Thursday, January 17, 2008

सब्जी विक्रेताओं की सांठ-गांठ से मिल रही महंगी सब्जी 5-6 रु. की मटर 10 रुपये किलो बेच रहे सब्जी विक्रेता

सीहोर 15 जनवरी (फुरसत)। नगर में सब्जी विक्रेताओं का नया कारनामा पहली बार नगर में कारगर हो रहा है जिसके तहत सब्जी मण्डी में सब्जियों के भाव अत्याधिक हो गये हैं। मटर की आपूर्ति अत्याधिक होने पर भी यहाँ सब्जी विक्रेता उसे खरीद लेते हैं लेकिन दाम नहीं गिरने देते। यही हालत अन्य सब्जियों में भी हो गई है। बड़े व्यापारियों ने अब सब्जी का स्टाक करना शुरु कर दिया है जिससे यह आपस में सांठ-गांठ कर दाम भी नहीं गिरने देते।
इतना ही नहीं बड़े और छोटे दुकानदार अब सब्जियों की दुकान भी कुछ नई पध्दति से करवा रहे हैं। देखिये किस प्रकार 5-6 रुपये किलो की मटर 10 और गाजर, मूली, गिलखी, मैथी, फूलगोभी आदि के दाम बढ़ाये गये हैं। सब्जी विक्रेताओं की इस नई रणनीति पर एक नई नज़र।
ठंड के मौसम में एक तरह से सीहोर सब्जी मण्डी की रौनक दुगनी हो जाती है। यहाँ न तो बरसात में सब्जी की आवक अच्छी रहती है न ही गर्मी में सब्जी आती है। आती है तो सिर्फ ठंड के दिनों में भरपूर सब्जी आती है। जोरदार आवक से सब्जी मण्डी की रौनक ही बदल जाती है। हर एक सब्जी की आपूर्ति देखकर लगता है कि उसकी बहार ही आ गई है। ठंड के मौसम में सब्जी उगती भी खूब है और ग्रामीण क्षेत्रों से आने-जाने के साधन भी भरपूर रहते हैं और फिर जितनी-जितनी अधिक ठंड पड़ती जाती है उतनी-उतनी अधिक सब्जी की पैदावार बढ़ती जाती है। कुल मिलाकर सब्जी की पैदावार अधिक होने से सब्जी मण्डी में आवक इन दिनों अच्छी रहती है।
जब सब्जी की आवक अच्छी रहती है तो फिर निश्चित ही वह सस्ती भी हो जाती है। सब्जी मण्डी का नियम है कि जितनी सब्जी अधिक आयेगी उतनी ही सस्ती बिकेगी। पत्तागोभी-फूल गोभी, गिलखी जैसी सब्जियाँ तो ढेर के ढेर के भाव से बिकती है और बहुत सस्ती बिक जाती है। जबकि कुछ अन्य सब्जियाँ जो कम आती हैं तो वह भी ढेर से बिक जाती हैं। रही बात फली वाली सब्जियों की जैसे मटर व गाजर आदि पसेरी के भाव बिकती है। हालांकि पिछले दिनों अत्याधिक आवक होने पर बोरे के भाव भी एक बारगी मटर बिक गई थी। मटर अभी 25 से 30 रुपये पसेरी बिक रही है मतलब 5 से 6 रुपये किलो। इसी प्रकार गाजर अत्याधिक सस्ती आ रही है। हरी मिर्च हो या हरा धनिया भरपूर मात्रा में आ रहा है। भरपूर मात्रा में जब सब्जियाँ आती हैं तो निश्चित रुप से वह सस्ती बेचनी पड़ती है क्योंकि हर दिन आवक भरपूर रहती है।
लेकिन इन दिनों सब्जी विक्रेताओं ने सब्जी के व्यवसाय में बड़ी मात्रा में पूंजी लगाकर जितनी भी सब्जी आती है वह खरीद लेते हैं और उसे फिर स्टाक करके रखते हैं लेकिन सब्जी के भाव नहीं गिरने देते। फिर तीन-चार दिन तक सब्जी बिकती रहती है लेकिन सब्जी के भाव नहीं गिरती। यही स्थिति हर दुकानदार कर रहा है और आपस में मिली भगत और अच्छी सांठ-गांठ करके यह व्यापारी भाव भी नहीं गिरने दे रहे। जिसके कारण नगर के आम नागरिकों को इस भरपूर आवक के मौसम में भी सब्जी महंगी मिल रही है। जबकि कुछ ठेला व्यापारी जो अलग से सब्जी खरीदते हैं और खासतोर से वह जो थोक में खरीदकर बेचते हैं वह कम भाव में सब्जी बेचकर निकल जाते हैं जिनसे सब्जी मण्डी के सब्जी विक्रेता खासे नाराज चल रहे हैं।
सब्जी विक्रेताओं की इस मिली भगत का वर्तमान में कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा है यदि नये सब्जी विक्रेता सामने आ जायें या फिर कोई बड़ी रिलायंस जैसी कम्पनी आकर थोक में सब्जी खरीदकर उचित मूल्य पर बेचे तो ही संभवत: इस प्रकार की दादागिरी कम हो पायेगी। वैसे कुछ दो-तीन वर्षों से सीहोर सब्जी मण्डी में जिन क्षेत्रों के ग्रामीण सब्जी यादा मात्रा में लाते थे वह आजकल भोपाल में जाने लगे हैं इसलिये भी अनेक तरह की सब्जियाँ आना कम हो गई हैं।

फल वालों ने भी पिछले दिनों 3 क्विं. बोर सड़ा दिये, पर दाम नहीं घटाए
सीहोर। सर्दी के इस मौसम में बड़ा वाला पेमली बोर भी फल बाजार में बडी मात्रा में आता है लेकिन चाहे इसकी आवक कितनी ही अधिक हो या फिर यह कितना ही सस्ता दुकानदार खरीद ले लेकिन उसके दाम वह नहीं गिरने देते और दाम नहीं गिरें इसलिये एक ही दुकानदार बनते कोशिश पूरा माल खरीद लेता है और फिर वही उन फल विक्रेताओं को उसमें कुछ माल बेचने के लिये देता है जो भाव नहीं गिराते। इस प्रकार दुगने भाव में फल भी बिकते रहते हैं। फल बाजार की इस नई रणनीति का ही परिणाम रहा कि दो सप्ताह पूर्व जब बोर अधिक मात्रा में फल विक्रेताओं ने खरीद लिये और उनके दाम नहीं गिराये तब उनकी बिक्री रुक-सी गई और स्थिति यह आ गई कि 5-6 दिन में बोर मुरझाकर लाल हो गये और फिर उनमें सल पड़ने लगे। लेकिन इसके बावजूद बोर के दाम फल विक्रेताओं ने नहीं गिराये और करीब 3 क्विंटल बोर इधर-उधर कर उन्होने फिर नई आवक का बोर खरीदकर उसे बेचना शुरु कर दिया है और भाव वहीं के वहीं रहे। इस प्रकार अब सीहोर के फल विक्रेताओं में मानवीयता का अभाव होने लगा है और वह अधिक लालच व लाभ में नये-नये प्रयोग कर रहे हैं।