सीहोर 18 अक्टूबर (नि.सं.)। सीहोर में स्थित उपजेल अव्यवस्थाओं की शिकार तो है ही वहीं भ्रष्टाचार का आलम यह है कि यहाँ कोई लोक लाज का डर भी नहीं। क्षमता से अधिक भरे कैदी, गंगदी, बदबू, मच्छर से परेशान हैं, उधर उन्हे भोजन भी ठीक और भरपेट नहीं मिलता। मजेदार बात यह भी है कि यहाँ बंदी कहीं अधिक है जो विचाराधीन हैं। सजायाफ्ता कुछ ही हैं, लेकिन विचाराधीन कैदी आठ पन्द्रह दिन या एक माह भी रुक जाये तो उसे महिनों की कैद-सी सजा लगती है।
शहर के बीचों बीच मुख्य स्थान पर स्थित इस जेल में कैदी से मिलना हो तो प्रहरी साहब को भेंट चढ़ाना आवश्यक है। अगर किसी मामले में 10 विचाराधीन कैदी हैं और उससे मिलना हो तो 100 रुपये की भेंट चढ़ानी ही होगी। सुकुन के दो पल बात करनी हो तो प्रहरी साहबों को चाय पान की अतिरिक्त सेवा करनी होगी। दिन भर मिलने वालों का तांता लगा रहता है और दिन भर ही यह क्रम चलता है। अगर आप यादा समझदार बन रहे हो तो नियम कायदे सामने बता दिये जाते हैं। विचाराधीन कैदियों को फल दूध भी देना हो तो उतना ही चढ़ावा जेल को चढ़ाना होगा ? कितने ही पढ़े लिखे और नियम कायदों को समझने वाले हो सब इनके आगे बेकार हैं क्योंकि सीधी धोंस यह रहती है कि जेल में जगह नहीं है आपका ट्रांसफर बड़ी जेल में कर दिया जायेगा कैदी यहाँ से जाना नहीं चाहता।
जेल में जेलर साहब के समय-समय पर दर्शन होते हैं जिसका पूरा लाभ प्रहरी लोग उठाते हैं। शिकायतकर्ता जेल के चक्कर लगा-लगाकर थक जाये जेलर किस्मत भरोसे ही मिलेंगे। जेल में अव्यवस्थाओं का आलम यह है कि यहाँ क्षमता से अधिक कैदी भरे हैं जो वेरकों में ठीक ढंग से रह भी नहीं पाते।
उधर गंदगी और बदबू पूरे जेल परिसर में इतनी अधिक है कि निरोगी कैदी भी बाहर निकले तो रोगी हो जाये। जेल प्रहरी अंदर जाने को तैयार नहीं रहते उनका काम बाहर से ही चलता है। जेल में कैदियों को भरपेट खाना नहीं मिलता। लेकिन जेल में बंद कैदी शिकायत किससे करें। शिकायत सुनने वाला कोई वरिष्ठ अधिकारी आता ही नहीं। जेल का निरीक्षण और उसकी व्यवसथा देखने का अधिकार अधिकारियों के पास है लेकिन इस अधिकार का किसी ने उपयोग ही नहीं किया। यही कारण है कि सब कुछ मनमर्जी से चल रहा है।