Tuesday, February 19, 2008

श्रीराम सेतु को नष्ट करने की तैयारी कर रहे निकम्मे और नपुंसक शासक

सीहोर 18 फरवरी (फुरसत)। घर और बच्चों को संस्कार देने का काम केवल योग्य माताएं ही कर सकती हैं। बच्ची को संस्कारित करने के लिये जरुरी है कि माताएं भ्ी संस्कारी हों। पतिव्रता नारी कोई भी चमत्कारी कर सकती है और सुयोग्य संतान भी वहीं पैदा होती है, जिस घर में पिता की ईमानदारी की कमाई, पविध्द बुध्दी और हरिचरणों में प्रेम करने वाला हृदय निवास करता हो।
इस आशय के उद्गार काशी से पधारे स्वामी डॉ रामकमल दास वेदांती जी महाराज ने विधायक रमेश सक्सेना के गृह ग्राम में लगातार 27 वीं बार मानस प्रचार समिति बरखेड़ाहसन के तत्वाधान में हो रही संगीतमयी श्रीरामकथा के पांचवे दिन समापन अवसर पर बडी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। स्वामी जी ने कहा कि जहाँ अन्याय से धन इकट्ठा किया जाता है वह दस वर्ष से अधिक नहीं ठहरता, ग्यारहवां वर्ष लगते ही वह अनीति से कमाया हुआ धन पहले से एकत्रित धन को भी नष्ट कर देता है। उन्होने कहा कि अमीरों को भी अपनी बेटी को विदा करते समय अनावश्यक धन का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए ताकि गरीब भी अपनी बेटी को विदा करने में संकोच नहीं करे। उन्होने कहा कि जीवात्मा का परमात्मा से मिलन महात्मा ही करा सकते हैं इसलिये संत समागम में कभी कोताही नहीं करें। स्वामी जी ने रामसेतु की चर्चा करते हुए कहा कि श्रीराम का जन्म साढ़े नौ लाख साल पहले हुआ था और दिन रात जोड़ लिये जाये तो 19 लाख वर्ष होते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्रीराम के प्राकटय को 19 लाख वर्ष बीते हैं और हाल ही में नासा ने अंतरिक्ष से रामसेतु का चित्र अमेरिका को भेजा, उसमें भी रामसेतु 19 लाख वर्ष पुराना बताया गया है इससे स्पष्ट है कि रामसेतु भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित है। उन्होने कहा कि यह दुख की बात है कि आज श्री लंका अपने देश के ऐतिहासिक अवशेषों को समेट रहा है और भारत की निकम्मे और नपुंसक शासन देश के गौरव के प्रतीक रामसेतु को नष्ट करने की तैयारी कर रहे हैं। स्वामी जी ने कहा कि रामसेतु के कारण ही सुनामी की लहरों ने भारत में दूसरे देशों की अपेक्षा कम नुकसान पहुँचाया क्योंकि सेतु के कारण सुनामी की लहरों की गति कम हो गई थी। यह रामसेतु रामेश्वरम से श्रीलंका के बीच है जो श्रीराम के लंका जाने का अकाटय प्रमाण है अन्यथा नासा को इसी स्थान पर सेतु का पता क्यों चला ? कहीं और भी यह सेतु हो सकता था ? स्वामी जी ने कहा आज पूछा जाता है कि राम जन्मभूमि कहां है ? जिस तरह दिन के उजाले में उल्लू देख नहीं पाते उसी प्रकार आज के शासन रामजन्मभूमि को लेकर यही कहते रहते हैं। उन्होने कहा कि रामेश्वरम में आज भी ऐसे पत्थर हैं जो पानी में तैरते हैं, मैं स्वयं ऐसा ही एक पत्थर अपने आश्रम में रामेश्वरम से लाया हूँ। कथा के बीच में स्वामी जी ने कई सुमधुर भजनों का रसास्वादन भी कराया। कथाा स्थल पर आज समापन अवसर पर भारी संख्या में धर्मप्रेमी जन उपस्थित रहे। लगातार पांच दिन से लगातार बरखेड़ाहसन में श्रीराम रस की गंगा बह रही थी। विधायक रमेश सक्सेना ने सभी धर्मप्रेमियों के रामकथा में उपस्थित होने पर आभार प्रकट किया। sehore fursat