Sunday, January 6, 2008

चैक अनादरण के आरोपी को दो वर्ष का सश्रम कारावास

आष्टा 4 जनवरी (फुरसत)। फरियादी अखिल जैन पुत्र दिलीप कुमार जैन निवासी आष्टा ने आरोपी मनोहर सिंह पुत्र धन सिंह सैंधव निवासी ग्राम खेखाखेड़ी आष्टा को उसकी व्यक्तिगत आवश्यकता के लिये 21 मार्च 07 को एक लाख रुपया नगद उधार दिया था जिसके संबंध में उसने वचन पत्र सम्पादित किया था व उक्त राशि की अदायगी के दायित्व में आरोपी मनोहर सिंह ने अखिल जैन को चैक क्रमांक 004881 जो 21 मई 07 रुपया एक लाख का अपने खाता जिला सहकारी केन्द्रिय बैंक आष्टा का दिया था। उक्त चैक का नगदीकरण कराने के लिये फरियादी ने भारतीय स्टेट बैंक में अपने खाते में 21 मई 07 को जमा कराया। अभियुक्त के बैंक खाते में अपर्याप्त निधि होने से उसकी बैंक ने चैक अनादृत कर अपने बैंक ज्ञापन सहित वापस कर दिया। उक्त चैक अनादृत प्राप्त होने पर अभियोगी अखिल जैन ने अपने अधिवक्ता नगीन जैन के माध्यम से उक्त राशि की मांग करते हुए विधि अनुसार रजिस्टर्ड डाक व यूपीसी डाक से मांग सूचना पत्र प्रेशित कराया जो ाअभियुक्त को प्राप्त होने पर भी उसने राशि का भुगतान नहीं किया और न ही कोई उत्तर दिया। इसके पश्वात नियत अवधि में अखिल जैन ने आरोपी के विरुध्द उक्त परिवाद पत्र न्यायायिक दण्डाधिकारी महोदय प्र.श्रे.आष्टब सुधारी चौधरी साहब के न्यायालय मे पेश किया। जो आर.टी.नम्बर 43307 पद दर्ज किया गया। फरियादी के साक्ष्य अंकित करने के पश्चात आरोपी के विरुध्द धारा 138 पराक्राम्य लिखत अधिनियम का आरोप न्यायालय द्वारा विरचित किया गया तत्पश्चात अभियोगी की साक्ष्य अंकित की गई। अभियुक्त ने उक्त चैक जारी करना अस्वीकार किया व एक रसीद इस आशय की प्रस्तुत की कि फरियादी के पिता से लेन- देन था व उन्हे 20 हजार रुपया वर्ष 2002 के देना थे। फरियादी का आरोपी से उनका कोई संव्यवहार नहीं हुआ। उक्त बचाव दस्तावेजी साक्ष्य आदि से मेल न खाने के कारण संदेह से परे बचाव सिध्द न मानते हुए फरियादी अधिवक्ता का तर्क सुनकर उनके तर्क से सहमत होते हुए न्यायालय ने अपने निर्णय में यह सिध्द पाया कि आरोपी ने अखिल जैन से एक लाख रुपया उधार लिया था व जिसकी अदायगी में चैक जारी किया है जिसका भुगतान उसने नोटिस उपरांत भी नहीं किया जो धारा 138 पराक्राम्य लिखत अधिनियम के अन्तर्गत अपराध होने से व उक्त अपराध पूर्ण रुप से सिध्द पाकर उक्त अपराध के लिये आज 4 जनवरी 08 को आरोपी मनोहर सिंह को दो वर्ष के सश्रम कारावास एवं 15 सौ रुपये के अर्थदण्ड से दंडित किया गया तथा अर्थदण्ड में से 1 हजार रुपये की राशि फरियादी को प्रतिकर के रुप में दिलाये जाने के आदेश भी पारित किये गये। फरियादी की और से नगीन जैन एडवोकेट एवं नरेन्द्र धाकड़ एडवोकेट द्वारा पैरवी की गई।