Tuesday, April 22, 2008

एड.धीरज धारवां की सोच जन जन की सोच बनना चाहिये

आष्टा (सुशील संचेती)। खबर भले ही छोटी सी हो , उस समाचार पत्रों में भले ही प्रमुखता से प्रर्याप्त स्थान नही दिया गया हो लेकिन आष्टा जैसे उन्नति शील, प्रगतिशील, उच्च सोच रखने वाले नागरिकों के इस छोटे से शहर के एक जुनियर अधिवक्ता ने जो एक अनुकरणीय उदाहरण, देश, प्रदेश, समाज और जन-जन के सामने रखा है इसकी जीतनी भी हो प्रशंसा की जाना चाहिये कम है । उनके द्वारा किये गये अनुकरणीय कार्य को जन-जन तक पहुंचा कर जन-जन को प्रेरित किया जाना चाहिये क्योंकि आज लक डी माफीयाओं द्वारा अधिकारियों कर्मचारियों से मिलकर जिस प्रकार हरे भरे म.प्र. को बंजर और रेगिस्तान बनाने के प्रयास किये जा रहे है । वो पूरे प्रदेश के लिए एवं प्रकृति के लिए गहरी चिन्ता ओर सभी के लिए चिन्तन का कारण बना है और बनना चाहिये । जो कार्य जुनियर अधिवक्ता धीरज धांरवा ने गत दिवस अपने जन्मदिन पर जन्मदिन को पाश्चात्य संस्कृति के अनुरूप नही मनाते हुए उन्होंने अपने जन्मदिन पर कई जगाहों पर वृक्षारोपण कर पौधा के साथ मनाया भले ही उनका यह कार्य छोटा हो, कईयों ने इसे हंसी में भी उड़ाया होगा । कईयों ने उनके इस अच्छे प्रयास को सस्ती लोकप्रियता हासिल करने वाला माना होगा । लेकिन मेरी दृष्टि में धीरज ने अपने जन्मदिन पर ऐसा कार्य किया है जिसकी हर स्तर पर हर क्षैत्र में प्रशंसा कर सीख लेने की आवश्यकता है । जो कार्य धीरज धारवां ने किया ऐसा ही विचार वन-विभाग आष्टा को महिनों पूर्व आया था । उसने एक योजना बनाई थी कि आष्टा में वन-विभाग एक स्मृति वन विकसित करना चाहता है । इस स्मृति वन में प्रत्येक परिवार का सदस्य अपने या परिवार के किसी भी सदस्य के जन्मदिन, शादी की सालगिरह या किसी की भी स्मृति में चिरस्थाई बनाने के लिए उस दिन को यादगार दिन के रूप में याद करने के लिए उक्त स्मृति वन में आये और पौधे लगाये उसका अलग -अलग शुल्क भी तय किया था । स्मृति वन की योजना वन विभाग की अच्छी थी लेकिन लाल बस्ते में दब गई । इसी प्रक ार म.प्र. की वर्तमान सरकार ने भी बंजर हो रहे जंगलों के प्रति चिन्ता कर प्रदेश को हरा-भरा करने के लिए दो वर्षो से प्रदेश में बरसात के मौसम में हरियाली महोत्सव शुरू किया दो वर्षो में पूरे प्रदेश में लाखों पौधे लगाये, करोड़ो रुपये खर्च किये लेकिन क्या परिणाम देखा कि जितने खर्च किये और जितने पौधे रोपे उनमें से आज कितने जीवित है और कितने काल के मुंह में चले गये क्या उक्त योजना का सही मायने में क्रियान्वयन, देखरेख हुई है शायद नही क्योंकि हरियाली महोत्सव धरती को भले ही हरा भरा नही कर गया होगा ऐसे लोगो को तीसरे हरियाली महोत्सव का इंतजार है जो 2-3 माह बाद आने वाला है। ऐसे में एक व्यक्ति ने बंजर जमीन को हरा-भरा करने का बीड़ा उठाया है । उसका श्री गणेश आष्टा में किया है क्योंकि आष्टा ऐसा शहर है जहां के बुजुर्ग, युवा, बच्चे व्यापारी एक पार्क के लिए वर्षो से तरस रहे है । आष्टा नगर पालिका के अध्यक्ष कैलाश परमार ने अपने प्रथम पांच वर्ष के कार्यकाल एवं वर्तमान दूसरे कार्यकाल के वर्षो में नगर विकास के अनेकों कार्य किये विकास के कई अध्याय लिखे लेकिन उन लिखे अध्यायों की पुस्तक में आज भी आष्टा को हरा भरा पार्क देने में कैलाश परमार असफल रहे है । जनता की पार्क की उम्मीद पर कैलाश परमार अपने कार्यकाल में खरे नही उतरे है । क्या वे शेष बचे कार्यकाल में आष्टा को हरा भरा पार्क दे पायेंगे ? यह धीरज धारवां ने अपने जन्मदिन को जिस प्रकार वृक्ष-मित्र के रूप में मनाया इससे प्रेरणा लेकर जन-जन को ऐसा सोचना चाहिये अगर आष्टा को नागरिक ऐसा सोच कर ऐसा करते हे तो निश्चित आष्टा पूरे देश के लिए एक उदाहरण तो बनेगा प्रदेश और देश को हरा-भरा करने में यह एक मिल का पत्थर साबित होगा । धीरज को फुरसत की और से बधाई कि उन्होंने प्रदेश को हरा-भरा करने के उद्देश्य से जन्म दिन को वृक्ष-मित्र दिवस के रूप में मनाया नही तो आष्टा सिद्धीकगंज क्षैत्र में ऐसे भी लकड़ी माफीयाओं ने वन-विभाग के लोगो से मिलकर हरे-भरे इस क्षैत्र में हजारों पेडो को काट कर क्षैत्र का बाजार बनाने के लिए कार्य किया है जिसकी गुंज सिद्धीकगंज से लेकर भोपाल तक गुंजी थी । आज जिस प्रकार प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ा है वर्षा आस्थिर हुई है मौसम बिगड़ा है यह सब वृक्षो की अंधा धुध कटाई के कारण ही हुआ है ऐसे में प्रदेश को बंजर और रेगिस्तान बनाने से रोकने तथा प्रदेश को हरा-भरा म.प्र. बनाने के लिए जो कार्य अधिवक्ता धारवां ने किया ऐसा कार्य हर आम और खाम को करने के लिए आगे आना होगा ऐसे लोगों का शासन और प्रशासन को भी सहयोग और सम्मान करना चाहिये । वही जो वृक्ष लगाये उसे इस प्रकार पाल पोशकर बढा करने की भी जिम्मेदारी निभाना होगी जैसे एक नवजात शिशु को पाल-पोश कर उसे बढा करने के लिए एक माता-पिता और परिजन करते है । लगाये पौधो को भी अपने परिवार का ही एक सदस्य मानना चाहिये तो ही यह अभियान जमीन से आसमान तक पहुंच पायेगा।