सीहोर 12 फरवरी (फुरसत)। पाँच इन्द्रियाँ और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ ये दस इन्द्रियों पर जिसका नियंत्रण होता है जो इन पर लगाम कसकर संयम के कोड़े बरसाता हुआ जीवन रथ भगवान के चरणों में बढाता है, उसे ही दशरथ कहते हैं और जो इन दस इन्द्रियों पर कोई संयम नहीं रख पाता और दसों इन्द्रियों के घोड़ों को काबू में नहीं रखते हुए निरंकुश जीवन जीता है, वही दशानन है।
इस आशय के उद्गार काशी से पधारे स्वामी रामकमल दास जी महाराज ने विधायक रमेश सक्सनो के गृह ग्राम में लगातार 27 वीं बार मानस प्रचार समिति बरखेड़ाहसन के तत्वाधान में हो रही संगीतमयी श्रीरामकथा के पहले दिन बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। स्वामी जी ने कहा कि नास्तिक कभी सुखी नहीं हो सकता क्योंकि किसी का सुख-दुख किसी की समृध्दि से नहीं पाता चलता है। उन्होने कहा कि गरीबों को दुख होता है और अमीरों को कष्ट होता है। जिस गरीब के पास खाने को दाने नहीं हो, सोने को बिस्तर नहीं हो तो उसे दुख होता है लेकिन जिस अमीर को छप्पन प्रकार के व्यंजन बनने के बाद डाक्टर ने खाने से मना कर दिया हो, और सोने के लिये गद्दा होने पर भी नींद न आए तो उसे कष्ट होता है। उन्होने कहा कि मानव जीवन भी एक कला है जिसे यह कला आती है वह हर स्थिति में आनंद के साथ जीता है और जिसे जीवन जीने की यह कला नहीं आती वह हाय-हाय करता रहता है। उन्होने राम बनवास प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भरत जी वशिष्ठ जी से कहा कि राम जी के वनवास के लिये पूरी तरह कैकेयी दोषी नहीं है क्योंकि कैकेयी ने पहले वरदान मांगा था भरत को राजगद्दी और दूसरे नंबर पर राम को बनवास तो पहले राम को वनवास क्यों दिया गया ? भरत जी ने कहा कि यदि पहले नम्बर के वरदान को पहले दिया जाता तो किसी की ताकत नहीं थी कि रामजी को वनवास हो जाता। इस पर श्री वशिष्ठ जी ने कहा कि यह सब दोष कैकयी का नहीं क्योंकि कैकेयी तो मात्र एक माध्यम थी, इस पूरी कथा के सूत्रधार तो श्रीराम स्वयं थे। उनकी ही प्रेरणा से यह सब हुआ क्योंकि यदि कैकेयी ये दो वर नहीं मांगती तो आज राजा राम, भगवान राम नहीं बन पाते। स्वामी जी ने कहा कि राजा हरीश्चन्द्र ने श्रीराम से भी अधिक दुख पाया क्योंकि उन्होने तो राजा बनने के बाद पत्नि को त्यागा और अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी अपनी पत्नि से श्मशान को टैक्स मांगा किंतु कहीं भी राजा हरीश्चन्द्र की पूजा नहीं होती क्योंकि उनके जीवन में कोई कैकेयी नहीं थी। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में पात्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। यह कर्मयुग है इसलिये कर्म करने पर आदमी की पहचान बनती है। आज कथा की शुरुआत में विधायक रमेश सक्सेना ने सपत्निक व्यासगादी की पूजा अर्चना कर कथा की विधिवत शुरुआत कराई। कथा स्थल पर व्यापक तैयारियाँ कर इसे भव्य स्वरुप प्रदान किया गया है। आज से लगातार बरखेड़ाहसन में श्रीरामरस में गंगा बहती रहेगी। विधायक श्री सक्सेना ने सभी धर्मप्रेमियों से श्रीरामकथा में उपस्थित होने का अनुरोध किया है। sehore fursat
इस आशय के उद्गार काशी से पधारे स्वामी रामकमल दास जी महाराज ने विधायक रमेश सक्सनो के गृह ग्राम में लगातार 27 वीं बार मानस प्रचार समिति बरखेड़ाहसन के तत्वाधान में हो रही संगीतमयी श्रीरामकथा के पहले दिन बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। स्वामी जी ने कहा कि नास्तिक कभी सुखी नहीं हो सकता क्योंकि किसी का सुख-दुख किसी की समृध्दि से नहीं पाता चलता है। उन्होने कहा कि गरीबों को दुख होता है और अमीरों को कष्ट होता है। जिस गरीब के पास खाने को दाने नहीं हो, सोने को बिस्तर नहीं हो तो उसे दुख होता है लेकिन जिस अमीर को छप्पन प्रकार के व्यंजन बनने के बाद डाक्टर ने खाने से मना कर दिया हो, और सोने के लिये गद्दा होने पर भी नींद न आए तो उसे कष्ट होता है। उन्होने कहा कि मानव जीवन भी एक कला है जिसे यह कला आती है वह हर स्थिति में आनंद के साथ जीता है और जिसे जीवन जीने की यह कला नहीं आती वह हाय-हाय करता रहता है। उन्होने राम बनवास प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भरत जी वशिष्ठ जी से कहा कि राम जी के वनवास के लिये पूरी तरह कैकेयी दोषी नहीं है क्योंकि कैकेयी ने पहले वरदान मांगा था भरत को राजगद्दी और दूसरे नंबर पर राम को बनवास तो पहले राम को वनवास क्यों दिया गया ? भरत जी ने कहा कि यदि पहले नम्बर के वरदान को पहले दिया जाता तो किसी की ताकत नहीं थी कि रामजी को वनवास हो जाता। इस पर श्री वशिष्ठ जी ने कहा कि यह सब दोष कैकयी का नहीं क्योंकि कैकेयी तो मात्र एक माध्यम थी, इस पूरी कथा के सूत्रधार तो श्रीराम स्वयं थे। उनकी ही प्रेरणा से यह सब हुआ क्योंकि यदि कैकेयी ये दो वर नहीं मांगती तो आज राजा राम, भगवान राम नहीं बन पाते। स्वामी जी ने कहा कि राजा हरीश्चन्द्र ने श्रीराम से भी अधिक दुख पाया क्योंकि उन्होने तो राजा बनने के बाद पत्नि को त्यागा और अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी अपनी पत्नि से श्मशान को टैक्स मांगा किंतु कहीं भी राजा हरीश्चन्द्र की पूजा नहीं होती क्योंकि उनके जीवन में कोई कैकेयी नहीं थी। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में पात्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। यह कर्मयुग है इसलिये कर्म करने पर आदमी की पहचान बनती है। आज कथा की शुरुआत में विधायक रमेश सक्सेना ने सपत्निक व्यासगादी की पूजा अर्चना कर कथा की विधिवत शुरुआत कराई। कथा स्थल पर व्यापक तैयारियाँ कर इसे भव्य स्वरुप प्रदान किया गया है। आज से लगातार बरखेड़ाहसन में श्रीरामरस में गंगा बहती रहेगी। विधायक श्री सक्सेना ने सभी धर्मप्रेमियों से श्रीरामकथा में उपस्थित होने का अनुरोध किया है। sehore fursat