Thursday, January 31, 2008

स्वप्न में देवताओं ने दिये दर्शन और 20 दिन में तैयार हो गया काल भैरव मंदिर

मंदिर बनवाने वाले विद्युत मण्डल के कार्यपालन यंत्री सीहोर श्री सक्सेना के साथ घटे हैं अनेक दैवीय चमत्कार
सीहोर में बना चमत्‍कारिक भैरव तंत्र पर भैरव
मंदिर
सीहोर 30 जनवरी (विशेष संवाददाता फुरसत)। देव भूमि भारतवर्ष में देव चमत्कार तो आये दिन होते ही रहते हैं लेकिन वर्तमान विद्युत मण्डल कार्यपालन यंत्री रविन्द्र जीत सक्सेना के भाग्य इस मामले कुछ यादा ही प्रबल हैं। इन्हे अक्सर जिस क्षेत्र में यह यादा दिन रह लेते हैं वहाँ के आसपास के जाग्रत देव स्थानों के स्वप् आते हैं और फिर यदि वह देव स्थान खण्डहर की स्थिति में है या व्यवस्थित नहीं बना है अथवा वहाँ किसी को जानकारी ही नहीं है यहाँ भी कोई स्थान है तो फिर अपने स्वप् में दिखे स्थान को श्री रविन्द्र जीत ढूंढना शुरु कर देते हैं और जब स्वप्न में दिखा देव स्थान इन्हे ढूंढते-ढूंढते मिल जाता है तो फिर वह वहीं एक मंदिर बनवा देते हैं। यहाँ करोली वाली माता मंदिर गंज 7 जनवरी 2008 के पूर्व कभी रवीन्द्र जीत सक्सेना ने देखा भी नहीं था लेकिन स्वप् में आये इस मंदिर के दृश्य जब उन्होने एक कागज में उतारे तो विद्युत मण्डल में ही काम करने वाले पं। कमला प्रसाद ने चित्र देखकर बता दिया यह तो करोली वाली माता मंदिर है......।
आज मात्र 20 दिन के अंदर ही 30 जनवरी बुधवार माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी को यहाँ काल भैरव का तंत्रोक्त विधि से भैरव यंत्र पर बना एक मंदिर पूर्ण हो चुका है जहाँ उनकी स्थापना हो गई। किसी यंत्र पर स्थापित अपनी तरह का यह एक ही मंदिर है जिसको लेकर नगर भर के धार्मिक लोगों में उत्सुकता भी जाग्रत हो गई है।
नगर के प्रसिध्द अन्नपूर्णा देवी करोली वाली माता मंदिर गंज के प्रांगण में आज काल भैरव मंदिर की विधिवत स्थापना की गई। यहाँ बड़ी संख्या में दर्शनार्थी उपस्थित थे। शहर के प्रसिध्द पंडित पृथ्वी बल्लभ जी दुबे ने काल भैरव की स्थापना के लिये यज्ञ-हवन आदि विधि विधान से कराये। यहाँ बने भैरव मंदिर को बकायदा भैरव यंत्र पर ही बनाया गया है। भैरव यंत्र के स्वरुप में ही मंदिर की सरंचना कराई जाकर फिर बीच में कालभैरव की स्थापना की गई है। काल भैरव जी महाराज के इस मंदिर की स्थापना विद्युत मण्डल के कार्यपालन यंत्री रविन्द्र जीत सक्सेना ने स्वयं कराई है। उन्हे यह प्रेरणा एक स्वप् के आधार पर हुई थी।
इस संबंध में फुरसत से बातचीत करते हुए श्री रविन्द्र जीत सक्सेना पुत्र शंभुदयाल सक्सेना ने बताया कि मुझ पर दैवीय आशीर्वाद कुछ ऐसा है कि समय-समय पर मुझे स्वप् आते रहते हैं और कई देवी-देवताओं से स्वप् में बातचीत भी मेरी होती है। उन्होने बताया कि पूर्व में जब मैं बरेली में कार्यरत था तो वहाँ मुझे पेड़ के नीचे बनी छोटी-सी मढ़िया के दर्शन स्वप्न में होते थे जहाँ साक्षात देवी नजर आती थीं और वह मुझे आशीर्वाद देती थीं। कई बार मुझे दर्शन तो हुए लेकिन वह स्थान कहाँ पर स्थित यह मुझे नहीं पता चल पाया।
फुरसत को श्री रविन्द्र जीत ने बताया कि फिर एक बार एक ग्रामीण मेरे पास आया उसका काम तो कुछ नहीं था लेकिन जबरन ही उसके गांव जाने का सौभाग्य मिला और तब जाकर स्वप् में दिखने वाला वह दैवीय स्थान मुझे सामने ही नजर आ गया। मैने वहाँ अपने स्तर पर चार खंबे खड़ेकर छोटा-सा मंदिर बनाने की शुरुआत की लेकिन देखते ही देखते ही मंदिर अच्छा खासा बन गया। वहाँ देवी दुर्गा की स्थापना की गई है।
धार्मिक स्वभाव के श्री रविन्द्र जीत से जब फुरसत ने पूछा कि आपको करोली वाली माता के मंदिर पर यह मंदिर बनाने की प्रेरणा कैसे मिली ? तो उन्होने बताया कि विगत 7 जनवरी को मुझे रात स्वप् आया जिसमें आसपास लगे दो-तीन पेड़ और तीन भवन दिखाई दिये। मैं वहाँ खड़ा था तभी तीनों तरफ से बड़े-बड़े शरीर धारी संत मेरी तरफ बहुत प्रसन्न मुद्रा में आते दिखाई दिये। मैने उन्हे देखकर सोचा की यह तो संत हैं तभी एक चौथे ने हंसकर कहा कि यह संत नहीं साक्षात काल भैरव व शिव गण हैं। मैने सामने देखा तो स्वयं भोलेनाथ थे। हम सभी ने करोली माता मंदिर के प्रांगण में आकर यहाँ दर्शन किये। गहन अंधेरा होने पर वह सब मुझ पर हंस रहे थे मैने पूछा यहाँ रोशनी नहीं है तो किसी ने एक कहा कि नहीं है तू क्या कर रहा है....? उनके ऐसा कहने पर घबराकर मेरी नींद खुल गई।
फुरसत ने पूछा कि फिर क्या हुआ तो रविन्द्र सक्सेना ने बताया कि स्वप् में दिखे मंदिर के आधार पर उन्होने इस बार कागज पर एक नक्शा जैसा बनाया और अच्छी तरह नक्शा बन जाने पर जब उन्होने सबसे पहले विद्युत मण्डल में ही कार्यरत पंडित कमला प्रसाद को दिखाकर पूछा कि क्या ऐसा-ऐसा कोई मंदिर है तो उन्होने तत्काल करोली माता मंदिर का नाम बताया। मैने पूछा कि वहाँ विद्युत आपूर्ति है या नहीं ? तो पं. कमला प्रसाद ने बताया कि दो माह से काट दी गई हैं तब मैने तत्काल आदेश देकर विधिवत विद्युत चालू कराई और यदि उसका कोई भार लगता हो तो उसे स्वयं वहन किया। दूसरे दिन 8 जनवरी को जब मैं कमला प्रसाद जी के साथ मंदिर देखने आया तो दंग रह गया। स्वप् में दिखा वहीं स्थान मेरे सामने था। मैरे तीनों से आये देवों के पास जाकर उन्हे प्रणाम किया। काल भैरव जी जिस पेड से आये थे वहाँ जाकर देखा तो मुझे कुछ आभास और आदेश हुआ था उसी के आधार पर वहाँ मिट्टी देखी तो एक छोटा-सा टीला दिखा जो भैरव जी की उपस्थिति का संकेत मुझे कर गया। और उसके बाद मंदिर निर्माण कार्य मैने शुरु किया जो इस स्वरुप में बन गया है आज उसकी स्थापना भी हो गई। यहाँ काल भैरव मंदिर की स्थापना पूर्ण विधि-विधान के साथ कराई गई।