Sunday, June 8, 2008

एड्स ! नहीं हो सका बचाव, सीहोर में एड्स रोगी महिला ने शिशु को जन्म दिया, लेकिन हो गई अनेक चूक...

सीहोर 7 जून (विशेष संवाददाता)। जिला चिकित्सालय में एक एड्स पीड़िता महिला ने गत दिनों स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया है जिसकी खुशी समाये नहीं समा रही है। नवजात के माता-पिता दोनो ही एड्स पीड़ित हैं लेकिन भारतीय शासन के एड्स संबंधी कुछ सख्त नियम हैं कि ऐसे मामले में जिस किसी एड्स पीड़ित महिला का आपरेशन हो उसके आपरेशन संबंधी साजो- सामान को मय सबूत के एक 5 फुट गहरे गड्डे में पाँच लोगों की उपस्थित में दबवा दिया जाना चाहिये तथा इसके सबूत भी रखे जाने चाहिये क्या सीहोर में ऐसा हुआ है ? अथवा जिस सामान से आपरेशन हुआ है आज भी वह सामान अस्पताल में मौजूद है ? और उपयोग हो रहा है ? साथ ही नवजात के जन्म के समय जिन विशेष दवाईयों का उपयोग होना था उनका उपयोग हुआ या नहीं ? क्या सावधानी ही बचाव नहीं बन सकी। एड्स के मामले में जिला चिकित्सालय में हो रही चूकों पर आज आप भी डालिये हमारे एक नजर.....।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार भले ही एड्स पर करोड़ो रुपयों का व्यय कर प्रचार-प्रसार करने में लगे हैं और सावधानी ही रोकथाम अथवा बचाव का नारा पूरे देश में गूंज रहा है लेकिन क्या स्वास्थ्य कर्मी ही इसको लेकर सचेत और गंभीर हैं या नहीं ? यह भी एक चिंतनीय प्रश् है। हालांकि चिकित्सा सेवा में कार्यरत लोगों के प्रशिक्षण समय-समय पर होते रहते हैं कि किस प्रकार एड्स की रोकथाम की जा सकती है। साथ ही सार्वभौम सावधानियों का पालन करने के निर्देश भी दिये जाते रहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार सार्वभौम सावधानियों का पालन करने का निर्देश देता रहता है।
पिछले दिनों सीहोर नगर में एक एड्स से ग्रस्त महिला ने स्वस्थ शिशु को जन्म दिया है। संभवत: सीहोर में यह पहली एड्स पीड़िता के बच्चे का जन्म हुआ है। सीहोर के इंग्लिशपुरा मार्ग निवासी (महिला व पति का नाम प्रकाशित नहीं किया जाना उचित रहेगा) महिला जो मुम्बई की रहने वाली है और पति की सीहोर में एक होटल में नौकरी लग जाने के कारण यहाँ आई हुई थी को जब प्रसव वेदना हुई तो उसे जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया जहाँ उसका आपरेशन करना तय हुआ। चूंकि खून कम था इसलिये उससे अलग से खून दिया जाने की व्यवस्था हुई तो बदले में उसके पति ने भी यहाँ अपना खून डोनेट किया। इसके पति के खून की जांच की गई तो पता चला कि उसे एचआईवी पाजीटिव है और दूसरे चरण में है।
इसकी जानकारी मिलते ही तत्काल इसकी पत्नि गर्भस्थ महिला के खून की जांच भी बारीकी से की गई तब जानकारी सामने आई की उसे भी एचआईवी पाजीटिव है लेकिन प्रथम चरण में है।
इसकी जानकारी जिला चिकित्सालय में दर्ज कर ली गई और उधर आराम से आपरेशन कर दिया गया तथा स्वस्थ बच्चे का जन्म हो गया। यह घटना है करीब दो माह पूर्व की 9 अप्रैल के दिन महिला ने बच्चे को जन्म दिया था।
सूत्र बताते हैं कि जब कभी भी एड्स ग्रस्त खून की जांच सीहोर जिला चिकित्सालय में होती है तो वहाँ जिस सूई, रुई अथवा अन्य सामान का इस प्रक्रिया में उपयोग होता है उसे हाईपोक्लोराईड में गलाकर नष्ट किया जाता है। यहाँ बकायदा एक कर्मचारी सामान नष्ट करने के लिये गड्डा खोदकर गाड़कर भी आता है।
लेकिन जब यहाँ आपरेशन थियेटर में एड्स ग्रस्त महिला का आपरेशन हुआ तो क्या उसके खून से भीगे कपड़े, रुई, सूई, छुरी, ब्लेड, दस्ताने, आदि का सावधानी पूर्वक नष्ट किया गया है ? क्या इसके नष्ट करने के कोई सबूत लिखत पढ़त की गई है।
क्या इन सामानों को लाल डिब्बे में पटकने के बाद किसी गड्डे में सावधानी पूर्वक गड़वाया गया है ? क्या उपयोग किये गये औजार हाईपोक्लोराईड आदि बकायदा विशेष प्रक्रिया के तहत साफ किये गये हैं ? क्या यह सामग्री आपरेशन थियेटर में उपलब्ध है ? क्या 9 अप्रैल को इसका इस्तेमाल हुआ ?
इस संबंध में सिविल सर्जन श्री टी.एन. चतुर्वेदी जानकारी देने से बचे और उन्होने सिर्फ इतना ही कहा कि हाँ एक एड्स पीडिता के बच्चे का जन्म अवश्य हुआ है।
अब अगर सामान नष्ट नहीं हुआ है तो फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार के नियमों और एड्स की रोकथाम के लिये किये जा रहे करोड़ो के खर्च का क्या फायदा ?
जिस महिला को एचआईवी था उसके बच्चे भी दुग्ध पान के बाद इसके संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है यूँ तो आपरेशन के दौरान ही जरा-सी असावधानी से बच्चा संक्रमित हो जाता है लेकिन अब जिस एड्स पीड़िता महिला ने बच्चे को जन्म दिया है वह अभी तक अस्पताल नहीं बुलाई गई है जबकि उसे नवजात शिशु को एड्स से बचाने के लिये अनेक आवश्यक कदम उठाने आवश्यक थे। इसकी भी सावधानी जिला चिकित्सालय प्रशासन ने नहीं रखी है।