सीहोर 13 जनवरी (फुरसत)। जब सूर्य मकर राशि में क्रांति करते हैं तब से देवताओं का दिन तथा दैत्यों की रात्रि प्रारंभ होती है तभी से सूर्य उत्तरायण होते हैं तथा कर्क संक्रांति दक्षिणायन हो जाते हैं। सूर्य का किसी भी राशि में प्रवेश सूर्य की संक्रांति कहलाती है। सूर्य का संक्रमण काल त्रुटिकाल का हजारवां भाग होता है।
उसकी वास्तविक गणना ब्रह्मा के लिये भी कठिन है ऐसा वृहद योतिषसार का कथन है। इसलिये संक्रांति काल से 16 घड़ी पूर्व तथा 16 घड़ी पश्चात पुण्यकाल कहा जाता है। लेकिन इसी ग्रंथ का कथन है कि कर्क संक्रांति से 30 घड़ी अर्थात 12 घंटे पूर्व से तथा मकर संक्रांति के पश्चात 40 घड़ी अर्थात 16 घंटे तक का पुण्यकाल होता है। दिन में संक्रांति हो तो दिनभर पुण्यकाल होता है। रात्रि में संक्रांति हो तो समीप के दिनार्ध में स्नान दान करना चाहिए। अर्थात सूर्य की संक्रांति का पुण्यकाल सोलह घड़ी होता है। यदि पूर्व रात्रि में संक्रांति लगती है तो पूर्व दिन पुण्यकाल होगा और यदि आधी रात के बाद संक्रांति लगती है तो दूसरे दिन पुण्यकाल होगा।
मुहूर्त चिंतामणी में भी कहा गया संक्रांति काल से पूर्व व पश्चात 16-16 घड़ी पुण्यकाल होता है। मध्य से पूर्व (रात्रि के पूर्वार्ध) में संक्रांति हो तो पूर्व दिन के मध्यान्हनोत्तर में और रात्रि के उत्तरार्ध में संक्रांति हो तो अगले दिन के पूर्वाह्न में पुण्यकाल होता है। यदि ठीक मध्यरात्रि में संक्रांति हो तो पूर्व दिन के उत्तरार्ध व अग्रिम दिन के पूर्वार्ध्द दोनो दिन पुण्यकाल होता है।
गर्ग मतानुसार भी सायं संध्या के बाद और प्रात: संध्या से पूर्व मकर संक्रांति कभी भी हो तो अगले दिन के पूर्व भाग में पुण्यकाल होता है।
यह बात भी सभी को जान लेनी चाहिए कि संक्रांति पर्व का निर्धारण सूर्य की गति पर आधारित है जिसमें सूक्ष्म परिवर्तन संभव है। इस पर्व का निर्धारण ना तो चन्द्रमास से है जो हिन्दी पंचागो में प्रचलित है और ना ही अंग्रेजी केलेण्डर से इसलिये अंग्रेजी तारीख 14 जनवरी या 15 जनवरी का संक्रांति होना केवल सूर्य की गति के कारण है।
यह भी जान लें कि सन् 1950 अर्थात विक्रम संवत 2008 तक मकर संक्रांति 13 जनवरी की हुआ करती थी। शताब्दी पंचांग के अध्ययन से यह भी तथ्य सामने आता है कि प्रत्येक चौथे वर्ष में अर्थात लीपइयर में ही संक्रांति 14 जनवरी की हो जाती थी। सन् 1951 से लगातार संक्रांति 14 जनवरी को ही हो रही थी। तब से प्रत्येक लीप ईयर में संक्रांति 15 जनवरी की होती है। सन 2046 तक यह क्रम इस प्रकार ही चलेगा लेकिन 2047 से संक्रांति, 15 जनवरी की हो होगी यह सूक्ष्मतर परिवर्तन प्रत्येक शताब्दी में होता है और होगा। इस प्रकार प्रत्येक सौ वर्ष में संक्रांति एक दिन आगे हो जाती है। इस प्रकार अगर 2000 साल पीछे जाकर देखें तो 25 दिसम्बर में मकर संक्रांति होती होगी।
इस वर्ष संवत 2064 शाके 1929 सन 2008 में पौष शुक्ल 6 तदुपरांत 7 सप्तमी, सोमवार, उत्तराभाद्र नक्षत्र के बाद रेवती तत्कालिक, परिध के बाद शिव योग तत्कालिक, वणिज करण में स्थानीय समय से रात्रि अंत 6 बजकर 4 मिनिट यानि 15 जनवरी प्रात: 6:04 पर सूर्योदय से 34 मिनिट पूर्व मकर संक्रांति अर्की है। इस प्रकार 15 जनवरी को प्रात: 6.04 बजे से देवताओं का दिनोदय तथा दैत्यों का रात्रि उद्गम, दक्षिणायन, हेमंत ऋतु और धनु संक्रांति की निवृत्ति होगी।
सूर्य उत्तरायण, शिशिर ऋतु तथा मकर संक्रांति प्रवृत्त होगी। अत: दोपहर 12 बजकर 28 मिनिट तक विशेष पुण्यकाल तथा रात्रि 12 बजकर 04 मिनिट तक सामान्य पुण्यकाल रहेगा।