आष्टा 22 मई (नि.सं.)। यूँ तो इन दिनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा उनकी धर्मपत्नि क नाम ले-लेकर सीहोर जिले में भ्रष्टाचार चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया है। मुख्यमंत्री व उनकी धर्मपत्नि के नाम से हर एक कार्यालय में अधिकारियों और ठेके दारों के बीच लेन-देन की प्रक्रिया जितनी तेजी से पिछले 2-3 सालों में बढ़ी है उससे नगर में मुख्यमंत्री की छवि और उनके प्रति एक अलग ही वातावरण पूरे नगर में फैलता जा रहा है। हर तरफ अधिकारियों द्वारा फैलाई हुई एक ही चर्चा रहती है कि भोपाल में नोट गिनने वाली मशीनों के लिये चारा एकत्र करने में सीहोर सबसे आगे हैं और इसके लिये सीहोर के अधिकारियों को खुली छूट दे दी गई है।
हालांकि कुछ भाजपा नेता भी इस काम में बहुत तल्लीनता के साथ लगे हुए हैं और वह भी खुले आम अधिकारियों का साथ देकर यह जताने में लगे रहते हैं कि अधिकारी जो कर रहे हैं वही शाश्वत धर्म है...।
इसी तारतम्य में एक किस्सा बड़ा चर्चित हो रहा है... हुआ यह कि तहसील कार्यालय में नगर पालिका के एक अधिकारी गत 19 मई को पहुँचे। इनके हाथ में एक पान का बंडल था.....पान मतलब पान.....अरे भाई आप भी बस समझते नहीं है....स्वयं नगर पालिका के वह संबंधित अधिकारी कह रहे थे कि यह पान का बंडल है....तो फिर हमें क्या मतलब जब कह रहे हैं तो पान ही होगा....उन्होने तहसील कार्यालय में उस अधिकारी जिनके पास यह गये थे उनका पूछा, पता चला कि वह बैठे हुए हैं....फिर उन्होने बाहर से ही किसी से कहा कि जाओ साहब से कहना कि मैं आया हूँ और उनके लिये पान लाया हूँ....अब चूंकि साहब को पान खाते कम ही लोगों ने देखा था इसलिये साहब के लिये कोई पान लाये और वह भी इतना बड़े बंडल में तो स्वभाविक है चर्चा तो होगी ही....बस चर्चा चल निकली।
पान के पैकेट का आकार उतना ही बड़ा था कि समझ लो जैसे 500 के नोटों की 4 गड्डियाँ रखी हों और उस पर कागज लिपटा हो और उस पर पन्नी लगी हो यह पैकेट जैसा हो जायेगा उतना ही बड़ा पान का वह पैकेट था जो नगर पालिका वाले वो अधिकारी जी लाये थे। अब सीहोर का वह कौन-सा पान बनाने वाला है जो इस प्रकार चौकोर बंडल बनाकर देता है और क्या सप्ताह भर के पान इसमें भर देता है यह राम ही जाने....लेकिन यह सच है कि जब पान का बंडल साहब के हाथों में गया तब तक पूरी तहसील में हल्ला मच गया था कि साहब के लिये पान आया है...।
अब बताईये आप.....यूं खुले आम दिन दहाड़े....कोई शासकिय अधिकारी दूसरे विभाग के अधिकारी कर्मचारी से बेचारा पान भी नहीं खा सकता, पान भी खाता है तो लोग तरह-तरह की बातें, काना-फूसी करते हैं...यह भी कोई बात है भला...क्या अब कोई पान भी न खाये...।