Wednesday, February 6, 2008

जब तुम मेरा सम्मान नहीं करते....मैं क्यों ध्यान रखूं

सीहोर 4 फरवरी (घुम्मकड़)। कल एक नगर की सबसे महत्वपूर्ण संस्था की बैठक में प्रतिनिधि और उनके अध्यक्ष आमने-सामने बैठे थे। बैठक क्या थी खिचड़ी पक रही थी कि आगे कैसे कमाई जारी रखी जाये....एक ने कहा ''अरे अध्यक्ष जी आप हम लोगों का बिल्कुल ध्यान नहीं रखते हैं पूर्व में जो वो अध्यक्ष थे बड़े दमदार थे, उनके कार्यकाल में बड़े मजे रहते थे वो सबका ध्यान रखते थे आपके राज में तो दो-तीन ही खुश हैं...'' इस पर अध्यक्ष बोला ''नहीं भाई ऐसा नहीं है हम सबको साथ लेकर चलेंगे''
कब......! यह बात फिर सारे जनप्रतिनिधियों ने एक साथ कही। फिर एक के बाद एक यह सारे बोलना शुरु हो गये ''आपका शासनकाल बड़ा दुखदाई है....बस आपके दो-तीन अपने वाले ही मजे कर रहे हैं.... हमारी तरफ ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है....हमारी भी आपको व्यवस्था करानी चाहिऐ....कम से कम महिने में 5 हजार रुपये तो स्थायी रुप से आप दिया कीजिये....बल्कि खास त्यौहारों पर तो 10 हजार रुपये की व्यवस्था करानी चाहिऐ....इनमें एक सबसे मोटा आदमी भी बैठा था वह अचानक बोल पड़ा अरे मैने जीप-कार ले ली है तो इसका मतलब यह थोड़े ही कि मेरे पास रुपया है, मैने सब कमाया है तो क्या आपके कारण....मेरी स्थिति बहुत विषम चल रही है...मेरा तो कोई ध्यान ही नहीं रखता....मेरी पत्नि भी आपका साथ देती है फिर मेरी जेब का साथ देना आपका कर्तव्य है....। कर्तव्य की बात होते ही सबने फिर कहना शुरु कर दिया हाँ...हाँ यह सही कहता है आपका कर्तव्य है कि अपने-अपने वालों को ही नहीं बल्कि हमें भी कुछ दो, और ना दो तो कम से कम 5-5 हजार रुपया महिना ही दो....। फिर सबने पुराने अध्यक्ष को याद करना शुरु कर दिया कि वो कितने अच्छे थे....सबका ख्याल रखते थे....उनके जैसा कोई नहीं.....''
अचानक सामने बैठे अध्यक्ष की सहनशक्ति जबाव दे गई वो बोला ''....भैया तुम्हारा क्या गया....मेरे तो बैठे ठाले इस अध्यक्ष बनने के चक्कर में 5 करोड़ का नुकसान हो गया....मेरा तो पारम्परिक धंधा चौपट हो गया....उसकी भरपाई भी करनी है....वो कैसे होगी....मैं तुम्हारा ध्यान क्यों रखूँ....मेने तुम्हे इतना माल काम दिया तुमने कभी मुझे बुलाकर मेरा सम्मान भी किया...? फिर मैं तुम्हारा ध्यान क्यों रखूं....।'' अध्यक्ष के 5 करोड़ की बात सुनकर सारे बेचारे जनप्रतिनिधि चुप हो गये....वो मन ही मन सोच रहेथे....हाँ भई हाँ इसका नुकसान बड़ा है पहले इसकी पूर्ति हो जाये....बैठक में गहन चिंतन का माहौल छा गया....सब चुप होकर सोचने लगे। 2 घंटे चली इस चिंतन बैठक का निष्कर्ष क्या ? निकला यह किसी ने खुलकर नहीं कहा लेकिन निष्कर्ष सबको मन ही मन मालूम था....।