Wednesday, September 24, 2008

दलालों की दलाली से मचा दलदल से परेशान हुए दावेदार

आष्टा 23 सितम्बर (नि.प्र.)। किसी बीमारी का अगर शुरुआती लक्षण नजर आने की उचित इलाज मिल जाये तो वो बीमारी बड़ा रुप नहीं लेती है और समय पर इलाज हो जाने से बीमारी जड़ मूल से खत्म होकर आगे सुख देती है लेकिन मजे में आकर जो मौत को भूल जाता है। उसे बाद में पछताना पड़ता है ऐसा ही हो रहा है इन दिनों भाजपा के एक टिकिट के दावेदार के साथ जिसे अब डीपी के उन दलालों ने दलदल में ऐसा फंसाया है कि वो दलाली की मीठी सुई अभी तक तो मजे दे रही थी लेकिन अब दलालाें की दलाली की वो सुई टिकिट की दावेदारी में छोटी नहीं बड़ी परेशानी का कारण बनती जा रही है। कहते हैं जब व्यक्ति को अनायास पर कुर्सी, प्रसिध्दि, मान-सम्मान सबकुछ अचानक मिल जाता है। तो वो सबकुछ इसमें भूल जाता है और ऐसे व्यक्ति के चारों और ऐसे चापलूस, दलाल और समय की राजनीति करने वाले जुड़ जाते हैं और इन जुड़े लोगों से ऐसा व्यक्ति ऐसा घिर जाता है की उसे यह भी भान नहीं रहता है कि आज मैं जो कुछ हूँ वो किसके कारण हूँ कैसे हूँ ? किसे मुझे साथ रखना चाहिये किससे मुझे दूर रहना चाहिये ? यह सब भूल जाता है और उसके परिणाम आज देखने सुनने और पढ़ने को मिल रहे हैं कि चापलूसों दलालों, स्वार्थियों से घिरने का परिणाम यह आ रहा है कि क्षेत्र की जनता जो सबकुछ है वो उनसे कोसो दूर हो गई है। डीपी की दलाली जहाँ जा रहे हैं वहाँ वो पीछा नहीं छोड़ रही है।
अभी तक आमजन कार्यकर्ता मौन था अब तो उक्त दावेदार के खिलाफ आमजन कार्यकर्ता खुलकर बैठकों में बोल रहा है यहाँ तक की परेशान लोगों ने अपनी भावना से संगठन को भी अवगत करा कर कह दिया भैया देखना, सोचना और फिर निर्णय लेना।