भी होता है धन पुण्य से मिलता है जो व्यक्ति दान पुण्य करता है वो केवल देता ही नहीं है बोता भी है इसलिये आप कहते हो ना की धन पर नाग कुण्डली मारकर बैठा है। दानपुण्य परमार्थ करके लोभ कसाय पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
आज अट्ठाई तप करने वाली कुमारी गोलू देशलहरा का सम्मान 5 उपवास की बोली लेने वाली श्रीमति सुनीता कटारिया ने किया। तेला करने वाले अतुल सुराना का सम्मान अभिषेक देशलहरा ने किया। गोलू देशलहरा की अट्ठाई तप निमित्त आज देशलहरा परिवार ने सामुहिक एकासने एवं बच्चों की दया का कार्यक्रम रखा।
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