Sunday, August 3, 2008

मृत्यु हमारे हाथ में नहीं पर मृत्यु महोत्सव बने यह हमारे हाथ में है

आष्टा 2 अगस्त (नि.प्र.)। यूँ तो संसार में अनेकों लोग जन्म लेते हैं लेकिन सभी की जन्म जयंती नहीं मनाई जाती है क्योंकि जो जीवन में कुछ ऐसा कर जाते हैं जिन्हे दुनिया हमेशा याद रखती है ऐसे ही महापुरुषों की जन्म जयंती मनाई जाती है और उनके कार्यों को, गुणों को याद किया जाता है। मृत्यु हमारे हाथ में नहीं है लेकिन मृत्यु महोत्सव बने यह हमारे हाथ में है ऐसे ही एक महापुरुष आचार्य सम्राट 1008 श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. जो की श्रमण संघ के द्वितीय पट्टधर है की आज 108 वी जन्म जयंती है हम उनके गुणों को उनके संयम को याद कर रहे हैं तथा उनके त्याग, तप, संयम, गुणों को अपने जीवन में उतारें ताकि उनकी जन्म जयंती मनाना सार्थक हो।
उक्त उद्गार पूय म.सा. श्री मधुबाला जी ने आज आचार्य श्री की जन्म जयंती पर गुणानुवाद प्रवचन में कहे। 13 वर्षी की उम्र में संयम जीवन अंगीकार करने वाले आचार्य श्री के बारे में जो जो बातया जाये वो कम है वे गुणों की खान थे। जो आत्मा जीवन में इतिहास बनाते हैं उन्ही की जयंती मनाई जाती है। जब उन्होने मर गये का अर्थ समझा तो वे रत्नऋषि की शरण में पहुँच गये थे। उन्होने कहा कि निंद्रा प्रसाद है प्रमाद का त्याग करना साधक जीवन का लक्ष्य होता है। इस अवसर पर उनके गुणों को आपने सुना प्रयास करें कि वे गुण आपके जीवन में उतरें। म.सा. सुनीता जी ने कहा कि आचार्य श्री कहा करते थे कि व्यक्ति की चाहे नींद हो या प्रशंसा दोनो के वक्त सभी को संयम रखना चाहिये।
उन्होने श्रवण संघ की रक्षा, सुरक्षा के लिये अनेकों कार्य किये। मालवा पर खास कर शुजालपुर, शाजापुर, आष्टा, सिध्दिकगंज पर उनकी असीम कृपा रही। आचार्यश्री की जयंती पर म.सा. की निश्रा में आष्टा में तीन दिनी कार्यक्रम अखंड जाप और रविवार 3 अगस्त को श्रावक लाभमल आनंद कुमार रांका की और से दयाव्रत की तपस्या का कार्यक्रम रखा है जिसमें भाव लेने वालों को 11 या 19 सामायिक करना है। आष्टा में म.सा. के चल रहे वर्षावास में त्याग, तपस्या, पचकान आदि की झड़ी लगी हुई है।


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