सीहोर 8 मई (आनन्द गांधी)। जी हाँ काहिरी बंधान में 3 बड़े-बड़े गड्डे किये गये हैं, यह गड्डे वाकई में गड्डे हैं। गड्डे मतलब पूरे के पूरे गड्डे। यहाँ नदी में गड्डा करके आसपास जमीन से झिरकर पानी एकत्र करने का यह प्रयोग था। लेकिन प्रयोग इतना महंगा पड़ा है कि इसके बिल देखकर एक बारगी अनुविभागीय अधिकारी राजस्व बुरी तरह खिन्न ही हो गये हैं। यहाँ नदी के बीच किये गये 3 गड्डे 4 लाख रुपये के पड़े हैं जबकि जहाँ गड्डे हुए हैं वहाँ अभी तक मिट्टी नदी में ही पड़ी हैं ? तो फिर इतना विशाल बिल किस बात का बनाया गया है। यह आश्चर्य है....और क्या कोई और योजना नहीं थी इतने महंगे गड्डो से क्या जितनी लागत आई है उतना भी पानी मिल सका है?
अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने वाली नगर पालिका को गड्डे में डालने के प्रयास तो आये दिन होते ही रहते हैं लेकिन इसके बावजूद गड्डे करने वाले कभी पीछे नहीं हटते हैं....यह तरह-तरह के गड्डे करते हैं और नगर पालिका को गड्डे में डाल देते हैं। कभी कोई काम कर दिया जाता है और कभी कोई नया अनोखा काम कर उसके लाखों रुपये के बिल बना दिये जाते हैं।
खैर, इस बार तो एक अच्छा प्रयोग नगर पालिका में किया जा रहा था यह था काहिरी बंधान के पास पार्वती नदी के बीच गड्डा कर उसमें एक कुंआ बना देने का। अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ कहीं नदी नाले होते हैं जब वह सूख जाते हैं तो ऐसी स्थिति में वहाँ के लोग उसमें एक छोटा-सा कुंआ खोदना शुरु कर देते हैं। यह कुंआ खोदने के बाद कुंए के चारों तरफ की दीवार में से पानी रिस-रिसकर आना शुरु आ जाता है और कुंआ कुछ घंटो में भर जाता है। इस प्रकार लोग अपनी प्यास बुझा लेते हैं।
यही प्रयोग काहिरी बंधान में भी किया गया। यहाँ पूर्व में एक कुंआ खुदा था
कुछ लोगों की सलाह पर जिला प्रशासन का सहयोग लेकर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व ने पोकलीन मशीन बुलवाकर कुछ कार्य कराया था। इससे कुछेक लाभ भी मिला था। इसी की तर्ज पर दो पार्षदों ने अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को पुन: 3-4 गड्डे करवाने के लिये मनाया, उन्होने कहा कि आप लोग व्यवस्था करो। बस स्वीकृति मिलते ही इन लोगों ने कार्य शुरु कर दिया।
चर्चा है कि ले-देकर 4 ठेकेदारों ने आपस में मिलकर यहाँ गड्डे खोदने का कार्य शुरु किया। जिसमें पोकलीन मशीन मंगाई गई और यहाँ मशीन ने घंटे के हिसाब से काम कर खारपा डाल और काहिरी में पार्वती नदी के बीच बड़े गड्डे कर दिये। लेकिन मिट्टी खोद खोदकर यहीं आसपास जमा भी कर दी। मतलब नदी की मिट्टी नदी में ही रही तो नदी का गहरी करण नहीं हो पाया और नदी में मिट्टी का पहाड़ लग गया।
इधर इन तीन गड्डो में कितना पानी आया और कितना सीहोर तक पहुँचा यह तो सर्वविदित ही है। पूरी योजना ढाक के तीन पात साबित हो गई।
अब प्रश् उठता है कि आखिर कितने लाख रुपये यह गड्डे हुए। तो गड्डे कुछ हजार रुपये नहीं बल्कि 4 लाख रुपये में हुए। इतनी भारी भरकम राशि में आखिर यहाँ क्या किया गया ? यह तो राम जाने लेकिन जब इतनी भारी भरकम राशि का बिल अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के समक्ष प्रस्तुत हुआ तो बस वह विफर पड़े। चर्चा है कि वह नाराज हो गये बोले आखिर भैया 4 लाख रुपये में किया क्या आपने ? इतना बड़ा बिल कैसे बन गया ? क्या हमें भी आम अधिकारी समझ रखा है ? ऐसा कौन-सा काम हो गया 4 लाख रुपये में...? बिल में मिट्टी की ढुलाई, पोकलीन मशीन का किराया भी जुड़ा हुआ है। लेकिन इतना बड़ा किराया या मिट्टी ढुलाई कैसे हो गई यह समझ नहीं आ रहा। अब मजे की बात यह है कि आखिर 4 लाख रुपये का बिल क्या पास होगा ? या नहीं होगा ? 3 गड्डे, 4 लाख और 4 ठेकेदारों का यह कारनामा अंजाम दिया जा चुका है। लेकिन जनता को पानी नहीं मिला है। देखते हैं आखिर मामला क्या रंग लाता है।