Friday, September 12, 2008

डोल ग्यारस पर्व पारम्परिक उत्साह व धूमधाम से मना बड़ा बाजार में सभा के कारण अखाड़ो का मार्ग बदलवाया

सीहोर 11 सितम्बर (नि.सं.)। नगर के सांस्कृतिक उत्सव डोल ग्यारस पर आज नगर में सुबह से ही उत्साह था। विभिन्न राधेश्याम मंदिरों से जुड़े भक्तों व पुजारियों ने एक दिन पूर्व से ही मंदिर के निकलने वाले पारम्परिक डोल की सजावट शुरु कर दी थी। कस्बा क्षेत्र के मंदिरों में जहाँ डोल देर रात सजते रहे वहीं बढ़ियाखेड़ी, गंज के मंदिराें में डोल कल से ही सजा लिये गये थे। आज सुबह से ही पूजा-पाठ का क्रम जारी था। अपने निर्धारित समय से पर आज डोल मंदिरों से निकले। पुलिस प्रशासन द्वारा किये गये आग्रह का अनुपालन भी किया गया और डोल बहुत शीघ्रता से शाम होते-होते कोतवाली चौराहा पर पहुँचने लगे थे। उधर सीवन नदी घांट पर नगर पालिका से जैसी अपेक्षा हो सकती है वैसी ही व्यवस्थाएं यहाँ देखने को मिली। आज भाजपा की बड़ा बाजार में हो रही सभा के कारण चले रहे सारे अखाड़ो को दूसरे मार्ग से निकाला गया।
नगर का पारम्परिक डोल ग्यारस उत्सव पर आज पूरे नगर में उत्साह का माहौल था। जैसे-जैसे शाम आती जा रही थी, भगवान के डोल के दर्शन और उनकी आरती-पूजा करने को लेकर उत्साह भक्तों में बनता जा रहा था।
शाम निर्धारित समय पर आज कोतवाली चौराहा तक सभी प्रमुख मंदिरों के डोल पहुँच चुके थे। जिनका क्रम भी बन गया था। सबसे आगे पारम्परिक रुप से बड़ा मंदिर का ऐतिहासिक डोल कंधो पर सवार था। जबकि इसके अलावा सारे पीछे वाले डोल रथों पर अर्थात ठेलों पर सजाये गये थे। आगे-आगे बड़ा मंदिर बढ़ियाखेड़ी का डोल चलना शुरु हुआ जिसके साथ महंत भी चल रहे थे। बड़ा मंदिर के डोल के भक्तों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण इसके दर्शनार्थी पूजन आरती तो कर रही रहे थे भगवान के डोल के नीचे से निकलकर उनका आशीर्वाद भी ले रहे थे।
इसके पीछे राजपूत मंदिर गाड़ी अड्डा का डोल था जिसे पं. संतोष जी साथ में चल रहे थे। इसके पीछे हरदौल लाला मंदिर का डोल था। इसके पीछे के क्रम में अधिकारी मंदिर बढ़ियाखेड़ी का डोल था, जिसके साथ महंत हरिदास जी चल रहे थे। उसके पीछे नरसिंह मंदिर, रामकुईया मंदिर पं. सुरेश जी, फिर गंज के प्रसिध्द समाधिया मंदिर का डोल था जिसके स्वयं पुजारी जी चल रहे थे। इसके पीछे राम मंदिर लुनिया मोहल्ला का डोल फिर राधेश्याम मंदिर गंज कोली मोहल्ला, राधेश्याम मंदिर बढ़ियाखेड़ी के साथ पुजारी वृंदावन दास जी भी चल रहे थे। राधेकृष्ण मंदिर गंज कुम्हार मोहल्ला के युवाओं ने इस बार विशेष रुचि का परिचय देते हुए भगवान का रथ एक ट्रेक्टर-ट्राली पर तैयार कराया था। प्रजापति समाज के युवाओं ने इसको लेकर उत्साह दिखाया। इनके पीछे श्रवण का बगीचा स्थित सिध्द हनुमान मंदिर का डोल था। उखल दास मंदिर बड़ियाखेड़ी के पीछे राठौर मंदिर गंज का डोल, इसके पीछे बालरुप हनुमान मंदिर शकर फे क्ट्री चौराहा का डोल, उसके पीछे स्वर्णकार समाज का डोल, पीछे विश्वकर्मा मंदिर पुराना बस स्टेण्ड, इसके पीछे बसोड़ मोहल्ला गंज स्थित मंदिर का डोल था।
इनके सबके पीछे आज भी विशेष विद्युत साज-सजा के साथ कोलीपुरा तिराहे स्थित श्री नरसिंह भगवान मंदिर का डोल था जिसकी आकर्षक विद्युत सजा दूर से ही दिख रही थी।
हालांकि आज पुलिस हर डोल के साथ चल रही थी, अखाड़ो को आगे बढ़ाने के लिये निरन्तर प्रयासरत थी ताकि जुलूस शीघ्रता से निपट जाये इसके बावजूद शाम 8 बजे तक डोल निकले।


पूरे बड़ा बाजार में अखाड़े नहीं जमने दिये
सीहोर। आज डोल ग्यारस के अखाडे पुलिस ने कथित धमकियाँ देकर बड़ा बाजार में घुसने ही नहीं दिये। अखाड़े वालों ने जब कहा कि हमें अंदर जाने दो तो उन्हे पुलिस ने कहा कि मजिस्ट्रीयल आदेश हैं कोई अंदर नहीं जायेगा और इस प्रकार अखाड़े वालों को खजांची लाईन छावनी से प्रवेश कराया। जिसके कारण अखाड़े बड़ा बाजार में आज जम ही नहीं पाये।

भक्त डोल के नीचे से निकले
सीहोर। पारम्परिक रुप से सिर्फ दो ही डोल एक बड़ा मंदिर का प्राचीन डोल और दूसरा नरसिंह मंदिर कोलीपुरा का डोल निकला जो भक्तों ने अपने कंधे पर लिया हुआ था। सीहोर में यह परम्परा है कि डोल के नीचे से भक्तजन निकलते हैं। आज अनेक लोग इन दोनो ही डोल के नीचे से निकले और भगवान का वंदन किया। उनका आशीर्वाद लिया।


आष्टा में निकले डोल
आष्टा। आज आष्टा में डोल ग्यारस पर रात्री में परम्परागत मार्ग से नगर के सभी प्रमुख मंदिरों से डोल निकले। जो विभिन्न मंदिरों से प्रारंभ हुआ। नगर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ पार्वती नदी पहुँचा यहाँ पर पूजा एवं प्रसाद वितरण किया गया।
रात्रि में नगर के सभी प्रमुख मंदिरों के बाहर डोल रखाये जहाँ पर सैकड़ो की तादात में महिलाएं पहुँची व भगवान की पूजा अर्चना की।


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