Monday, July 14, 2008

इंदोर कर्फ्यू के दहशत भरे वे पाँच दिन

अमनाथ श्राईन बोर्ड से जमीन वापस लेने के विषय पर भाजपा व विहिप द्वारा बंद के नाम पर की गयी हिंसा की जितनी निंदा की जाये उतनी कम है ऐसा लगता है प्रदेश भाजपा तो ऐसे मूड की तलाश में जैसे भूखी बैठी थी तभी तो अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने मे भाजपाईयों ने कोई कसर नही छोड़ी। इसका प्रत्यक्ष साक्षी मैं स्वंय आष्टा से इंदौर महानगर तक की अपनी यात्रा मे बना। आष्टा में गुरूवार बंद के रोज जहां में फुरसत अखबार अपने आफिस में पढ़ रहा था तभी आफिस के बाहर कन्नौद रोड़ पर कुछ आवाजें आती है। 'ऐ दुकान बंद कर दे नही तो तोड़ डालेंगे, समझता नहीं सुनता नहीं जय जय श्री राम हम समझाऐं क्या' और दो चार लोग उस भीड़ मे से डंडे लेकर दुकान घुसते हैं। और तोड़ फोड़ कर सारी दुकान का सामान फैंक देते है। उस भीड़ मे से कुछ लोगो को मे निजी तौर पर जानता व इज्‍जत भी करता हूं लेकिन उस गरीब दुकान वाले की जो रोज कमाता खाता था, के हालात के जिम्मेदार भीड़ व उसमें शामिल लोग भी थे। जिनका सम्मान करने में शायद अब मुझे दिक्कत पैदा होगी।
मेरी गाडी अा चुकी थी मै अपने पापाजी कैलाश परमार के साथ निजी कार्य के लिये इन्दौर निकल चुका था रास्ते मे पड़ने वाला सोनकच्छ व देवास मे सन्नाटा था ऐसा लग रहा था शायद तूफान आने के पहले की शांति हो। हम देवास से इंदोर के लिये आगे बढ़े ही थे कि पापा के मोबाईल पर मेसेज व फोन आने लगे की इंदोर में उपद्रव हो गया है जो खजराना क्षेत्र में है मेने पापा से मुखतिर होकर कहा कि खजराना इन्दौर का बाहरी क्षेत्र है दिक्कत की कोई बात नही है। थोड़ी ही देर में फिर काल आता है कि उपद्रव में चार लोग मारे गये हैं यह सुनकर पापा को आने वाले समय का गंभीर अहसास हो गया था और वो तथा हम सब वापस आष्टा चलने की बात कहते है लेकिन में उन्हें वापस विश्वास दिलाता हूॅ कि ऐसा कुछ नहीं होगा, सब अफवाह है। शायद में इन्दौरियों की जिंदादिली संस्कार व स्वभाव से परिचित था जो मैने 7 वर्षा में इंदोर मे अध्ययनरत् रहते हुये देखी थी।
मैं व पापा अपना काम कर फ्लैट पर पहुंचें ही थे कि पापा के सेलफोन पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी से मेसेज आता है कि प्रदेश अध्यक्ष श्री सुरेश पचौरी जी सड़क मार्ग से इंदोर के दंगा ग्रस्त इलाकों मे जा रहे है आप आष्टा मे रहें। इंदोर में कुछ भयावह हुआ है उसकी पुष्टि इस मेसेज से हो चुकी थी। पापा के चहरे पर तनाव साफ दिखाई दे रहा था पापा ने मुझे कुछ काम बताकर व हिदायते देकर फ्लैट पर छोड़ दिया व तुरंत वे आष्टा के लिये निकल चुके थे क्योकि 2 घंटे में उन्हें आष्टा पहुँचना था।
मल्टी व कालोनी के लोगो के द्वारा रह रहकर खबर आती है कि कुछ लोगो को मार दिया गया है। सभी कालोनी वासी कहने लगे पता नही कल क्या होगा सभी के चेहरो पर तनाव साफ दिखाई देने लगा था। शायद इंदोर के छै: थाना क्षेत्रों में कर्फ्यु लगा दिया गया था। शुक्र वार सुबह के अखबार शहर के दामन पर खून के छीटे पड़ गये है, ऐसा साफ वयां कर रहे थे। मैं अपने भाईयों व दोस्तों के साथ अपना जरूरी कार्य निपटाने के लिये बाजार निकल चुका था लेकिन ईट पत्थर से सड़क पर गलियां पटी हुई थी। हमने अपना कार्य किया व बाद में अपने लिये कुछ शापिंग की और बाद में मनोरंजन के लिये फिल्म देखने चले गये लगभग 2 घटें कि मूवी हम देख चुके थे कि अचानक हमने देखा कुछ दर्शक उठ कर थियेटर से बाहर जा रहे हैं हमें लगा शायद फिल्म पंसद नही आई हो। लेकिन थोडे समय के अंतराल के बाद फिर कुछ महिलाये,बच्चे उठकर जाने लगे। अब थियेटर के अंदर हलचल तेज होने लगी क्योकि झुण्ड के झुण्ड बिना किसी काम के थोड़ी बाहर जा रहे थे और थोड़ी में मौजूद लोगो के सेलफोन भी अब घनघनाने लगे थे। खबर थी शहर के हालात खराब हो रहे हैं। तभी मेरे सेलफोन पर दोस्त का मेसेज आता है मार्केट छोड़ कर जल्दी घर लौटो शहर में दंगे हो गये है, कर्फ्यु लगने वाला है देखते ही देखते सारा माल व टाकिज खाली हो चुका था। बाजार बंद हो चुका था। बाहर लोग बदहवास होकर भाग रहे थे क्योकि इंदोर में मौत का ताण्डव मचा हुआ था। आंखो के सामने राहगीरो को लठों व सरियों से पीटा जा रहा था हद तो तब हो गई जब अपने घर जा रही एक महिला को भी भाजपा कार्यकर्ताओं ने पत्थर से मारा। विरोध प्रदर्शन का यह तरीका बहुत ही खतरनाक था लोग अपनी जान बचाते फिर रहे थे। व्यापारी व्यवसायी अपना काम करना चाह रहे थे लेकिल चंद लोग बंद के नाम पर गुंडा दिवस मना रहे थे। लोग एक दूसरे से पूछ रहे थे आखिर ये भाजपाई तोड़फोड़ व मारपीट से क्या जताना चाह रहे हैं किसी मुद्दे का हिंसक व जबरजस्ती अंदाज में भुनाना देश भक्ति तो कतई नही है बंद करवाने वाले भाजपा के लोगो को यह बात तो सोचना चाहिये कि बाबा अमरनाथ के प्रति आस्था दिखाने का यह कौन सा तरीका है। दूध बचने वाले का दूध उडेलना, पोहे की दुकान वालो की पूरी तश्तरी नीचे फेंकना मासूम बच्चें व उसका पिता को स्कूटर से नीचे गिराकर सरेआम चोराहे पर पिटाई लगाना कोई विकृत दिमाग का आदमी ही ऐसा कर सकता है लेकिन पुलिस की मौजूदगी में सैकड़ों राहगीरों के बीच भाजपा के कार्यकर्ता हाथ में पार्टी का भगवा ध्वज लेकर यह कृत्य रहे थे चुनाव सामने है शायद मध्यप्रदेश को दूसरा गुजरात बनाने की साजिश के तहत यह सब किया जा रहा था। जो भी मैं परेशान था, सड़क पर टार्फिक जाम था। टेफिक सिग्ल तोड़कर लोग निकल रहे थे। सभी को घर जाने की जल्दी थी। सभी के चेहरे पर तनाव साफ दिखाई दे रहा था। हमें फ्लैट पर मौजूद परिचित निर्देश दे रहे थे कि हम कोन-कोन से रास्ते से फ्लैट पर पहुँचे, जब हम पहँचे तब हमने राहत की सांस ली। आधे घन्टे के अंदर ही शहर भर के लोग अपने अपने घरों में थे। और रोड़ पर सायरन बजाती हुई पुलिस फोर्स की गाड़ियाँ दोड़ रही थी। आमजन से एनाउसमेंट करके कहा जा रहा था कि शहर में कर्फ्यु लग चुका है आप घर में रहें।
अगले दिन शनिवार को भी बड़ी असमंजस की स्थिति थी दैनिक अखबार दंगाईयों के द्वारा शहर को दिये घाव की दास्ता बयां कर रहे थे। उपद्रवियों ने किसी की आंखों का तारा तो किसी की मांग सूनी कर दी थी। चूंकि हमारा फ्लैट कलेक्टर आफिस के सामने है अंत: प्रशासन की आवाजाही साफ दिखाई दे रही थी शायद नये कलेक्टर व एसपी के लिये यह कड़ी परीक्षा की घड़ी थी अफवाहों का बाजार गर्म था। कोई 4 तो कोई 14 मरने की बात कह रहा था। दूध वाले सब्जीवाले के अते पते नहीं थे। छोटे-बच्चे दूध के लिये बिलख रहे थे। सभी परीक्षाएं स्थगित हो चुकी थी। सड़के सुनसान पड़ी हुई थी चारों और केवल सन्नाटा ही पसरा हुआ था। घर से बाहर निकलने की सख्त मनाही थी। यहां तक कि आवश्यक सेवायें किराना, मेडिकल, पेट्रोल पंप व पहुंच के लिये बसें बंद पड़ी थी। बीच-बीच में एम्बुलेंस व फायर बिग्रेड के सायरन किसी स्थान पर अनहोनी को बयां कर रहे थे ऊपर से पुलिस व प्रशासन की दनदनाती गाड़िया खौफ जदा लोगो को सांसत मे डाल रही थी। फटाकों व नारो की आवाज रह-रहकर सुनाई दे रही थी इस तरह शाम हो चुकी थी। कुछ शांति देखकर प्रशासन ने घंटे भर की कर्फ्यु में छूट दी थी। चंद मिनटों में लोगो की भीड़ किराना, आटा चक्की, मेडिकल व दूध की दुकान पर लग चुकी थी। ऐसा लगा जैसे लोग वर्षों की केद से छूटे हों लगभग 28 घंटे कर्फ्यु के सायें में बिताने के बाद लोग खरीदारी के लिये टूट पड़े। रविवार को अगले दिन किसी चीज की कमी न पड़े जाये। इसलिये लोग जल्दी जल्दी खरीदकर घर लौटना चाहते थे जाम कि स्थिति बन गई थी। कुछ लोग। एटीएम पर कतारों मे नजर आये, तो कुछ लोग पेट्रोल पंपो पर पसीना बहाते नजर आये। सफाई, बिजली, पानी व अन्य आपात कालीन सुविधाऐं बेहाल हो गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे इस शांत शहर को शांति से कोई बैर हो गया हो। मरीजों को बिना दवा कष्ट उठाना पड़ रहा था, कितने घरों मे चूल्हा नही जला था और कई मासूम व निर्दोष लोगो को जान से हाथ धोना पडा। दूध अगर गाते बजाते मिल रहा था तो 40 रूपये लीटर भाव थे। इसी प्रकार अन्य जरूरी सामान फल सब्जियों के भाव भी दौगुना कीमत में मिल रहे थे। शहर में ना तो कोई बस आ रही थी और ना ही कोई बस जा रही थी जो जहां जेसी हालत में फंसा था वो वेसी ही हालात में फंसा रहा।
अगले दिन रविवार को कर्फ्यु मे क्षेत्रवार अलग-अलग छूट देने की बात कही जा गई थी लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिला। दूध सब्जी पानी व अन्य रोजमर्ग की वस्तुओं के लिये खासी जद्दोजहद हुई। सड़कों पर रह-रह कर पुलिस व विशेष पुलिस दल की गाड़िया दोड़ती नजर आती थी। गली मोहल्लों में भी सायरन गूंजते रहे। अपनी मस्ती व खाने-पीने में डूबे रहने वाले शहर मे छुटटी का दिन रविवार भी अब बोर लगने लगा था लोग घर व फ्लैट के अंदर तीन रोज तक बंद रहने से घबराकर बाहर आने के लिये छटपटा रहे थे। खिड़की दरवाजों पर खड़े होकर लोग यही कह रहे थे कि हमारे शहर को किसकी नजर लग गई। अब कौन व्यापारी यहां व्यापार करने आयेगा। अब लोगो में केसे वापस एक दूसरे पर विश्वास जमेगा और करोड़ो का जो व्यापार को नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा। अपनी मनमर्जी राजनैतिक दल कब तक थोपतें रहेंगे। चंद राजनैतिक स्वार्थी तत्व आखिर हमारे शहर के बारे में फैसला लेने वाले कौन होते है। इसी तरह से लोग दंगाईयों को कोसते नजर आ रहे थे।
इधर मैं भी परेशान था, मुझे अपना जरूरी कार्य निपटता नही दिख रहा था में सीधे कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचा व अपने लिये कर्फ्यु पास बनवाया ताकि शहर में कार्य तेजी से निपटा संकू। इस तरह में अपना कार्य सोमवार को कर सका लेकिन अन्य की भांति मेरे मन में भी डर बैठा था मेने देखा लोगो की आखों में बीते चार दिनों का खौफनाक मंजर था। सभी लोग डरे सहमें अपने-अपने प्रतिष्ठान खोल रहे थे
सोमवार को कर्फ्यु खुल चुका था कुछ क्षेत्रों मे लगा था वहां पर भी लोग दुकान खोलने के लिये उतावले हो रहे थे। में सोमवार को शाम को आष्टा के लिये गाड़ी में बैठा-बैठा सोच रहा था कि लोगो की जीत हुई है या फिर उन सांम्प्रदायिक ताकतों की जो म.प्र. को गुजरात बनाने के लिये यह सब खेल, खेल रहे थे। वो सब भयावह सपने की तरह था जो में पीछे छोड़ चुका था। भगवान करे अब ऐसा मंजर किसी को न देखने को मिले ।
वीरेन्द्र परमार, एडवोकेट
अदालत के सामने, आष्टा


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