ऋग्वेद में कहा गया है कि सृष्टि के प्रारम्भ में दिन और रात अहोरात्र का युग्म बना। ऐसे दिनों से तीस दिन का चंद्र मास और बारह मास में एक संवत्सर के अनुसार कालगणना प्रारंभ हुई। यजुर्वेद में दो मासों के एक युग्म को गतु कहा गया। इस प्रकार छ: ऋतुओं बारह मासों के नाम प्राचीन वैदिक साहित्य में उल्लेखित है। चैत्र मास को हमारे यहां मधुमास की संज्ञा दी गई। वर्ष चैत्र प्रतिपदा अथवा गुड़ी पड़वा मनाये जाने का विधान हमारे वैदिक ग्रंथों में निहित है। इस दिन प्रात: भुवन भास्कर की छटा, प्रकृति की पुलकन, समीर का प्रवाह हमें आल्हादित और उल्लासित करता है।
हिमाद्री के अनुसार चैत्र मासि जगद्ब्रह्मा सगृजे प्रथमे हनि अर्थात् चैत्र मास शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा ने सृष्टि रचना आरम्भ की थी, इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सृष्टि का प्रकटोत्सव दिवस है, भास्कराचार्य ने भी सिध्दांत शिरोमणि में लिखा है कि चैत्र मास शुक्ल पक्ष के आरम्भ में रविवार के दिन, सतयुग का आरम्भ हुआ। भगवान राम का राज्याभिषेक, वरुण देव झूलेलाल का जन्म दिन, महाराजा युधिष्ठिर द्वारा संवत् का प्रारंभ, राष्ट्रीय सर्जना व नवोत्थान के प्रेरणा पुंज डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हुआ था। उल्लेखनीय है कि सम्राट शकारि विमादित्य शकों को पराजित कर सार्वभौम सम्राट के रूप में इसी दिन सिंहासनारूढ़ हुए और विधिवत विम संवत् प्रारंभ किया। इस दृष्टि से विम संवत् भारतीय शौर्य, पराम और अस्मिता का प्रतीक भी है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रात: सरोवरों में स्नान, सूर्य को अर्घ्य देकर प्रकृति के नव कलेवर धारण किए हुए मंगलमय वातावरण में मांगलिक कार्यों के प्रारंभ का विधान है।
वर्ष प्रतिपदा से शक्ति आराधना के रूप में वासन्तिक नवरात्रि का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है। स्वास्थ्य की सुरक्षा के साथ-साथ चंचलमन की स्थिरता के लिए साधना प्रारंभ की जाती है।
आरोग्य जीवन की कामना से नीम की पत्तियों काली मिर्च, मिश्री और अजवाईन तो कहीं-कहीं धनिया, चीनी के प्रसाद वितरण के पीछे भी आयुर्विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं।
सृष्टि संवत् की कालगणना का आधार देखने पर वर्तमान में 1 अरब 97 करोड़, 64 लाख, 61 हजार, 6 सौ 68 वर्ष के रूप में भारतीय कालगणना का इतिहास किसी गौरव गाथा से कम नहीं है। दूसरी ओर 28 वें कलियुग के 5109 वर्ष या 52वीं शताब्दी अर्थात् विश्व की शेष गणनाओं से भी 31 शताब्दी आगे भारत की ऐतिहासिक परम्परा किसी गौरवगाथा से कम नहीं है।
इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की विशेषता यह रहेगी कि भारत में दो अलग-अलग दिनों में वर्ष प्रतिपदा का प्रवेश होगा। तिथि का निर्धारण खगोलीय वैज्ञानिक प्रक्रिया है, यह सूर्य तथा चन्द्रमा की गति के आधार पर तय होती है। इस स्थिति भेद के चलते भौगोलिक आधार पर भारतीय नववर्ष विम सम्वत् 2065 शालिवाहन शाके 1930 दो अलग-अलग दिन मनाया जाएगा। पश्चिमी और पूर्वी भारत में मश: प्रतिपदा क्षय एवं प्रतिपदा के सूर्योदय समय पर रहने से सूर्य और चन्द्र दो अलग-अलग राजाओं के हाथों संचालित होगा। सम्वत् 2065, 6 अप्रैल (रविवार) को प्रतिपदा प्रात: 9.27 से आरंभ होकर रविवार की रात अर्थात् सोमवार सूर्योंदय से पहले 5.11 पर समाप्त होने की स्थिति में 76 अक्षांश पहले पश्चिमी छोर की ओर से श्रीलंका के छोर को छूते हुए प्रतिपदा के क्षय रहने से रविवार को नए विम सम्वत का अभिनंदन किया जाएगा। जबकि पूर्वी भारत में 7 अप्रैल (सोमवार) को नया वर्ष मनाया जाएगा।
इस्लामाबाद से लेकर लाहौर का पश्चिम भाग, अमृतसर, जालंधर, जयपुर, बूंदी, कोटा, उदयपुर, चित्तौड़, बांसवाड़ा, सम्पूर्ण गुजरात, मंदसौर, उज्जैन, इन्दौर, झाबुआ, खरगोन, धार, पश्चिम महाराष्ट्र अकोला, पुणे, मुम्बई, सोलापुर, सांगली, कोल्हापुर, सतारा, रत्नागिरी, गोवा, बीजापुर, गुलबर्गा, हुबली, कर्नाटक व रामेश्वरम् का पश्चिम क्षेत्र छूते हुए 76 अक्षांश रेखा के पश्चिम क्षेत्रों में नूतन वर्ष का आरंभ 6 अप्रैल (रविवार) को होगा जबकि 7 अप्रैल (सोमवार) को प्रात: 6 बजकर 9 मिनट के बाद जिन स्थानों पर सूर्योदय होगा वहां पर प्रतिपदा का क्षय नहीं होने से चंडीग़ढ, अंबाला, कुरुक्षेत्र, दिगी, अलीगढ़, प्रयाग, झांसी, ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर, छत्तीसगढ़, नागपुर, पूर्व महाराष्ट्र, कानपुर, लखनऊ, पूर्वी मद्रास, कोलकता, विशाखापट्टनम, पूर्वीबंगाल में वर्ष प्रतिपदा 7 अप्रैल (सोमवार) को होगी। युग महोत्सव व सृष्टि आरंभ का महत्वपूर्ण दिवस अलग-अलग दिन रहने से दो अलग-अलग शासकों के कारण ग्रहों के मंत्रिमंडल में भी अलग-अलग प्रभावों से देश के दोनो भागों को परिणाम झेलने पड़ेंगे। इस प्रकार की भौगोलिक स्थिति 10 व 11 अप्रैल, 2032 यानी विम सम्वत् 2089 में भी आएगी।
हिमाद्री के अनुसार चैत्र मासि जगद्ब्रह्मा सगृजे प्रथमे हनि अर्थात् चैत्र मास शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा ने सृष्टि रचना आरम्भ की थी, इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सृष्टि का प्रकटोत्सव दिवस है, भास्कराचार्य ने भी सिध्दांत शिरोमणि में लिखा है कि चैत्र मास शुक्ल पक्ष के आरम्भ में रविवार के दिन, सतयुग का आरम्भ हुआ। भगवान राम का राज्याभिषेक, वरुण देव झूलेलाल का जन्म दिन, महाराजा युधिष्ठिर द्वारा संवत् का प्रारंभ, राष्ट्रीय सर्जना व नवोत्थान के प्रेरणा पुंज डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हुआ था। उल्लेखनीय है कि सम्राट शकारि विमादित्य शकों को पराजित कर सार्वभौम सम्राट के रूप में इसी दिन सिंहासनारूढ़ हुए और विधिवत विम संवत् प्रारंभ किया। इस दृष्टि से विम संवत् भारतीय शौर्य, पराम और अस्मिता का प्रतीक भी है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रात: सरोवरों में स्नान, सूर्य को अर्घ्य देकर प्रकृति के नव कलेवर धारण किए हुए मंगलमय वातावरण में मांगलिक कार्यों के प्रारंभ का विधान है।
वर्ष प्रतिपदा से शक्ति आराधना के रूप में वासन्तिक नवरात्रि का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है। स्वास्थ्य की सुरक्षा के साथ-साथ चंचलमन की स्थिरता के लिए साधना प्रारंभ की जाती है।
आरोग्य जीवन की कामना से नीम की पत्तियों काली मिर्च, मिश्री और अजवाईन तो कहीं-कहीं धनिया, चीनी के प्रसाद वितरण के पीछे भी आयुर्विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं।
सृष्टि संवत् की कालगणना का आधार देखने पर वर्तमान में 1 अरब 97 करोड़, 64 लाख, 61 हजार, 6 सौ 68 वर्ष के रूप में भारतीय कालगणना का इतिहास किसी गौरव गाथा से कम नहीं है। दूसरी ओर 28 वें कलियुग के 5109 वर्ष या 52वीं शताब्दी अर्थात् विश्व की शेष गणनाओं से भी 31 शताब्दी आगे भारत की ऐतिहासिक परम्परा किसी गौरवगाथा से कम नहीं है।
इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की विशेषता यह रहेगी कि भारत में दो अलग-अलग दिनों में वर्ष प्रतिपदा का प्रवेश होगा। तिथि का निर्धारण खगोलीय वैज्ञानिक प्रक्रिया है, यह सूर्य तथा चन्द्रमा की गति के आधार पर तय होती है। इस स्थिति भेद के चलते भौगोलिक आधार पर भारतीय नववर्ष विम सम्वत् 2065 शालिवाहन शाके 1930 दो अलग-अलग दिन मनाया जाएगा। पश्चिमी और पूर्वी भारत में मश: प्रतिपदा क्षय एवं प्रतिपदा के सूर्योदय समय पर रहने से सूर्य और चन्द्र दो अलग-अलग राजाओं के हाथों संचालित होगा। सम्वत् 2065, 6 अप्रैल (रविवार) को प्रतिपदा प्रात: 9.27 से आरंभ होकर रविवार की रात अर्थात् सोमवार सूर्योंदय से पहले 5.11 पर समाप्त होने की स्थिति में 76 अक्षांश पहले पश्चिमी छोर की ओर से श्रीलंका के छोर को छूते हुए प्रतिपदा के क्षय रहने से रविवार को नए विम सम्वत का अभिनंदन किया जाएगा। जबकि पूर्वी भारत में 7 अप्रैल (सोमवार) को नया वर्ष मनाया जाएगा।
इस्लामाबाद से लेकर लाहौर का पश्चिम भाग, अमृतसर, जालंधर, जयपुर, बूंदी, कोटा, उदयपुर, चित्तौड़, बांसवाड़ा, सम्पूर्ण गुजरात, मंदसौर, उज्जैन, इन्दौर, झाबुआ, खरगोन, धार, पश्चिम महाराष्ट्र अकोला, पुणे, मुम्बई, सोलापुर, सांगली, कोल्हापुर, सतारा, रत्नागिरी, गोवा, बीजापुर, गुलबर्गा, हुबली, कर्नाटक व रामेश्वरम् का पश्चिम क्षेत्र छूते हुए 76 अक्षांश रेखा के पश्चिम क्षेत्रों में नूतन वर्ष का आरंभ 6 अप्रैल (रविवार) को होगा जबकि 7 अप्रैल (सोमवार) को प्रात: 6 बजकर 9 मिनट के बाद जिन स्थानों पर सूर्योदय होगा वहां पर प्रतिपदा का क्षय नहीं होने से चंडीग़ढ, अंबाला, कुरुक्षेत्र, दिगी, अलीगढ़, प्रयाग, झांसी, ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर, छत्तीसगढ़, नागपुर, पूर्व महाराष्ट्र, कानपुर, लखनऊ, पूर्वी मद्रास, कोलकता, विशाखापट्टनम, पूर्वीबंगाल में वर्ष प्रतिपदा 7 अप्रैल (सोमवार) को होगी। युग महोत्सव व सृष्टि आरंभ का महत्वपूर्ण दिवस अलग-अलग दिन रहने से दो अलग-अलग शासकों के कारण ग्रहों के मंत्रिमंडल में भी अलग-अलग प्रभावों से देश के दोनो भागों को परिणाम झेलने पड़ेंगे। इस प्रकार की भौगोलिक स्थिति 10 व 11 अप्रैल, 2032 यानी विम सम्वत् 2089 में भी आएगी।