Sunday, August 10, 2008

हाँ यही है हाईटेक पत्रकारिता...(टिप्‍पणी)

सीहोर (आनन्द)। भूल जाओ अखबारों के संवाददाता वाला युग, आज हर संवाददाता एक वैतनिक कर्मचारी है, कुछ कर्मचारी हैं कुछ अधिकारी हैं, किसी शराब के ठेके की तरह सबका अपना-अपना क्षेत्र है, किसी के पास किसी क्षेत्र का ठेका है किसी के पास कोई और क्षेत्र है। आज हर ठेकेदार पूरी गुण्डागर्दी के साथ अखबार चलायेगा, जो लेगा उसे देगा और जिसे वो खुद देना चाहेगा उसे भी अखबार देगा, उसे लेना भी पड़ेगा.... नहीं लेगा तो उसकी खैर नहीं... हर ठेकेदार अपने क्षेत्र का यस बॉस है....उसके क्षेत्र में उसके पसंद के शासकिय विभाग में उसकी दादागिरी है....वो जैसा चाहेगा विभागों को निपटायेगा....उस पर दबाव बनायेगा....मोटी रकम वसूलेगा और फिर अपने हिसाब से खबर लगायेगा....। शराब के नशे से बढ़कर इस ठेके का नशा इसके सिर चढ़कर बोलता रहेगा। इसके क्षेत्र में आने वाले लोगों को इसे उठकर सलाम ठोकना ही पड़ेगा....जो नहीं ठोकेगा उसके लिये अखबार का ठेकेदार सारे साम-दाम लगायेगा। बात सिर्फ खबरों की सीमित नहीं रहेगी, फिर उसके खिलाफ वो अभियान चलायेगा, या तो जैसी चाहेगा वैसी खबर लगायेगा या फिर उस अधिकारी के पेरों में गिरकर जी हुजूरी करके, तलुए चाटकर उसका प्रिय वफादार हो जायेगा, उसकी यह अदा अब सभ्य पत्रकारिता की भाषा में एक कुशल व्यापारिक पत्रकार के रुप में देखी जायेगी....।
अब यह अखबार का अधिकारी सिर्फ अधिकारी नहीं है बल्कि बड़ा दमदार रुपये वाला है। 5-10 लाख रुपये में इसे अखबार का ठेका मिला है तो वसूलेगा भी सही। ठेका चलाने और वसूली करने के लिये फिर इसे कुछ गुण्डों की सहायता ही क्यों न लेनी पड़े, अब यह इसका हक है...अब यही जमाना है....जिसकी लाठी उसकी भैंस...कहावत बहुत पुरानी है लेकिन अब नये युग में यह कहावत पत्रकारिता के क्षेत्र में...नई परिभाषा के साथ सिध्द बैठेगी।
अब अखबार किसी भी क्षेत्र का सबसे प्रभावी व्यावसाय होगा....और अखबार चलाने वाला बड़ा दमदार व्यापारी....उसकी दमदारी हर तरह की होगी....वो पुराने अंदाज का युग गया जब दो जोड़ी कुर्ते और जेब में सिर्फ एक पेन के दम पर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारिता करते थे। अब जमाना बदल गया है...बदल रहा है....और अभी और भी बदलेगा....शायद जेम्सबाण्ड की उस फिल्म की तरह जिसमें एक बड़ी समाचार कम्पनी घटना होने के पहले ही खबर छाप देती है कि ऐसी घटना होने वाली है....और फिर घटना अपने ही गुण्डो-गुर्गो से करवाती है...आज सिर्फ हाथों में पेन नहीं बल्कि मोबाइल है, आज सिर्फ एक संवाददाता नहीं है बल्कि 10-10 कर्मचारियों का कार्यालय है और वो पत्रकार कम ठेकेदार उस अखबार के कार्यालय के यस-बॉस हैं....आज उनके पास ताम-झाम हैं...जमाना बदल रहा है आज उनके पास सारी व्यवस्थाएं हैं....सारी कलाएं हैं...। हाँ यही तो है हाईटेक पत्रकारिता...।


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