सीहोर 9 मई (नि.सं.)। नगर पालिका ने पिछले दिनों अपनी पुरानी लोहे की टंकियों को बिसार कर नई सिंटेक्स की लाखों रुपये की टंकियाँ खरीदी थी ? जो हर एक वार्ड में करीब 2 आ जायें इतनी ली गई थी इनका क्या उपयोग हो रहा है ? यह किस काम की साबित हुई हैं ? और किस काम आ रही हैं ? यह सर्वविदित है ही लेकिन इसके बावजूद अब नये सिरे वापस 10 टंकियाँ खरीदे जाने के बिल नगर पालिका में बनने की चर्चाएं हैं। यह 10 टंकियाँ अब कौन सप्लाई करेगा ? किस भाव में खरीदी जा रही हैं को लेकर भी चर्चाएं सरगर्म हैं ? लेकिन क्या इनकी आवश्यकता है ? क्या आपको पता है कि यह क्यों खरीदी जा रही है।
पिछले दिनों बड़ी-बड़ी काली सिंटेक्स की टंकियाँ नगर के विभिन्न मोहल्लों में आकर रखाई थी। लोग पूछ रहे थे भाई इनका क्या होगा ? इनमें से कुछ में नल लगे फिर इनमें नगर पालिका द्वारा पानी भराना शुरु हुआ। लेकिन इनकी प्रक्रिया कुछ लम्बी नहीं चल सकी। पता चला कि कुछ ही दिनों में आधी टंकियाँ बेकाम हो गई। न तो इनमें पानी भरा रहा था और ना ही पानी भराने से पूरा मोहल्ला इसका उपयोग कर पा रहा था। छोटे-छोटे नलों से आने वाले पानी से 4 केन पानी भराने में इतना समय लग जाता था कि लोग घबराकर वापस चले जाते थे और किसी अन्यत्र स्थान से पानी की जुगाड़ करते थे।
पूर्व में जो सिंटेक्स की टंकियाँ नगर पालिका में आई थी वह लोक निर्माण विभाग के माध्यम से आने की सूचना है। किसी अन्य शासकिय विभाग के माध्यम से आने के कारण इन टंकियों से नगर पालिका के ठेकेदारों को कोई लाभ हानि हुई ही नहीं और लाखों रुपये का काम भी हो गया। हालांकि इस प्रयोग ने ठेकेदारों के लिये नये द्वार अवश्य खोल दिये थे । वह भी सोच रहे थे कि काश उन्हे टंकी सप्लाई करने के आर्डर मिल जाते तो उनके मजे हो जाते....। इधर नगर भर में रखी टंकिया अब धीरे-धीरे अनुपयोगी सिध्द होने लगी है और प्रभावशाली लोग उसका खुद के लिये कैसे उपयोग हो इसकी योजनाएं भी बनाने लगे हैं।
अब नगर पालिका से निकली कुछ अफवाहों पर ध्यान दें तो ऐसा अफवाह चल पड़ी है कि कुछ ही दिन पूर्व कुछ खास लोगों ने गुपचुप बैठक में निर्णय लिया है कि 10 टंकियां और सप्लाई करी जाये जो लाखों रुपये की हों। इसके लिये एक ठेकेदार भी तय कर लिया गया है। यदि अफवाहों पर विश्वास किया जाये तो यह भी बात है कि यह टंकियाँ 2 व 6 हजार लीटर ही खरीदी जायेंगी और इनका मूल्य 6-7 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से भी निर्धारित हो सकता है। इस मान से 6 हजार लीटर की टंकी यदि 7 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से खरीदी गई तो 42 हजार की पड़ेगी।
बाजार में जिनती अधिक लीटर की टंकी खरीदी जाती है उतने ही दाम प्रति लीटर कम होते जाते हैं। सिंटेक्स की बड़ी टंकियों के दाम 4 रुपये 40 पैसे के आसपास होने की संभावना है।
जब नगर में टंकियों को लेकर यादा उत्साह नहीं है, जनता को कोई लाभ नहीं है ? और फिर इनका कोई उपयोग भी नहीं है ? पूर्व की लोहे वाली टंकियों का उपयोग किया ही नहीं जा रहा है ? उनका उपयोग किया जा सकता है। तो ऐसी सब परिस्थितियों में भी यदि फिर टंकी खरीदी जा रही है तो निश्चित ही क्या कारण होंगे इसको लेकर सहज ही अंदाजा लग सकता है।