Monday, April 7, 2008

चैत्र नवरात्र : देवी साधना के दिन

इस बार चैत्र नवरात्र छह अप्रैल, रविवार को प्रारंभ होंगे और 14 अप्रैल रामनवमी को संपन्न होंगे। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी चैत्र नवरात्र का पदार्पण होगा। वर्ष के चार नवरात्रों में दो मुख्य चैत्र और आश्विन के नवरात्र हैं। इनमें भी चैत्र नवरात्र की अपनी विशिष्टता और महत्ता है। इसकी विशिष्टता का कारण इस अवधि में सूक्ष्म वातावरण में दिव्य हलचलों का होना है।
सूक्ष्मदर्शी इस तथ्य से परिचित और प्रभावित होते हैं और इस अवसर को विशिष्ट अनुष्ठानों एवं साधनाओं में व्यतीत करते हैं। वे वातावरण में सघन रूप से उमड़ते-घुमड़ते चैतन्य प्रवाह को अपनी साधना के माध्यम से आकर्षित करते हैं। अपने परिजन इस तथ्य से गहराई से अवगत हैं।
सामान्य समय में की गई साधना और नवरात्र व विशिष्ट मुहूर्त में संपन्न साधना के परिणाम में बहुत अंतर होता है। क्योंकि साधना का संबंध काल, स्थिति और मुहूर्त से बड़ी गहराई से जुड़ा होता है। सामान्य समय में जिसे प्राप्त करने में महीनों लग सकते हैं, उसे मुहूर्त विशेष पर कुछ ही समय में उपलब्ध किया जा सकता है। सामान्य दिनों में ब्रह्ममुहूर्त ऐसा ही चमत्कारिक क्षण होता है। इस समय में ब्रह्मांडीय चेतना का प्रवाह सघन होता है। अत: इस दौरान की गई साधना का सुफल बहुगुणित होता है। तंत्र साधकों के लिए मध्यरात्रि का पहर यानी करीब एक बजे अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इन मुहूर्तों में प्रवाहित ब्रह्मांडीय चेतना सामान्य से कई गुना अधिक नवरात्र की पूरी समयावधि में होती है। यही वजह है कि इस पूरी अवधि को संयम और साधना पूर्वक गुजारा जाता है।
साधना के विषय में बड़ी भ्रांत धारणा है कि कलियुग में इन दिनों साधना करना संभव नहीं है। जो साधना की भी जाती है, तो उसका परिणाम दृष्टिगोचर नहीं होता। जबकि ऐसा है नहीं। साधना केमिस्ट्री की लैब में किए जाने वाले केमिकल एक्सपेरिमेंट से कहीं अधिक सूक्ष्म और व्यापक होती है। एक्सपेरिमेंट ठीक ढंग से संपन्न नहीं किए जाने पर इसका वांछित परिणाम नहीं मिलता है, ठीक इसी प्रकार इसके लाभ से वंचित होना स्वाभाविक है। तो फिर ऐसा क्या करें कि चैत्र नवरात्र साधक के जीवन में उषा की स्वर्णिम किरणों के समान आलोक फैला दे? इसकेलिए इस अवधि में किए जाने वाले अपने इच्छित अनुष्ठान की पूर्ण तैयारी कर ली जाए और कुशल प्रयोगकर्ता के समान इस प्रयोग को प्रारंभ किया जाए।
साधक अपनी साधना का चयन अपने अनुरूप करता है। इस अवधि में 24 हजार गायत्री मंत्र केजप का एक लघु अनुष्ठान संपन्न किया जा सकता है। इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र, नवार्ण मंत्र, दुर्गासप्तशती का पाठ, रामायण और गीता का पाठ भी किया जा सकता है, लेकिन इन सबके साथ गायत्री मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। साधना के लिए आवश्यक है निरंतरता, असीम धैर्य और साहस। इसके दो पक्ष हैं श्रध्दा और कर्मकांड। कर्मकांड अनुष्ठान का कलेवर होता है। कलेवर ठीक-ठीक होना चाहिए। इसमें जप की संख्या, स्थान, काल और यम-नियम आते हैं।
नवरात्र साधना के दिनों में जिन अनुशासनों, व्रतों या तपश्चर्याओं का कड़ाई के साथ पालन किया जाता है, उनमें पांच प्रमुख हैं- उपवास, ब्रह्मचर्य, विलासिता का त्याग, सदाचरण और मौन। इसके अलावा इन दिनों तामसिक भोजन, चमड़े की वस्तुओं का त्याग, अपना काम स्वयं करना, निंदा, झूठ आदि से परहेज करना चाहिए। इन सारे संयम और अनुशासन की आवश्यकता इसलिए बनाई जाती है, क्योंकि ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अपने अंदर आकर्षित किया जाता है और उसे ग्रहण किया जाता है। वह यों अनायास ही न बिखर जाए। वह ऊर्जा हमारी चेतना को परिष्कृत, परिमार्जित और परिवर्ध्दित करे और हम इससे लाभान्वित हों। इन्हीं कारणों से साधना केसाथ संयम और अनुशासन की महत्‍ता बताई जाती है।
इन संयम, अनुशासन के बावजूद साधना से इच्छित लाभ न मिलने की शिकायत रह जाती है और इसे बारीकी से छानबीन करने पर पता चलता है कि कलेवर में प्राण का ही संयोग छूट गया था। साधना का कलेवर कर्मकांड को तो हमने ठीक-ठीक निभाया, परंतु इसकेश्रध्दा पक्ष को भुला दिया। श्रध्दा के अभाव में साधना अधूरी और एकांगी रहती है। अधूरी-एकांगी साधना भला हमें कैसे लाभान्वित कर सकती है! अत: जो भी मंत्र हम जप कर रहे हों, उसे तन्मयता और भावनापूर्वक करना चाहिए। श्रध्दा साधना का प्राण है, मूल है, इसलिए धीरे-धीरे सही, लेकिन हृदय की गहराई से मंत्र का जाप करना चाहिए। अगर उचित कर्मकांड के साथ किए जाने वाले अनुष्ठान में श्रध्दा भावना का समुचित समावेश हो सके, तो परिणाम और लाभ आश्चर्यजनक व चमत्कारिक होते हैं। यही वह रहस्य और गुप्त सूत्र है, जिसके जाने बिना साधना बोझ-सी और नीरस प्रतीत होती है।
वर्तमान जीवन में वांछित उत्कृष्टता और श्रेष्ठता के समावेश का दृढ़तापूर्वक संकल्प करना चाहिए। यह सुनिश्चित मानकर चलना चाहिए कि श्रेष्ठ गतिविधियों को अपनाते हुए ही हम अपनी श्रेष्ठ संभावनाओं को साकार कर सकते हैं और ईश्वरीय अनुग्रह के सुपात्र अधिकारी बन सकते हैं। इस भावभूमि में उपर्युक्त सूत्रों के साथ संपन्न चैत्र नवरात्र की साधना निश्चित रूप से साधक पर गायत्री महाशक्ति एवं गुरुसत्ता के अनुदानों को बरसाने वाली सिध्द होगी।