सीहोर 15 नवम्बर (विशेष संवाददाता)। विधानसभा चुनाव में गौरव सन्नी महाजन के रुप में भाजपा के बागी प्रत्याशी ने खड़े होकर पहले ही दिन से चर्चाओं को जन्म दे दिया था। सन्नी के खड़े होते ही एक ऐसी हवा चली कि हर तरफ सन्नी की ही बातें चल पड़ी। असल में जब भी किसी बड़ी पार्टी का पारम्परिक प्रतिद्वंदी पार्टी के प्रत्याशी का विरोध करके खड़ा होता है तो उसकी हवा बहुत तेजी से बनना शुरु हो जाती है...सन्नी की हवा चौराहों पर पिछले सप्ताह भर से लगातार बनी हुई थी जो आज शनिवार तक धीरे-धीरे खिसकती नजर आने लगी है। उधर रमेश सक्सेना की भारतीय जनता पार्टी हो या स्वदेश राय के रुप में कांग्रेस पार्टी दोनो को ही स्थिर रुप में देखा जा रहा है। अब धीरे-धीरे अगले 5 दिनों में बहुत कुछ स्थितियाँ स्पष्ट होने लगेगी। अभी चुनाव का ऊँट सिर्फ पानी पी रहा है, वह बैठा नहीं है...वह किस करवट बैठेगा इसे स्पष्ट अभी से कहना जल्दबाजी हो सकती है। अब आगामी दिन सभाओं और रैलियों को समर्पित रहेंगे जिसके चलते नित नये समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे....हम भी इन चुनावी स्थितियों पर निगाह रखते हुए हर दिन कुछ कुछ विशेष सामग्री प्रस्तुत करेंगे।
यदि किसी क्षेत्र में कोई बड़ा नेता लम्बे समय से काबिज हो तो उसका विरोध करने वाले की चर्चाएं स्वभाविक हैं। सीहोर में भारतीय जनता पार्टी के दो बार विजयी प्रत्याशी रहे रमेश सक्सेना का घोर विरोध मदनलाल त्यागी गुट और महाजन गुट हमेशा से करता रहा है...इनका विरोध रमेश सक्सेना के भाजपा में प्रवेश के साथ ही शुरु हो गया था जो निरन्तर चलता रहा...लेकिन इस बार वर्ष 2008 के चुनाव में तो त्यागी और महाजन गुट एक साथ सक्सेना का विरोध करते नजर आये।
इधर आमजन में सन्नी महाजन चूंकि आज तक कभी चुनाव नहीं लड़े हैं और युवा नेता के रुप में पहचाने जाते हैं, वह लगातार सक्रिय रहते हैं तो वह रमेश सक्सेना के विरोधियों के लिये एक आकर्षक व्यक्ति के रुप में उभरने लगे...पिछले चुनाव में भी उन्होने विरोध किया था और चुनाव के दौरान वह अलग-थलग खड़े रहे थे और इस चुनाव में तो सन्नी ने अपने समर्थकों के कहने पर चुनाव ही लड़ लिया है।
सन्नी रमेश सक्सेना के पारम्परिक विरोधी होने के कारण ही सर्वाधिक चर्चाओं में है। ठीक वैसे ही जैसे अटल, आडवाणी, सोनिया, राहुल जैसे दिग्गज नेताओं के सामने जब कोई खड़ा होता है तो उसकी भी चर्चाएं शुरु हो जाती हैं ठीक ऐसी ही चर्चाएं सन्नी के लिये चल रही हैं। स्वभाविक रुप से जैसे ही सन्नी महाजन ने अपना नामांकन दाखिल किया पूरे नगर के हर एक चौराहे पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक रमेश सक्सेना की खिलाफत करने वाले के रुप में उनकी चर्चाएं हर एक चौराहे पर होने लगी...यह चर्चाएं बहुत तेजी से शुरु हुई और लगातार होती चली गई....सन्नी क्या करेगा ? सन्नी के साथ कितने लोग हैं....सन्नी की कितनी पैठ है....सन्नी के कितने समर्थक हैं....सक्सेना के कितने विरोधी हैं जो इसका साथ देंगे.... से लेकर जाने कितनी तरह की बातें इस विरोधी प्रत्याशी के कारण जन्म ले चुकी थी, हर मतदाता के जहन में प्रश्ों का अंबार था और वह चौराहों पर चर्चा के दौरान उन्ही प्रश्नों का हल ढूंढ रहा था जिसके चलते स्वयं ही सन्नी चौराहों की राजनीतिक चर्चाओं का केन्द्र बिन्दु बन गया था। और यह बातें चौराहों पर बहुत तेजी से हो रही थी इसलिये हर तरफ सिर्फ सन्नी ही सन्नी नजर आने लगा था। लेकिन धीरे-धीरे यह बातें खत्म होने की स्थिति में आ गई हैं।
जिस 6 नवम्बर को निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में भाजपा के बागी ने नामांकन भरा उस से लेकर आज 15 नवम्बर शनिवार तक चर्चाओं का बाजार सरगर्म थी। लेकिन अब मतदान को मात्र 12 दिन शेष रह गये हैं...अब चौराहों की चर्चाएं भी गंभीर होने लगी है। अब हकीकत की बातें होने लगी हैं। कौन वाकई में वजनदार है ? किसके पास कितने मत पहले से मौजूद है ? किसकी झोली में कौन-सा वोट जायेगा ? किसकी झोली में कितने वोट पहले से ही भरे हुए हैं और उसे कितने की जुगाड़ बैठानी है ? इन विषयों पर चौराहों की चर्चाएं शुरु हो गई हैं....चर्चाओं के विषय बदल जाने से अब किसी एक प्रत्याशी की हवा नहीं बन पा रही है। स्थिति बहुत विकट और असमंजस पूर्ण बन रही है। चौराहों पर भाजपा, कांग्रेस और जनशक्ति तीनों ही प्रत्याशियों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं।
इधर विधायक रमेश सक्सेना और लोकप्रिय समाजसेवी अखलेश स्वदेश राय के मैदान में होने से दोनो की ही वजनदारी दिख रही है। भाजपा जहाँ कार्यकर्ताओं के दम पर वजनदार है वहीं अखलेश स्वदेश अपनी लोकप्रियता का लाभ उठाने की योजना में है।