Sunday, March 9, 2008

...और मारे भय के कलेक्टरी का शुध्दीकरण करवा डाला ( फागुन हास्‍य समाचार )

सीहोर। कलेक्टर कार्यालय में विगत कुछ दिनों से यह भ्रम फैला हुआ है कि यहाँ की दशा बिगड़ गई है, अब तरह-तरह के भ्रम और बातें तो यहाँ आम बात हैं ही क्योंकि पिछले कुछ दिनों से यहाँ आये दिन कुछ न कुछ गड़बड़ झाला हो ही रहा है। कभी कोई आंदोलन कारी आ जाते हैं, कभी घेराव हो जाता है। तरह-तरह के अपशकुन भी यहाँ होने लगे थे। पिछले कुछ दिनों से कुछ लोगों की छांव भी यहाँ गलत पड रही थी और कुछ लोग यहाँ से दूर भी हो गये थे। पूर्व के अनुभवी बाबु लोगों का मानना था कि गलत लोगों की संगत और छांव पूरी कलेक्टरी पर पड़ रही है, उसी के परिणामस्वरुप निरन्तर कोई ना कोई हानि हो रही है। बुरी छांव पड़ने का उतारा कैसे हो यह किसी को मालूम नहीं था....क्योंकि आजकल यहाँ अच्छी सलाह देने वाले कम ही आते हैं...और जो आते हैं वो ऐसा निपटवाते हैं बेचारा कोई समझ ही नहीं पाता कि उसके साथ कब ? कैसे ? किस प्रकार ? क्या हुआ है ? सीहोर में भी ऐसे महारथियों की कमी नहीं है जिनके पांव पढ़ते ही अच्छे-अच्छों की तबियत नासाज हो जाती है...तो चर्चा थी कि हो सकता है इसी का कुछ बुरा असर हो गया है। इधर लगातार बुरी छांव पढ़ने के फल भी देखने को मिलने लगे थे, कभी कहीं किसी का विवाद हो जाता था, कभी कहीं कोई बदमिजाज हो जाता था, कभी कहीं कोई अच्छे माहौल को बिगाड़ जाता था, कभी कोई तनाव की स्थिति पैदा हो जाती थी, कभी-कभी तो स्थिति इतनी विकट हो जाती थी कि लेने के देने पड ज़ाते थे और फिर पिछले दिनों महाशिवरात्री पर तो हद ही हो गई जब जबरन की कालदशा ने आकर घेर लिया। इसके पीछे किसका हाथ हो सकता है इतनी बुध्दी तो यहाँ किसी की नहीं चल पाई लेकिन भारतीय व्यक्तियों में जन्मजात कुछ संस्कार तो होते ही हैं उसी के परिणामस्वरुप न जानते हुए भी शुध्दीकरण का एक टोटका तो यहाँ कलेक्टरी में करवा ही दिया गया है।
गणपति जी का नाम लेकर यहाँ कलेक्टरी की कल धुलवाई करवाई गई। धुलवाई क्या थी शुध्दीकरण समारोह था जिसमें कलेक्टरी प्रांगण से लेकर दरवाजे के बाहर तक बकायदा सड़क की धुलाई अग्निशामक वाहन से हुई, कारखाने के श्रमिकों के टेंट तक की अच्छी धुलाई हुई ताकि कहीं कोई बुरी बला आदि हो तो शुध्दीकरण से दूर हट जाये और इस प्रकार कुछ निश्चिंतता आई है। वैसे ही पतझड़ के मौसम में आये दिन कई पत्तियाँ पेड़ों का साथ छोड़कर हवाओं में गोते लगा रही हैं...धुल भरी हवाएं भी चल ही रहीं हैं....जो आये दिन सबकुछ धूलमधूल कर देती हैं...फिर होली आने ही वाली हैं जहाँ सारे चेहरे एक रंगे में रंग जायेंगे तो फिर ऐसे मौसम में शुध्दीकरण क्यों कराया गया इसको लेकर चर्चाएं हैं और कलेक्टरी में इसी पर हास्य उत्पन्न हो रहा है।