सीहोर 15 जून (आनन्द गाँधी)। रोजगार गारंटी योजना को ग्राम के ही सरपंच सचिव ने मिलकर ऐसा चूना लगाया कि बेचारे बेकार बैठे श्रमिकों को काम ही नहीं मिल सका और उनसे जुड़े ठेकेदारों के मजे हो गये, बैठे-बैठाये काम मिल गया और मेहनत भी कम लगी। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में इस मंहगाई के दौर में जो श्रमिक हेरान-परेशान थे काम नहीं मिल रहा था और अब बरसात में इन्हे और भी काम नहीं मिलेगा वह बेकार ही रह गये जबकि ठेकेदारों ने मजे उड़ाये। अधिकांश ग्रामो में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मजाक बन रह गई... और जिला प्रशासन आंख मूंदा रह गया। ग्रामीण बेरोजगार श्रमिकों के लिये चालू की इस योजना के नियमों की जानकारी व्यापक प्रसार-प्रचार के अभाव में बेरोजगार श्रमिकों को नहीं मिल सकी वरना वह उसका अवश्य लाभ उठाते। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना की जिले में क्या स्थिति यह तो उस वक्त ही उजागर हो गया था जब पिछले दिनों मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत ने 10 ग्रामों का दौरा किया और उसमें 3 ग्रामो में अनियमिता पाई....इस योजना का किसको मिला लाभ ? किसकी जेब में गये रुपये ? कितना हुआ काम ? सब है चर्चा - ए -आम।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का धजियाँ सीहोर जिले में ऐसी बिखरीं की अब बेरोगजार सरकार को कोसते ही रह गये, मंहगाई के इस दौर में बुरे हाल हो गये और जिन ठेकेदारों, सरपंचों व अधिकारी-कर्मचारियों की इसमें सांठ गांठ की उनकी जेब एक बार फिर भरा गई। 1 अप्रैल 2008 से प्रारंभ हुई रोजगार गारंटी योजना के प्रारंभ में कहा गया था कि 100 दिन की रोजगार गारंटी दी जायेगी। इस मान से अभी जुलाई तक योजना चल सकती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में न तो अब रुपया शेष बचा है ना ही काम ? सारा काम कहीं न कहीं हो चुका है कुछ जमीन पर तो बाकी सारा कागजों पर निपट चुका है।
3 महिने में बस 3 गड़बड़ी दिखी
विगत 30 मई को जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अरुण तोमर ने अचानक आष्टा विकासखण्ड की ही ग्राम पंचायत लसूड़िया सूखा और झिलेला ग्राम पंचायतों के काम पर नजर डाली तो पता चला कि वहाँ गड़बड़ झाला चल रहा है। बात सामने आई कि कागजों की खानापूर्ति ठीक नहीं की गई है लेकिन क्या काम पूरा हुआ था वहाँ ? यहीं आष्टा विधायक के ग्राम कोठरी में भी पंचायत समन्वयक अधिकारी पर कार्यवाही की गई थी।
सूत्रों का कहा है कि जहाँ-जहाँ भी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का रुपया आवंटित किया गया वहाँ बेरोजगार श्रमिकों से काम कराने की व्यवहारिक कार्यवाही करने में संबंधित अधिकारियों ने खुद को बचाया। हालांकि कागजी खानापूर्ति उन्होने बकायदा की लेकिन काम अपने परिचित ठेकेदारों से ही कराया गया ।
असल में शासन की योजना थी कि हर बेरोजगार को कुछ न कुछ रोजगार मिल सके इसके लिये वह पहले तो अपना पंजीयन कराये और साथ ही काम करने के लिये अपना आवेदन भी दे दे लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में बेरोजगार न तो अपना आवेदन दे सके और ना ही अपना पंजीयन करा सके।
और ऐसे हो जाती काम की गारंटी
यदि वह पंजीयन करा लेते तो शासन की रोजगार गारंटी के अन्तर्गत वह आ जाते और आराम से उनको काम मिल जाता यदि शासन उन्हे काम नहीं भी देता तो शुरु हो जाती गारंटी । मतलब काम कराकर जितना रुपया उसे दिया जाता उतना ही रुपया बकायदा उसी ढंग से बिना काम कराये दिया जाता जो एक तरह से होता बेरोजगारी भत्ता। शासन की योजना थी कि या तो शासन काम देगा नहीं और 15 दिन के भीतर काम नहीं दे सकने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ते के रुप में काम के बराबर का भुगतान संबंधित आवेदक को करेगा।
जानकारी ही नहीं दी
लेकिन न तो ऐसे बेरोजगारों को बिना काम कराये भुगतान किया गया और ना ही ऐसे बेरोजगारों के आवेदन ही पर्याप्त मात्रा में आये। कारण स्पष्ट है शासन की रोजगार गारंटी योजना का पर्याप्त तरह से न तो प्रचार-प्रसार हुआ ना ही बेरोजगार श्रमिकों को इसकी सही जानकारी दी गई।
वो अनजान थे इनने लाभ उठाया
श्रमिकों की अनभिज्ञता का लाभ योजना क्रियान्वयन करने वाले अधिकारी, पंचायत के संबंधित कर्ताधर्ताओं ने खूब उठाया। उन्होने अपने प्रिय ठेकेदारों से काम कराया और जब कोई यहाँ जांच करने आता तो वह पहले से ही श्रमिकों को यह सिखा कर रखते की तुम बताना की दिनभर की मजदूरी पर लगाया गया है, खुद को ठेकेदार के आदमी मत बताना। इधर उच्चस्थ अधिकारियों ने 1 अप्रैल से प्रारंभ हुई रोजगार गारंटी की जांच दो माह बीत जाने के बाद 30 मई को की थी जिसके बाद अभी तक कोई नई जानकारी नहीं है।
आये थे 28 अरब 92 करोड़ रुपये मतलब सबको काम...
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मध्य प्रदेश में इस वर्ष 28 अरब 92 करोड 67 लाख 23 हजार रुपये आये थे जिससे पूरे प्रदेश में 1 लाख 36 हजार 3 काम पूरे किये गये हैं और 43 लाख 46 हजार 916 परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। यह किस्मत ही थी कि सीहोर जिले को भी इस योजना में जोड़ा गया था और भारी भरकम राशि भी जिले को आबंटित की गई थी।
उन ग्रामीण क्षेत्र के आम ग्रामीणों को भी अब पता चलता जा रहा है कि उनके ग्राम में कौन-कौन-से काम ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत हुए और हो रहे हैं जबकि उन्हे किसके द्वारा किसके आदमी कर रहे हैं। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में इस योजना की चर्चा ए आम है।
उल्लेखनीय है कि ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत 69 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी दिया जाना तय है। ऐसे में जो बेरोजगार हर तरफ से बेकार रहते हैं और काम नहीं मिल रहा होता है उन्हे इस योजना का अच्छा लाभ मिल सकता था।
दो दिन चला और ढेर हो गया
यहाँ कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े तामझाम के साथ जहाँ रोजगारी गारंटी योजना का काम शुरु भी किया गया तो ऐसी अधिकांश ग्राम पंचायतों में दो-तीन दिन चलकर काम बंद हो गया और मजदूरों को वापस कर दिया गया ?
तो फिर गारंटी कहाँ चली गई ?
लेकिन ऐसी स्थिति जो मजदूर काम करने आये थे उन्हे रोजगार की गारंटी नहीं दी गई ? मतलब काम नहीं दे पाने की स्थिति में जो शासन का नियम है कि बेरोजगार को पूरे रुपये का भुगतान किया जायेगा वह नहीं किया गया। जावर तहसील के ग्राम खजूरिया के रहने वाले अम्बाराम के अनुसार मालवीय के अनुसार उसने तीन दिन काम किया था 10 गुणा 10 का एक फिट गड्डा खोदा और मिट्टी को ऊपर भी चढ़ाया लेकिन तीसरे दिन काम का आंकलन करने वाले अधिकारी ने उसे 30 रुपये प्रतिदिन देने का निर्णय सुना दिया। ऐसी स्थिति में कोई कैसे कर सकता है काम। कुल मिलाकर इतनी बड़ी योजना सीहोर में आई थी जिससे हजारों बेरोजगारों को पर्याप्त रोजगार भी मिलता और 100 दिन के काम की गारंटी भी ? लेकिन न तो काम ही उसे मिला, ना ही गारंटी। ना रुपया मिला न पंजीयन हो सका और रोजगार गारंटी सिर्फ अधिकारियों की कमाई की गारंटी बनकर रह गई।