Wednesday, July 30, 2008

जन्म को सार्थक कर मुत्यु को महोत्सव के रूप में मनावें- साध्वी मधुबाला जी

आष्टा 29 जुलाई (नि.सं.)। धर्म की आराधना मनुष्य भव में होती है,ज्ञानियों ने कहा है कि जन्म लिया है तो मृत्यु तो निश्चित होगी। जन्म मृत्यु के बीच के जीवन को जीने की कला सीखकर जन्म को सार्थककर मृत्यु को महोत्सव के रूप में मनावें।
उक्त बातें मधुर व्याख्यानी श्री मधुबाला जी ने रविवार को अपने प्रवचन के दौरान श्री महावीर भवन स्थानक में कही। आपने आचार्य श्री सौभाग्यमल जी महाराज साहब के चीैबीसवें पुण्य स्मरण दिवस पर कहा कि उन्होंने अपना जीवन बाल्यकाल में दीक्षा लेकर सफल बना लिया था, आपका आर्शीर्वाद आज भी साधु संतों के अलावा श्रावक श्राविकाओं को भी मिल रहा है। आपने कहा कि पत्थर के समान मनुष्य जीवन है जिसे कोई तराशने वाला मिल जावें तो यह जीवन सफल हो जावेगा। जिस प्रकार राह पड़ा पत्थर किसी कलाकार के हाथ में आ जावें तो वह उसे तराशकर मूर्ति का रूप दे देता है,ठीक इसी प्रकार व्यक्ति किसी संत के सानिध्य में आकर अनिष्ठ अवगुणों को त्यागने और गुरू के सानिध्य में गुणों का स्वीकार कर लेंवे तो वही मनुष्य जीवन जीने की कला सीख लेता है। महापुरूषों ने जीवन इसी प्रकार लिया है और उनका जीवन एक खुली किताब के समान रहा है। अवसर का लाभ अप्रमादी उठायेगा आलसी नही है। मधुबाला जी ने प्रमाद को आराधना का सबसे बड़ा दुश्मन बताया है।
अज्ञान के अंधकार में भटकने प्राणी को ज्ञान के प्रकाश में गुरूवर लाते है- सुनीता जी।
अज्ञान के अंधकार में व्यक्ति भटक रहा है, उसे अगर गुरू मिल जावें तो ज्ञान के प्रकाश में आ जावेगा। जीवों का जन्म व मरण दिवस मनाया जाता है। उक्त बातें साध्वी श्री सुनीता जी महाराज साहब ने प्रवचन के दौरान कही। सौभाग्यमल जी महाराज हसाब के चौबीसवें पुण्य स्मरण दिवस पर उनके ऊपर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि किशनलाल जी महाराज साहब ने इन्हें चौदह वर्ष की आयु में दीक्षा देकर वो सभी गुण दिये जो एक अच्छे साधु में होना चाहिए। सौभाग्यमल जी महाराज ने अनेक धर्मग्रंथों का अध्ययन कर जिनवाणी के जादूगर बन गये थे।
सुनीता जी ने कहा कि नवकार महामंत्र के सार को समझ कर आराधना करके परमेष्ठी के लिए भी आराध्य बन सकते है। नवकार अत्यंत पुण्य से मिला है आपने कहा कि नवकार में तीसरा पद आचार्य भगवान का है जो कि संघ के नायक,संघ के अनुपाष्ठा कहलाते है। आचार्य की चार विशेषताएॅ आपने बताई जिसमें दुराचार का निवारण,सदाचार का स्वंय पालन करना व कराना, वह विशिष्ठ ज्ञानी होती है, वे सदा सजग रहते है और आचार्य महाराज संघ के रक्षक होते है। सुनीता महाराज ने निवी तप पर अपने विचार प्रकट करते हुए बताया कि एक निवी तप से करोड़ो वर्षो में नरक में रहने से जो कर्म नही कटते वह केवल एक निवी तप से कट जाते है।


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