आष्टा 30 सितम्बर (सुशील संचेती) 1952 के बाद इस बार म.प्र. के इतिहास में पहलीबार हुआ है कि चुनाव को लेकर म.प्र. में परम्परागत प्रतिद्वंदी समय से काफी पहले चुनाव की जंग को लेकर तैयारियों में जुट गये है। हर बार जब भी विधानसभा के हो या लोकसभा के चुनाव हो राजनीतिक दल म.प्र. में भाजपा कांग्रेस अन्यदल जिनकी उपस्थिति से आज तक म.प्र में कुछ भी भाजपा-कांगेस (अन्य दल जिनकी उपस्थिति में आज तक म.प्र. में कुछ भी भाजपा-कांग्रेस का नहीं बिगड़ा) चुनाव को लेकर कमर कसकर के तैयार तभी होती थी जब चुनाव का बिगुल बज जाता था लेकिन इस बार सब कुछ अलग-अलग ही नजर आ रहा है क्योंकि अभी तो चुनाव को काफी समय है यहां तक की आचार संहिता कब लगेगी यह भी तय नहीं है कुछ का मानना है कि नवरात्रि शुरु होते ही आचार संहिता लग जायेगी कुछ का अन्य मत है लेकिन इस बार म.प्र. में भाजपा ने आने वाले विधान सभा के चुनाव को और उसके बाद होने वाले लोकसभा के चुनाव को लेकर ऊपर से लेकर मतदान केन्द्र तक की तैयारी लगभग पूरी कर 25 सितम्बर को भाजपा के जम्बूरी मैदान में भाजपा कार्यकर्ता महाकुंभ का एतिहासिक आयोजन कर कार्यकर्ताओं की शपथ दिला दी की वे नवम्बर में होने वाले विधान सभा चुनाव से पुन: भाजपा की सरकार बनायेंगे और लोकसभा के चुनाव में कही से भी पीछे नहीं रहेंगे। इस मामले में कांग्रेस भाजपा से काफी पीछे नजर आ रही है लेकिन टिकटों को लेकर वो काफी गंभीर नजर आ रही है लेकिन बड़े नेताओं की गुटबाजी म.प्र. में पचौरी को परेशान किये हुए है म.प्र. कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेश पचौरी के लिए नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव उनकी आगे की लाइन और उनका राजनीतिक भविष्य तय करने वाले होंगे।
1952 से 2003 तक म.प्र. में 11 विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हुए है इसमें आष्टा विधानसभा सीट पर भाजपा (जनसंघ) ने 8 बार तथा कांग्रेस ने 4 बार अपनी जीत दर्ज की है। एक मात्र विधायक रणजीतंसिंह गुणवान ऐसे है जिन्होंने लगातार दो बार चुनाव जीतकर विजय दर्ज की है 2003 के चुनाव में भी गुणवान को ही टिकिट दिया गया था जिन्होंने प्रचार तक शुरू कर दिया था लेकिन एन वक्त पर उनके स्थान पर रघुनाथ मालवीय को भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित कर हलचल पैदा कर दी थी लेकिन लहर ने उनका पूरा साथ दिया और वे विजय रहे लेकिन अब उन्हें एक नहीं अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि जो ध्यान उन्हें जीतने के बाद रखना था वे कुर्सी पद पाकर एक तरह से वो भूल गये थे जो उन्हें याद रखना था अगर वे याद रखते तो आज कड़े विरोध का सामना नहीं करना पड़ता इस बार विरोध के और ऊंचे स्वर उनके लिए टिकिट के लाले पड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
फुरसत ने 1952 से लेकर 2003 तक का ब्यौरा आष्टा विधानसभा चुनाव के लिए एकत्रित किया है जो पाठकों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
1952 में म.प्र. विधानसभा के लिए हुए प्रथम चुनाव में यहां से कांग्रेस ने खाता खोला था और आष्टा के चन्दनमल बनवट ने घनश्याम सेठ पालीवाल को हराया था। 1957 में आष्टा से दीवानचन्द्र महाजन ने जन संघ से विजय हासिल कर तरकी मसरी को हराया। 1962 में कांग्रेस के उमराव सिंह ने जनसंघ के गोपीदास गोयल को हराया इस चुनाव में सिंह को 16104 एवं गोयल को 10861 मत प्राप्त हुए थे। 1967 में गोपीदास गोयल जनसंघ ने कांग्रेस के उमराव सिंह को हराया। इस बार गोयल को 22771 एवं सिंह को 15770 मत प्राप्त हुए थे।
1972 में पुन: उमराव सिंह कांग्रेस से चुनाव लडे और विजय हुए उन्होंने जनसंघ के उम्मीदवार नन्दकिशोर खत्री को हराया इस चुनाव में सिंह को 25998 एवं खत्री को 18095 मत प्राप्त हुए थे। 1977 में नारायण केसरी को आष्टा से मैदान में उतारा और केसरी विजय हुए केसरी ने कांग्रेस के बंशीदास को हराया इस चुनाव में केसरी को 31044 एवं दास को 20294 मत प्राप्त हुए थे।
1980 के चुनाव में देवीलाल रेकवाल भाजपा से मैदान में आये और विजय हुए उन्होंने कांग्रेस के राजाराम झा को हराया। इस चुनाव में रेकवाल को 21693 एवं झा को 18390 मत प्राप्त हुए थे 1985 के चुनाव में शिक्षक की नौकरी छोड कर उमरावसिंह के पुत्र अजीतसिंह को कांग्रेस ने एक नये युवा चेहरे को मैदान में उतारा और उसे सफलता मिली जीतसिंह ने भाजपा के देवीलाल रेकवाल को हराया। इस चुनाव में जीत सिंह को 32479 एवं रेकवाल को 28286 मत प्राप्त हुए।
1990 के चुनाव में भाजपा ने अपने पुराने निष्ठावान जमीनी कार्यकर्ता नन्दकिशोर खत्री को मैदान में उतारा खत्री का मुकाबला कांग्रेस के नये उम्मीदवार बाबूलाल मालवीय से हुआ जिसमें मालवीय पराजित हुए इस चुनाव में खत्री को 37537 मत एवं मालवीय को 24726 मत प्राप्त हुए लेकिन ढाई वर्ष में भाजपा की सरकार को राम मंदिर मुद्दे पर जाना पड़ा और 1993 में चुनाव हुए जिसमें भाजपा ने नये चेहरे के रूप में रंजीतसिंह गुणवान को मैदान में उतारा वही कांग्रेस ने अजीतसिंह को मौका दिया लेकिन अजीतसिंह को हार का सामना करना इस चुनाव में गुणवान को 49030 मत एवं अजीतसिंह को 36453 मत प्राप्त हुए।
1998 में जब चुनाव हुए तो भाजपा ने रंजीतसिंह गुणवान को पुन: मैदान में उनकी छवि मिलन सार व्यवहार के कारण उतारा कांग्रेस ने इस बार बाबूलाल मालवीय को मैदान में उतारा गुणवा ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर बता दिया की जनता उन्हें ही चाहती है। इस चुनाव में गुणवान को 40066 मत प्राप्त हुए वही मालवीय को 32005 मत प्राप्त हुए। 2003 के चुनाव में एक अलग ही लहर कांग्रेस के खिलाफ नजर आ रही थी क्योंकि लगातार 10 वर्षो के दिग्विजय सिंह के शासन में म.प्र. में बिजली, सड़क, पानी भ्रष्टाचार का जो आलम रहा जिससे प्रदेश की आम गरीब जनता, किसान, व्यापारी परेशान हो चुका था। भाजपा ने इस चुनाव में उमा श्री भारती को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत कर चुनाव लडा और एक चौथाई से अधिक बहुमत प्रदेश में भाजपा को मिला।
2003 के चुनाव में भाजपा ने एक वक्त पर घोषित रंजीत सिंह गुणवान के स्थान पर रघुनाथसिंह मालवीय को जिन्होंने की सफेद झंडे के तले अपना नामांकन जमा किया था को भाजपा से प्रत्याशी घोषित कर दिया वही कांग्रेस ने अजीत सिंह को मैदान में उतारा लेकिन कांग्रेस विरोध लहर में जीत सिंह हार गये और रघुनाथ सिंह मालवीय जो वर्षो से आष्टा का विधायक बनने का सपना देख रहे थे विधायक बन ही गये इस चुनाव में मालवीय को 51503 मत प्राप्त हुए थे वही अजीत सिंह को 40851 मत मिले थे और इस तरह 1952 से लेकर 2003 तक हुए 12 चुनावों में आष्टा से भगवा परचम ही अधिक लहराया अब 2008 के चुनाव का बिगुल बज चुका है तरकसों में तीर रखा गये है बस दोनों दलों से उम्मीदर कौन होगा का इंतजार जनता जनार्दन को है एक बार फिर भाजपा से रघुनाथ सिंह मालवीय प्रयास में है लेकिन 5 साल के कारनामें उनका पीछा नहीं छोड रहे है वही इस बार पहली बार ऐसा हो रहा है कि जनता भाजपा से रंजीतसिंह गुणवान की बात कर रही है वही कांग्रेस में भाजपा से अधिक घमासान मचा है लेकिन ऐसे संकेत मिल रहे है कि भाजपा इस बार नया युवा चेहरा मैदान में उतारेगी वो चेहरा कौन होगा यह भी पिटारे में बंद है सभी को भाजपा और कांग्रेस के पिटारे के खुलने का इंतजार है देखना है कि क्या भाजपा इस बार के चुनाव में अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल हो पायेगी या फिर कांग्रेस लगातार पिछले चार बार की हार का बदला विजय श्री का वरण करके लेगी । इस बार भाजपा और कांगस्रस को आष्टा विधानसभा क्षेत्र में थोड़ा थोड़ा नुकसान भाजशा और बसपा दे सकती है लेकिन आष्टा में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही रहेगा क्योंकि इन दोनों नये दलों का क्षेत्र में कोई खास वर्चस्व कहीं नजर नहीं आ रहा है इस बार भाजपा और कांग्रेस से टिकिट की मांग करने वालों की लम्बी सूची दोनों दलों के पास पहुंची है इस कारण दोनों दल पशोपेश में भी है।