सीहोर 6 मई (नि.सं.)। नगर भर के शासकिय पेंशन भोगी जिला चिकित्सालय से दवाएं नहीं मिलने के कारण परेशान हैं। वह लगातार जिला चिकित्सालय में दवाएं लेने जा रहे हैं लेकिन वहाँ टालमटोल किया जा रहा है। पेंशन भोगियों ने आज इसकी शिकायत सीधे जिलाधीश से भी की है। जबकि इधर जिला चिकित्सालय में अभी तक दवाईयों का नया ठेका नहीं दिया गया है जिसके कारण दवाईयाँ उपलब्ध नहीं हो पा रही है। लेकिन कुल मिलाकर महिने भर से दवा नहीं मिलने के कारण रोगियाें की हालत पतली होती जा रही है वह खासे हैरान परेशान हैं।
जिला चिकित्सालय में शासकिय पेंशन भोगियों को निशुल्क दवाईयां उपलब्ध कराई जाती हैं इसके लिये बकायदा एक बजट भी ऊपर से शासन द्वारा भेजा जाता है। हर वर्ष जिले अनुसार पेंशनरों की संख्या के अनुमान से जिला चिकित्सालयों को कुछ बजट उपलब्ध कराया जाता है। इस वर्ष भी जिला चिकित्सालय में यह बजट आ चुका है। मध्य प्रदेश शासन ने एक माह पूर्व ही यह बजट की राशि भेज दी है। जो 2 लाख रुपये के आसपास है। इतनी राशि आ जाने के बाद भी नगर के पेंशनर अपनी बीमारियों के इलाज के लिये दवाईयों से मोहताज हैं।
इसके लिये जब वह जिला चिकित्सालय जाते हैं तो वहाँ उन्हे दवाईयाँ नहीं मिल पाती। उन्हे कहा जाता है कि अभी नया टेण्डर नहीं हुआ है इसलिये कृपया थोड़ा रुक जाईये। जबकि पेंशनरों का कहना है कि बीमार व्यक्ति से यह कहा जाये कि वह दवाईयाँ नहीं ले और बाद में ले तो यह कोई हलुवा-पुडी थोड़े ही जो बाद में भी खाई जा सकती है। यह औषधि है जो शरीर के अति आवश्यक रहती है। पेंशनरों का कहना है कि इस उम्र में उन्हे दवाईयों की अतिआवश्यकता होती है और ऐसे में यदि उन्हे दवाईयाँ मिलने में बिलंब हो जाता है तो निश्चित ही उन्हे परेशानी आती है।
उल्लेखनीय है कि जिला चिकित्सालय में गत वर्ष जिस मेडिकल वाले ने इस खाते में दवाईयों प्रदान की थी उसने 23 प्रतिशत दवाईयों के प्रकाशित मूल्य से कम दाम में दवाईयाँ जिला चिकित्सालय को दी थी। जिसके चलते बड़ी मात्रा में पेंशनरों को दवाईयाँ उपलब्ध हो सकीं और उनका बजट भी चलता रहा। लेकिन इस वर्ष जब तय तिथि को निविदा बुलाई गई तो इस बार नगर के दवा विक्रेताओं ने सांठ-गांठ कर निविदा में मात्र 10 प्रतिशत ही कम मूल्य किया है। 23 प्रतिशत सीधे 10 प्रतिशत पर राशि आ जाने से यह ठेका नहीं दिया जा सका क्योंकि शासकिय नियम है कि गत वर्ष गये ठेके की राशि के आसपास ही आगामी ठेका भी जा सकता है। ऐसी स्थिति में 1 अप्रैल को हुए टेण्डर निरस्त कर पुन: निविदा बुलाई गई और 17 अप्रैल के आसपास जब पुन: निविदाएं आमंत्रित की जाकर खोली तब तो हद ही हो गई। दवा दुकानदारों ने मिल जुलकर नया खेल खेला और 10 प्रतिशत से भी कम मात्र 7-8 प्रतिशत तक का मुनाफा देने की बात कही।
इस पर जिला चिकित्सालय प्रबंधन ने उक्त मामला अटका दिया है। लेकिन इस दौरान नया बजट आ जाने के बावजूद अभी तक दवाईयाँ नहीं मिलने से कुपित पेंशनरों ने आज जिलाधीश को ही इस मामले से अवगत करा दिया है।
सूत्रों का कहना है कि पूर्व के टेण्डर जिलाधीश की स्वीकृति से ही निरस्त किये गये हैं। अब जानकारों का कहना है कि यदि जिला चिकित्सालय प्रशासन नये टेण्डर आमंत्रित किये बिना ही गत वर्ष के टेण्डर को कुछ समय के लिये आगे बढ़ा देता है तो निश्चित ही पुन: 23 प्रतिशत कम राशि में दवाईयाँ पिछले साल का ठेकेदार देना शुरु सकता है। इस प्रकार जो 2 लाख रुपये का बजट आया है वह शीघ्र समाप्त नहीं होगा।
जो भी हो, बुजुर्ग पेंशनर खासे परेशान है, कईयों की बीमारियाँ कुछ गंभीर हैं जिन्हे दवाईयाँ नहीं मिलने के कारण परेशानी उठाना पड़ रही है। अच्छा हो कि जिला चिकित्सालय प्रशासन इस मामले में शीघ्र अतिशीघ्र कोई कारगर कदम उठाये।