Wednesday, July 23, 2008

अंग्रेज तो चले गये लेकिन अपनी पाश्चात्य संस्कृति छोड़ गये

आष्टा 22 जुलाई (नि.प्र.)। आज देश से अंग्रेज चले गये लेकिन ये अपनी पाश्चायत्य संस्कृति छोड़ गये। आज समाज में लड़के लड़कियो में संस्कारों की कमी होती जा रही है। असंस्कारों के कारण सदगुण दुर होते जा रहें है। टीवी मोबाईल कम्प्यूटर से अंस्कारो के गुण मिल रहै है। जिसके जिम्मेदार स्वयं माता पिता है आधुनिक युग की चका चौध में लड़के लड़कियां के पहनावें पर कटाक्ष करते हुर्वे। महाराज सा.ने बताया कि लड़किया धर्म स्थान पर ऐसे पहनकर आती है कि उन्हे बंदना करने में परेशानी होती है। कभी कभी तो हम पहचान ही नही पाते है कि यह वह लड़की है या लड़का ।
उक्त उद्गार चार्तुमास हेतु विराजित पूज्य साध्वी जी महाराज सा.श्री मधुबाला जी ने आज स्थानीय महावीर भवन स्थानाक में प्रवचन के दौरान कहे। मा.सा.ने आगे कहा कि अंग्रेजी पढाई के कान्वेट स्कूलो ने राष्ट भाषा हिन्दी को पीछे छोड़ दिया जिसके कारण बच्चों में आदर सत्कार विचार नम्रता सब दूर होते जा रहे है। बच्चों को संस्कार देना धर्म आराधना से जोड़ना माता पिता का दायित्व है जिस प्रकार कुम्हार मिटटी को कुट कुट कर मटका बनाता है उसी मिट्टी से दीपक बताता,गुलदस्ता बना सकता है। स्वर्णकार सोने के टुकडे से चुडी मंगलसूत्र, अंगुठी, चेन व अन्य आभूषण बना सक ता है,ठीक उसी प्रकार हम अगर बच्चों को संस्कार नही दे पाये तो सप्ताह में 1 दिन रविवार को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक बच्चों को धार्मिक शिविर में यहॉ भेजकर बच्चों के जीवन में संस्कारो का निर्माण करा सकते है। इस अवसर पर सुनिता मा.सा.ने कहा कि आज का मानव क्रोध का जीवन जी रहा है। अंहकार के द्वारा अपने जीवन को नर्क के द्वार ले जा रहा है ज्ञानी कहते है कि क्रोध कि चार दिशाऐं है क्रोध मद,माया,लोभ,जिसके अस्त्तिव में मनुष्य जन्म जन्मांतर भटकता ही जा रहा है याने हम टुट सकते है पर झुक नही सकते। क्रोध के कारण रावण कंस,कौरव का वंश नष्ट हो गया था। जैन दर्शन में रावण को प्रतिबासुदेव के नाम से जाना जाता है रावण विभीषण,कुंभकरण ये तीनो विद्याओं का अध्यन करने गये। विभीषण एवं कुंभकरण चार चार विद्याओं का अध्यन किया जबकि रावण हजारों विद्याओं का स्वामी था कौरव संख्या में 100 थे जबकि पॉण्व 5 भाई थे, याने पाण्डव से 19 गुना कौरव ज्यादा थे। पाण्वों ने अंहकार का विर्सजन कर भगवान की शरण में गये और कौरव अहंकार के मद् में थे आखिर में परास्त होना पड़ा। रावण इतनी विद्या का ज्ञाता होने के बाद भी एक जरा से अंहकार के कारण चौथे नर्क में दुख भोग रहा है। आज से प्रवचन मे दसवें पंचम चरित्र का वाचन शुरू किया गया है।


हमारा ईपता - fursatma@gmail.com यदि आप कुछ कहना चाहे तो यहां अपना पत्र भेजें ।