सीहोर 4 जून (नि.सं.)। अब तक सीहोर वाले भोपाल से सब्जी खरीदकर लाते हैं और बेचते हैं यह बात तो समझ आती थी लेकिन आजकल नगर पालिका में कुछ उल्टा ही मामला चल रहा है....यहाँ एक कर्मचारी नित नई-नई सब्जियाँ खरीदकर साहब को पेश करते हैं और साहब शाम को अपने घर भोपाल ले जाते हैं। आये दिन साहब को सब्जियाँ देने वाले कर्मचारी से जब पिछले दिनों एक अन्य अधिकारी ने अड़ी रखते हुए कहा कि हम भी सब्जी विदिशा ले जाना चाहते हैं तो बस फिर क्या कर्मचारी उबल पड़ा.... उसका छुपा हुआ दर्द एकदम सामने आ गया उसने जीभरकर इस नये अधिकारी को कोसा।
नगर पालिका के एक कर्मचारी आजकल आये दिन सब्जी मण्डी में घंटो टहलते दिख जाते हैं। इनकी यूँ तो कई विशेषताएं हैं। यह सब्जी बनाने में ही नहीं बल्कि शाकाहारी व मांसाहारी भोजन दोनो तरह का बनाने में महारथ इन्हे हासिल है। इनके किस्से तो वैसे भी स्वादिष्ट भोजन के नाम पर चलते ही हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री के सहित केन्द्रिय मंत्रियों तक को अपने हाथ से सब्जी बनाकर खिला चुके हैं । कई कलेक्टरों को भी यह अपना हुनर दिखा चुके हैं लेकिन आजकल जिस काम पर इन्हे लगा दिया गया है वह बड़ा ही बेतुका है। यूँ तो यह बनाने में भी और खिलाने में भी माहिर हैं लेकिन आजकल इनके बिना पकाये ही माल खाया जा रहा है।
अब जब सब्जी बाजार में यह सब्जी खरीदते हैं तो कई लोग अक्सर पूछ बैठते हैं चाचा क्या आज पार्टी है....चाचा कुछ नहीं बोलते और चुप रह जाते हैं। कभी कभी कुछ उखड़े-उखड़े नजर आते हैं।
जब कुछ लोगों ने छानबीन की तो पता चला कि आज कल यह नगर पालिका के एक अधिकारी के लिये सब्जी खरीद-खरीदकर ले जाते हैं।
सीहोर की महंगी सब्जियाँ उक्त अधिकारी इनसे क्यों खरीदवाते हैं और भोपाल क्यों ले जाते हैं इस संबंध में बस यही कहा जा सकता है कि साहब को जब सीहोर वाली पसंद है तो भोपाल वाली की तरफ क्यों ध्यान दें।
अब क्रम तो चल ही रहा है जिसके चर्चे भी चल रहे हैं कि आजकल एक साहब सीहोर वाली ही पसंद करते हैं लेकिन इसी तारतम्य में नगर पालिका के एक अन्य अधिकारी ने भी एक दिन इस कर्मचारी को सीधे अपने घर से लाकर झोला पकड़ा दिया पहले पहल तो यह कर्मचारी समझ नहीं पाया। लेकिन जब झोला पकड़ाने वाले अधिकारी ने कहा कि कल से मेरे लिये भी कुछ सब्जी ले आया करो.....। उसका इतना कहना था कि उक्त कर्मचारी विफर गया....बोला अच्छा क्यों ले आया करुँ....तुम क्या मेरे......तुम्हारी तो.... और इसके अलावा तरह-तरह के संबोधनों से उसे नवाजा और झोला उसके मुँह पर ही दे मारा। कर्मचारी का दर्द यहाँ सबके सामने आ गया उसने कहा वैसे ही परेशान हूँ और यह चले आये साहब कह रहे हैं मेरे लिये भी ला दो....मेरे घर में उग रही है जो ला दूँ.....फ्री मे ले लो सब....। मामला बड़ी मुश्किल से शांत हुआ। उक्त नये झोला वाले साहब चाहते थे कि उन्हे भी सीहोर वाली सब्जी विदिशा ले जानी है लेकिन उनकी यह तमन्ना पूरी नहीं हो सकी।