Wednesday, August 13, 2008

क्या करोगे जमीन का...? (विशेष टिप्‍पणी)

सीहोर (आनन्द) पूरी घांटी पर आतंकवाद का साया है और इन्हे जरा-सी जमीन चाहिये, पूरी घाटी बर्वाद हो जाये इन्हे मतलब नहीं बस यह जमीन हमें दे दो। दे दो क्योंकि तुमने वादा किया था, इसलिये वादा तो निभाना पड़ेगा। घर में यदि कोई बच्चे से खिलोने दिलाने का वादा कर लो फिर पूरा करना पड़ता है, वरना वो इतना मचलेगा कि मचल-मचलकर पागल कर लेगा, रोने लगेगा, दूसरे खिलौने तोड़ने लगेगा क्योंकि तुमने जिस खिलोने को दिलाने का वादा किया था वह नहीं दिला रहे। यह उसका हक है, वो बच्चा है, जिद तो करेगा ही और फिर बच्चों की जिद तो अनोखी ही होती है। उसे राह चलते कोई पुल पसंद गया तो बस फिर पूरा देश जल जाये भले आग में, उसे तो वो पुल चाहिये तो चाहिये, आप उसे मना थोड़े ही सकते हो कि बेटा चुप हो जा।
पूरा देश आग के हवाले है, हर रोज विस्फोट हो रहे हैं, आतंकवाद के खिलाफ कोई आंदोलन करने वाला मैदान में आने को तैयार नहीं है, संसद पर हमला हो गया किसी को मतलब नहीं है, सैकड़ो बम फूट गये जिसमें हजारों लोग मर गये, सैकड़ो घर बर्वाद हो गये, किसी की आंख में आंसू नहीं रहे, पूरा कश्मीर आतंकवाद के घेरे में हैं, सिर्फ सैना के दम पर कश्मीर सुरक्षित बचा है जब तक सैना है तब तक कश्मीर है। हर दिन धमकियां मिल रही हैं। तुम इतने भयभीत हो कि तुम्हारे एक मंदिर में सिर्फ बम की अफवाह से तुम ऐसे घबराकर भागे कि जाने कितने तो आपस में ही कुचलाकर मर गये। इससे बड़ी शर्मनाक घटना और क्या हो सकती है।
शोले का डायलाग याद गया जब गब्बर कहता है यहाँ से पचास-पचास कोस की दूरी पर जब कोई बच्चा रोता है तो उसकी माँ कहती है बेटा सो जा वरना गब्बर सिंह जायेगा। यहाँ तो गब्बर रुपी आतंकवाद का 50 कोस नहीं बल्कि पूरे देश में सिर्फ बच्चों पर नहीं बल्कि प्रोढ़ पीढ़ी में ऐसा भयाक्रांत डर बैठा है कि वो अफरा-तफरी में मर जाती है। आतंकवाद फैलाने वालों को जितनी खुशी बम फोडने पर नहीं हुई होगी शायद उतनी खुशी इस मंदिर में घटी घटना पर हो गई होगी, वह उनके द्वारा फैलाये आतंक का भय देख खुश हुए होंगे।
जब पूरा देश ही हमारा है तो फिर जरा-सी जमीन के लिये चक्काजाम की क्या जरुरत है। और तुमसे जब आज तक कश्मीर में अपनी जनसंख्या नहीं बढ़ाते बनी, देशद्रोहियों और आतंकवादी विचारधारा को बढ़ने से तुम नहीं रोक सके, तुम अपनी बात वहाँ नहीं पहुँचा सके, तुम्हारे पंडितो को वहाँ से खदेड़ कर भगाया गया तुम आज तक वापस नहीं लौट सके, तो अब इत्ती-सी जमीन पर क्या भटे-भाजी उगाओगे। कौन-सा विकास हो जायेगा? क्या तुम सुरक्षित हो जाओगे ? जरा-सी जमीन के लिये जाने कितने लोग मरवा दिये। वो चीन के कब्जे का मानसरोवर तुम्हारे लिये मुद्दा नहीं है क्योंकि राजनीतिक रोटियाँ नहीं सिकती, भोलेनाथ के मूल स्थान के लिये कभी संघर्ष की बात तुम्हारे मुख पर नहीं आई क्योंकि उससे तुम्हे राजनीतिक लाभ नहीं, तुम्हे तो बस राजनीतिक मुद्दे चाहिये, वरना जमीन की तुम्हे क्या जरुरत, तुम चाहो तो वैसे ही पूरा कश्मीर तुम्हारा है। तुम्हे कितने रोका है, आगे तो बढ़ो.....


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