सीहोर 27 नवम्बर (नि.सं.)। वर्ष 2008 के मतदान जिस हाईटेक पध्दति से मशीनों द्वारा हो रहे थे, और पूरे प्रदेश में शानदार व्यवस्था निर्वाचन आयोग द्वारा की गई थी उस व्यवस्था के सहयोग से आज अधिकारी और कर्मचारी परहेज करते हुए नजर आये। निर्वाचन कराने समय उनका आलस, धीमी गति और चिड़चिड़ापन हर एक आम मतदाता को खला। स्थानीय निर्वाचन विभाग द्वारा अव्यवस्थित और हड़बड़ाहट में दिये गये प्रशिक्षण की पोल भी आज खुल गई। मतदाता तो हेरान-परेशान हुए ही बल्कि सारी उच्च स्तरीय साजो-सामान भी इन अव्यवस्थाओं के आगे बोने साबित हो गये। मतदान का प्रतिशत कम रहने के पीछे यह भी एक बहुत बड़ा कारण रहा।
मध्य प्रदेश में नई सरकार बनने के दिन और बनाने को लेकर उत्साह आज सुबह 9-10 बजे तक ही सामने आना शुरु हो गया था। यूँ तो इस बार सबसे यादा गड़बड़ी तब सामने आई जब आम मतदाता जो वर्षों से सुबह 7 बजे से मतदान करने पहुँचता रहा है वह सुबह 7 बजे ही मतदान करने पहुँच गया और यहाँ देखा तो मतदान केन्द्र पर कौऐ उड़ रहे थे। मतदान केन्द्रों पर कोई नहीं था। असल में इस बार मतदान का समय एक घंटा कम कर दिया गया था। मतदान प्रारंभ 8 बजे से हुआ। लेकिन जिला निर्वाचन अधिकारी और विभाग इस बात को व्यवस्थित रुप से प्रचारित नहीं कर सका यह बात आज स्वयं ही सिध्द हो गई। बहुत बड़ी संख्या में लोग सुबह 7 बजे से मतदान करने जाते हैं लेकिन उन्हे आज परेशानी हुई जबकि इस बार प्रशासन ने अलग से बात का प्रचार-प्रसार नहीं किया था। इस महत्वपूर्ण बात को प्रशासन ने अथवा उसके प्रचार तंत्र ने बहुत ही हल्के ढंग से लिया लगता है।
ले देकर जब 8 बजे मतदान शुरु हुआ तब तक अधिकांश मतदान केन्द्रों पर लाईन लग चुकी थी। गंज के अम्बेडकर मंगल भवन की लाईन यदि सबसे बड़ी थी तो कस्बा स्थित शासकिय कन्या माध्यमिक शाला कमला नेहरु की लाईन भी छोटी नहीं थी। लेकिन जब मतदान शुरु हुआ तो मतदान करा रहे अधिकारियों का आलस, उनके चेहरे की भाव भंगिमा माहौल को तनाव पूर्ण और बेरस बना रही थी। मतदान कराने वाले इतने धीमे काम कर रहे थे कि एक मतदान के लिये वह 2 मिनिट तक ले रहे थे। परिचय पत्र देखने वाले अधिकारी परिचय-पत्र ऐसे देख रहे थे कि बेचारों को पढ़ना-लिखना ही नहीं आता हो, निर्वाचन आयोग के बने हुए परिचय-पत्र तक बहुत बारीकी से देखने के बाद आराम से उसका नम्बर वाली पर्ची लेना फिर अपनी मतदाता सूची के एक-एक पन्ने को पलटते हुए मतदाता का क्रमांक ढूंढना और उसके बाद जब नम्बर मिल जाये तो फिर चेहरा देखकर मिलाने का प्रयास करना, यदि मतदाता परिचय-पत्र के अलावा कोई और परिचय पत्र लाया गया है तो दूसरे अधिकारी से पूछना, बताना आराम से समझना और फिर आगे की कार्यवाही करना।
इसके बाद अगले चरण पर मतदाता को भेजना और उसके हस्ताक्षर कराये जाना, स्याही लगना। इस दौरान मतदाता सूची देखने वाले अधिकारी द्वारा यहाँ बैठे पार्टी के लोगों को नम्बर बताना, उन्हे चढ़वाना, उधर से मतदाता को एक पर्ची दी जाती फिर पर्ची लेकर वह मतदान करने जाता और इस प्रकार मतदान सम्पन्न होता। इस पूरी प्रक्रिया में एक से दो मिनिट तक अधिकारी ले रहे थे लेकिन उनके चेहरों पर किसी तरह की परेशानी नहीं थी। बाहर खड़े मतदाताओं की भीड़ जो बढ़ती ही जा रही थी उससे तो उन्हे जैसे कोई सरोकार ही नहीं था।
हालांकि एक-दो मतदान केन्द्रों पर जहाँ समझदार और मानवीय संवेदनाओं से भरे-पूरे अधिकारी बैठे थे वह अवश्य इसी कार्य को बहुत आसानी से बहुत फुर्ती के साथ निपटा रहे थे। लेकिन ऐसा सिर्फ एक-दो मतदान केन्द्रों पर ही देखने को मिला।
वरना तो हर मतदान केन्द्र पर बहुत धीमे मतदान कराया गया। लम्बी-लम्बी लाईनों में खड़े मतदाता या तो थककर वापस चले गये या लाईन देखकर वापस चले गये।
आज जब भारतवर्ष ने उन्नति कर ली और मतदान के लिये पुरानी पध्दति से हटकर नई मशीनें आ गई हैं उसके बावजूद मशीनों की गति को रोकने का काम उसे चलाने वालों ने किया। मशीन तो तेज चलने को तैयार थी लेकिन उस तक मतदाता को पहुँचने से रोकने वाले बहुत अड़ंगे हो गये हैं।
वार्ड क्रमांक 1 मतदान केन्द्र क्रमांक 122 सीहोर नगर कोलीपुरा व बढ़ियाखेड़ी पर सुबह से लाईन लगी थी। महिलाओं और पुरुषों बहुत लम्बी-लम्बी लाईनें थी। कई बुजुर्ग लोग भी इसमें शामिल थे। लेकिन यहाँ अधिकारी थे कि समझाईश के बावजूद उनके हाथों में फुर्ती आने को ही तैयार नहीं थी। शाम जल्दी घर जाने के चक्कर में इन्हे मतदान करने वालों की देश के प्रति भावनाओं का ख्याल नहीं आ रहा था। इन्हे सिर्फ इतनी फिक्र थी कि जैसे ही 5 बजे मतदान समाप्त हो उस समय हमारा हिसाब पूरा व्यवस्थित होना चाहिये, हम जल्दी-जल्दी से सारी मशीन (भेगत) समेंटे और जमा कराकर मुक्त हों। इसी चक्कर में हर मतदान के बाद वह अपनी कागजी खानापूर्ति को बहुत इत-मिनान से करते थे, एक-दूसरे से पूछते थे और फिर उसके बाद अगले मतदान की तरफ ध्यान देते थे।
हालांकि अम्बेडकर मंगल भवन गंज में भी बहुत लम्बी लाईन लग गई थी और अगला आदमी लाईन में खड़े होने को ही तैयार नहीं था। ऐसी स्थिति में यहाँ जब कुछ लोगों ने अंदर जाकर बातचीत की तथा अधिकारियों को समझाया कि क्या आपको भोजन -पानी नहीं मिला या किसी ने आपके साथ कुछ कर दिया है जो आप मतदान इतना धीमा करा रहे हैं या कलेक्टर ने आपसे बदतमीजी कर दी है जिसका बदला आप ले रहे हैं आखिर क्या हो गया है जो आपके हाथ-पांव सुन्न हो रहे हैं और आप मतदान इतना धीमा करा रहे हैं, तब उनके समझ में आई कि हाँ वह लोग अपेक्षा से बहुत अधिक धीमा मतदान कर रहे थे फिर समझाईश के बाद जब उनके हाथ-पाँव में नई जान आई तब इतनी गति से मतदान हुआ कि लाईन सिमटकर अम्बेकर मंगल भवन के अंदर तक चली गई और छोटी रह गई।
यहाँ से यह बात सिध्द हो गई कि सारे ही मतदान केन्द्रों पर यही इसी प्रकार मतदान कराने वाले अधिकारियों में फुर्ती होती तो फिर मतदान बहुत जल्दी हो जाता था और यदि ऐसा होता तो मतदान का प्रतिशत निश्चित रुप से कम से कम 10 प्रतिशत बढ़ जाता।
आज स्थानीय निर्वाचन विभाग द्वारा मतदान की अव्यवस्थाएं और प्रशिक्षण में की गई कोताही भी सामने आ गई। यूँ तो यह बात उसी समय सामने आ गई थी जब हड़बड़ाहट पूर्ण तरीकों से, मशीनों से मतदान कराने का प्रशिक्षण दिया गया था और प्रशिक्षण देने वाले यह सोच रहे थे कि चूंकि पिछली बार मतदान मशीनों से हुआ है इसलिये वह यादा विस्तार से ना समझाते हुए सिर्फ टालमटोल कर रहे थे। जबकि कि सी भी मशीनीकृत जानकारी जिसे 5 साल पहले समझा गया हो उसे फिर से समझाते समय पूरे व्यवस्थित रुप से समझा चाहिये । जो भी हो आज दो मतदान केन्द्रों मतदान केन्द्र क्रमांक 140 और 29 पर बैठे पीठासीन अधिकारियों ने जब मशीने खोली तो उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
उन्हे जितनी समझाईश दी गई थी वह सब भूल गये। मशीन चालू और सही होते हुए भी एक जगह तो अधिकारी घबराहट में तार ही नहीं जोड़ पाये दूसरी तरह कुछ और खटका दबाकर चालू न कर सके। कुल मिलाकर अव्यवस्थित प्रशिक्षण के चलते यह स्थिति बनी।