Saturday, July 19, 2008

आज कस्बे के अनेक घरों में बनेगा हलुआ, कुछ बांटेंगे भी, आप चाहें तो पहुँच जायें

सीहोर 18 जुलाई (नि.सं.)। जी हाँ धार्मिक क्षेत्र कस्बा में आज अनेक घरों में शुध्द घी का हलुवा बड़ी मात्रा में बनेगा और घर भर के लोग हलुवा खायेंगे। जहाँ यादा बन जायेगा वहाँ प्रसाद के रुप में बांटा भी जायेगा। यदि आप चाहें तो अपने किसी परिचित कस्बाई के यहाँ आज अवश्य पहुँच जायें वह आपको निश्चित शुध्द घी का हलुवा खिलायेगा।
कस्बा की यह परम्परा एक दूसरी परम्परा की देन है। जहाँ भारतीय संस्कृति में पूजन-पाठ और कथाओं का महत्व है वहीं प्रसाद का भी उतना ही महत्व रखा गया है। इसी तारतम्य में आषाढ़ के शुक्ल पक्ष के विगत 15 दिन और आज पूर्णिमा तक पूरे कस्बा में हर दिन आधा से एक दर्जन घरों में भगवान श्री सत्तनारायण जी कथा हो रही थी। यह तो एक बात रही दूसरी विशेषता क स्बा क्षेत्र में और है वह यह कि जो कथा कराता है उसके यहाँ आधा-एक किलो प्रसाद नहीं बल्कि करीब 40 से 50 किलो प्रसाद बनाया जाता है। अब जब हर दिन 8-10 जगह कथा होगी और हर जगह 40-50 किलो प्रसाद बांटा जायेगा तो अंदाज लगा सकते है कि कितना खुलकर और बड़ी मात्रा में कथा में आने वाले भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। हर दिन इतना प्रसाद कथाओं से बंटता है कि लगभग प्रतिदिन 1 किलो एक घर में प्रसाद चला जाता है। जिन घरों में बच्चे यादा है, अथवा सदस्यों की संख्या अधिक है वहाँ हर दिन 3-4 किलो प्रसाद तक एकत्र होता है।
अब यह तो नहीं हो सकता कि किसी भक्त के यहाँ एक दिन पहले का प्रसाद रखा है इसलिये आज हो रही कथा का वह प्रसाद नहीं लेगा। कस्बे में भक्ति का स्वरुप ही बड़ा निराला है। सो हर दिन भक्तजन कथा में भी पहुँचते हैं और जमकर प्रसाद भी लेते हैं। और फिर जब आज पूर्णिमा के दिन कथा उत्सव समाप्त हो जाता है तो पता चलता है कि घरों-घर कई किलो सत्तनारायण भगवान का शुध्द घी का आटे की पंजीरी वाला प्रसाद एकत्र हो गया है। अब इतना अधिक प्रसाद जो विगत 15 दिन से अनवरत लाया जा रहा था उसे भक्त जन आखिर करें तो क्या करें ? और खायें भी कितना खायें। इस मजबूरी में अधिकांश लोग एक म के दिन इस प्रसाद का हलुवा बना लेते हैं। हलुवा भी इतनी बड़ी मात्रा में बनता है कि फिर जो भी उन्हे नजर आता है उसे हलुवा खिलाये बिना नहीं छोड़ा जाता। चाहे वो ना भी खाना चाहे लेकिन बड़े प्रेम से, पूरे सत्कार से उसके किसी भी तरह मनाकर, घर तक ले जाते हैं और उसे हलुवा अवश्य खिलाते हैं। तो अब यदि आप भी आज हलुवा खाना चाहें तो प्रसाद के रुप में ही सही, अपने किसी परिचित कस्बाई को अवश्य ढूंढ लें। एक-दो बड़े परिवार वाले (जैसे वो एक भाजपा नेता का परिवार)जिनके यहाँ यादा ही प्रसाद एक त्र हो जाता है निश्चित ही आज न सिर्फ घर से बल्कि दुकान तक ले जाकर हलुवा अपने मित्रों को खिलायेंगे।


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