Tuesday, August 19, 2008

त्यौहार मनाने के साथ आत्मावलोकन करें कि हमारा आचरण कैसा है : साध्वी मधुबालाजी

आष्टा 18 अगस्त (नि.प्र.)। रक्षाबंधन आई रे, यह शुभ संदेशा लाई है। उक्त पंक्तियों के साथ साध्वी श्री मधुबाला जी ने रक्षाबंधन पर्व पर अपने विशेष प्रवचन देते हुए कहा कि त्यौहार मनाने के साथ आत्मावलोकन करें कि हमारा आचरण कैसा है? पर्व दो प्रकार के होते है लौकिक पर्व एवं लोकोत्तर। लौकिक में खाना-पीना, दुकानों को सजाना आता है। वहीं लोकोत्तर में आत्म आराधना की प्रधानता होती है।
मधुबाला जी ने कहा कि होली, दीपावली, रक्षाबंधन, गणेशोत्सव, नवरात्रि एवं दशहरा भारत के प्रमुख त्यौहार है। हमें लोकोत्तर पर्व को भी लोकोत्तर बनाना है। होली का त्यौहार शूद्रों का, दीपावली का त्यौहार वैश्यों का, दशहरा का पर्व क्षत्रियों का और रक्षाबंधन का त्यौहार ब्राह्मणों का है। हमें अपने आचरण को देखना होगा। हमारे व्यवहार से घर-परिवार समाज में शांति आना चाहिए। आज रक्षा बंधन आध्यात्मिक जगत में कैसे मनाना है, यह समझना चाहिए। सच्चे अर्थ में राखी बांधना है, तो हमें अशुभ कर्म के उदय से जो जेल की हवा खा रहे है, उन्हें राखी बांधना है। प्रेम में समर्पण होता है, जो कि स्वेच्छा से होता है, यह कोई सौदा नहीं है। राखी के बंधन को मामूली बंधन न समझे, इस बंधन में बहुत राज छुपे है। भाई के प्रति शुभेच्छा रखना, उन्हें संयम के प्रति दृढ़ करना, बहन की शील की रक्षा करता है भाई और तिलक आज्ञा चक्र को जागृत करता है। संसार में ज्ञान, दर्शन एवं चरित्र तीनों ही सार है। वहीं तीन का हमारे पर माता, पिता एवं गुरु का उपहार है। सिद्धों का रंग लाल है, हमें सिद्ध दशा को प्राप्त करना है। चावल अखंड है हमें भी अक्षय पद पाना है। ज्ञान को बढ़ाकर केवल ज्ञान का प्रकाश जीवन में कर लेना है। भेड़चाल की तरह रक्षाबंधन पर्व न मनावें, जो भी दु:खी प्राणी है हमें उन सभी की रक्षा करना है।
अंग्रेज चले गए, उनके कुसंस्कार हमें दे गए: मधुबाला जी पन्द्रह अगस्त पर प्रवचन 15 अगस्त आया, प्रेरणा यह लाया, कर्मों को खपाना हैं, सच्ची आजादी पाना है। अंग्रेज चले गए उनके कुसंस्कार हमें दे गए। उक्त उद्गार साध्वी मधुवाला जी ने महावीर भवन स्थानक में 15 अगस्त राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर अपने प्रवचन में व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रीय पर्व पर ध्वजारोहण में जो ध्वज एवं चक्र है वो हमें प्रेरणा देता है कि सर्फ ध्वज वंदन कर लेने से ही 15 अगस्त पर्व मनाना सार्थक नहीं होगा, अंग्रेज आज देश से वर्षों पूर्व चले गए, लेकिन उनके कुसंस्कार हमें दे गए। जिनका परिणाम है कि पूरे देश में अशांति है। पाश्चात्य संस्कृति के कारण हम अमृत कुंड में रहकर भी राष्ट्र का रसास्वादन करने के लिए मजबूर है। आज देश में आर्य सांस्कृति का विनाश हो रहा है। तीर्थंकर का सानिध्य, जिनवाणी की सौगात मिलने के बाद भी यदि हमारी आत्मा दुर्गति की मेहमान बर जाए तो यह हमारा दुर्भाग्य है। जिनवाणी के तत्वों को समझें और जैनत्व के संस्कारों को जीवन में उतारें, तभी कर्मों से मुक्ति होगी तथा सिद्ध दशा प्राप्त हो सकेगी।
पिंजरे से पक्षी और सास के
बंधन से बहू मुक्त होना चाहती है
साध्वी मधुबाला जी ने आगे कहा कि पिंजरे से पंछी मुक्त होना चाहता है, पिता की बंदिश से पुत्र, सास के बंधन से बहू मुक्त होना चाहती है, लेकिन यह स्वतंत्रता तो थोड़े समय के लिए है। हम व्यसन मुक्ति के लिए प्रयत्न करें। व्यसनों का गुलाब, विषय से आशक्त रहने वाला बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। उनसे मुक्त होने एवं कराने का प्रयास करें तभी स्वतंत्रता दिवस मनाना सार्थक होगा। हमारी आत्मा कर्मों से मुक्ति प्राप्त करें, यही सच्ची आजादी है।
जीवों की रक्षा प्रेरणा लेकर रक्षाबंधन पर्व मनाएं- साध्वी सुनीता जी
जीवों की रक्षा प्रेरणा लेकर रक्षाबंधन पर्व को सार्थक करें। भगवती सूत्र में कहा गया है कि धर्मो रक्षितों धर्म:, जो स्वयं धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। उक्त बातें साध्वी सुनीता जी महाराज साहब ने प्रवचन के दौरान कही। आपने कहा कि रक्षाबंधन का दिन पर्व एवं त्यौहार दौनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पर्व में आत्म कल्याण की भावना प्रमुख होती है। आज का मानव अहं में डूबा हुआ है। आपने णमोकार पर विस्तार से प्रकाश डाला।
राष्ट्रीय ध्वज क्या प्रेरणा देता हैं?
हरा रंग-धर्म आराधना के द्वारा सद्गुणों की हरियाली की प्रेरणा हरा रंग देता है। केसरिया रंग- आत्मा की शक्ति का संचार करें प्रभाद को छोड़ आत्मा पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा केसरिया रंग देता है। सफेद रंग- जीवन में सत्य आचरण की प्रेरणा देता है जो कि अरिहंत का प्रतीक है। चक्र-ध्वज के बीच में बना चक्र संसार चक्र से ऊपर उठकर मोक्ष सुख को प्राप्त करने का संदेश देता है।


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