Monday, July 14, 2008

मांसाहारी दुकानों पर मिल रहा भगवान का प्रसाद, क्या आप भी ऐसा ही भोग लगा रहे!

सीहोर 13 जुलाई (विशेष सं.)। भारतीय हिन्दु धर्म में अण्डे को मांस की श्रेणी में रखा गया है, जहाँ अण्डे का खाना तो दूर स्पर्श तक वर्जित माना गया है। ऐसे में सीहोर नगर के धार्मिक हिन्दु लोग बहुत बड़ी संख्या में ऐसी दुकानों से भगवान को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद, भोग मिठाई खरीद रहे हैं जहाँ मांस अर्थात अण्डे से बनी खाद्य सामग्रियाँ मिलती हैं। वही दुकानदार एक तरफ अंडे के पास रखी मिठाई तौलता है और ग्राहक खुशी-खुशी भगवान का चढ़ाने पहुँच जाता है। ईश्वर की आराधना में सर्वप्रथम नियम शुध्दता का है चाहे मन की हो या तन की, शुध्दता आवश्यक है। भगवान को प्रसन्न करने के लिये जो भोग आप लगा रहे हैं यदि वही अशुध्द है तो फिर आप स्वयं पाप के भागी बन जाते हैं। मंहगी और बड़ी दुकानों पर मिल रही इस नापाक मिठाई से क्या भगवान प्रसन्न होंगे या फिर भक्त को कष्ट ही उठाने पड़ेंगे यह तो आध्यात्म का विषय है लेकिन धर्म का विषय यही है कि ऐसी दुकानों से भगवान को चढ़ाने के लिये सामान नहीं खरीदा जा सकता....क्या आप किसी मांस, मछली बिकने वाली दुकान पर रखी मिठाई खरीदकर भगवान के मंदिर ले जाना पसंद करेंगे ?

हाय-री शान-शौकत, इस शान के चक्कर में सारा का सारा धर्म ही भ्रष्ट होता जा रहा है। एक रुपये की गोली नहीं 5 रुपये की केडबरी या किटकेट बच्चे खायेंगे तब ही आपकी शान बढ़ेगी फिर भले ही केडबरी में कीड़े हों या ना हो, कोई मेहमान आयेगा तो उसके बाजार का शीतल पेय ही पिलाया जायेगा घर का नीबू शरबत या लस्सी नहीं, पिजा खाना शान है और बड़ी होटलों पर बैठकर मंहगा खानपान हमारी इात, और अब भगवान को साथ ले लिया गया है उनकी पूजन में शान जितनी बढ़े उतना पूजन करने का मजा आता है, शांति से की गई पूजा तो आजकल कई यजमानों को समझ ही नहीं आती। इसी क्रम में आती है मिठाई, जो अक्सर भगवान को चढ़ाने के लिये मंहगी से मंहगी खरीदकर ले जाना शान समझा जाने लगा है।

मांस के साथ शुध्द घी की मिठाई

बात हिन्दु धर्म की मान्यताओं और शाकाहारियों को लेकर चल रही है। विचार कीजिये की आप जब घर में भोजन शुध्द करना पसंद करते हैं, रसोई घर की साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं, आप जब हर किसी ढाबे पर भोजन करने के पहले यह सोचते हैं कि यहां मांस तो नहीं बनता और जहाँ बनता है वहां खाने से आप बचते हैं ? किसी ताजा बकरा, मुर्गा, सुअर गोश्त मांस लटकाकर बिकने वाली दुकान पर रखी शुध्द घी की मिठाई आप नहीं खाना पसंद करते तो फिर अंडा यदि आप मांसाहार मानते हैं जो हिन्दु धर्म में मांसाहार ही है उस अंडे के साथ रखी मिठाई आप कैसे शुध्द मान लेते हैं ? और ऐसी अशुध्द मिठाईयाँ जो आप स्वयं नहीं खा सकते उन्हे भगवान को कैसे चढ़ाया जा सकता है ?

मांसाहारी दुकान है या शाकाहारी

ज्ञातव्य है कि नगर में अनेक बड़ी नामचीन दुकान ऐसी हैं जहाँ अनेक तरह की मिठाईयाँ बड़ी मात्रा में बिकती है। जैसे रसगुल्ला, चमचम, रस मलाई से लेकर शुध्द घी के पेड़े और लड्डु भी मिलते हैं, लेकिन इन्ही दुकानों पर अंडे का केक, अंडे की पेस्टी, अंडे का क्रीम रोल, अंडे के बिस्कुट और जाने क्या-क्या मांस का सामान मिलता है। ऐसी स्थिति यह दुकानें मांसाहारी दुकान है या शाकाहारी यह आप ही तय कीजिये। क्योंकि जब किसी भोजनालय पर शाकाहारी लिखा होता है तो वहाँ न अंडा आता है न ताजा मांस, और जिस भोजनालय दुकान पर अंडे से बनी खाद्य सामग्री बिकती है वह मांसाहारी भोजनालय कहलाता है। इस तर्ज पर यह मिठाईयाँ जिन दुकानों पर मिलती है वह मांसाहारी दुकानें या शाकाहारी आप स्वयं तय करें।

तो मांसाहारी दुकान की मिठाई से प्रसन्न हो जाईये गणेश जी

तो फिर इन मांसाहारी दुकानों पर बिकने वाली खाद्य सामग्री स्वयं ही दूषित मानी जानी चाहिये। यदि कोई मांस की दुकान पर सुअर-मछली-बकरे-मुर्गे के मांस बेचने वाला दुकानदार आपसे कहे कि साहब मेरी दुकान में भोजन कर लीजिये आपको हाथ धोकर शुध्द बना दूंगा तो उस दुकान में रखे मांस के साथ भी आप भोजन करेंगे या नहीं ? क्या वह भोजन देने वाला शुध्द होगा ? क्या उसके बर्तन शुध्द होंगे ? यदि आप सोचते हैं कि बेचने वाले ने हाथ धोकर खाद्य सामग्री दी है इसलिये शुध्द है तो यह आपका सोच हो सकता है न तो धार्मिक मान्यता इसे मान्य करेगी न हिन्दु धर्म के भगवान इसे स्वीकृति दे सकते हैं। इसलिये कम से कम भगवान को चढ़ाने के लिये ऐसी मिठाईयों से तौबा की जानी चाहिये जो मिठाईयाँ मुर्गी के अंडे से बनी खाद्य सामग्री के साथ बेची जाती है। वरना अब यदि आप ऐसी दुकानों से मिठाई खरीदकर भगवान को चढ़ायेंगे तो फिर यही कहियेगा कि मांसाहारी अण्डे की दुकान के चढ़ावे से प्रसन्न हो जाईये भगवान....।

नगर के अधिकांश प्रसिध्द मंदिरों में चढ़ावे के लिये आये दिन भक्तगण मिठाईयाँ इन्ही दुकानों से खरीदते हैं। जिन दुकानों पर मांस अण्डे की खाद्य साम्रगी बिकती है वहीं से अनजाने में देवभक्त मिठाई खरीदकर भगवान को भोग लगा बैठते हैं, सिर्फ ऊपर की पेकिंग, दुकान की रौनक, डिब्बे की चमक और मंहगी होने से मिठाई शुध्द नहीं हो जाती। लेकिन इस तरफ सीहोर के भक्तों का कभी ध्यान ही नहीं जाता।

वो कहते हैं अब मत छापना

कुछ दुकानदार फुरसत पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे थे कि अब फुरसत में पेस्टी, क्रीम रोल, केक, बिस्कुट जैसी अण्डे से बनी खाद्य सामग्री के लिये कोई खबर प्रकाशित न की जाये, उनका कहना था कि इससे उनके धंधे पर विपरीत असर पड़ेगा। हमने उनसे राष्ट्र व संस्कृति की रक्षा में सहयोग देने की मांग करते हुए कहा कि आप अण्डे से बनी सामग्री बेचना बंद क्यों नहीं कर देते लेकिन इससे ऐसे दुकानदार बचते नजर आ रहे हैं ? एक दुकानदार का कहना था कि अब तो सबका धर्म भ्रष्ट हम कर ही चुके हैं तो अब बेचने में जाता ही क्या है ?

सीहोर के पंडित भी मौन

सीहोर में कुछ एक ऐसे पंडितगण जो पूजन-पाठ कराते हैं, वह किसी पूजन कर्म के समय नियम कानून तो खूब बताते हैं, अपना पांडित्य भी यजमान पर झाड़ने से नहीं चूकते बल्कि पूजन के समय नये कपड़े पहनने, पूजन की सामग्री की शुध्दता से लेकर अन्य सब बातों का बारीकी से ध्यान रखते हैं लेकिन कभी यह मार्गदर्शन नहीं देते कि किस दुकान से मिठाई लाना है। यजमान महंगी और शुध्दघी मिठाई लाया सिर्फ यहीं तक उनका सोच रहता है। हालांकि कुछ पंडित मार्गदर्शन भी देते हैं और कोई दुकान विशेष अथवा मावे की ही मिठाई लाने का कह देते हैं लेकिन अन्य इस तरफ ध्यान नहीं देते।

यदि प्रारंभ से ही ऐसे पूजन पाठी पंडितगण इस तरफ सीहोर के नागरिकों, भक्तगणों का ध्यान दिलाकर रखते तो निश्चित ही जाग्रति आ जाती। हिन्दु समाज को दिशा देने का काम वैसे ही प्रारंभ से ही ब्राह्मण समाज का है। देखते हैं अब कितना ध्यान रखा व रखाया जाता है।

विशे ष - सीहोर के जैन, ब्राह्मण और बनिये खा रहे हैं खुले आम ‘’अण्डे’’ कहीं आप तो इनमें शामिल नहीं... गत सोमवार को प्रकाशित उक्‍त समाचार पर उपरोक्‍त समाचार से संदर्भित है


ईपता - fursatma@gmail.com यदि आप कुछ कहना चाहे तो यहां अपना पत्र भेजें ।