सीहोर 12 जनवरी (आनन्द गाँधी)। जब पूरा देश अंग्रेजों का गुलाम था, सब तरफ अंग्रेजों का शासन था। उस समय 1857 को सीहोर में फौज के भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ 18 वी शताब्दी के महानतम भारतीय क्रांतिकारी महावीर कोठ और वलि शाह के नेतृत्व में सीहोर से अंग्रेजों को मार-मारकर भगा दिया था और उनके पूरे घर जला दिये थे। क्रांतिकारी महावीर कोठ के निर्देशन में क्रांतिकारियों ने पूरे सीहोर के चप्पे-चप्पे को स्वतंत्र कर दिया। जिसमें आष्टा भी सम्मिलित था। उस समय पूरा देश तो गुलाम था लेकिन सीहोर में स्वतंत्रता की खुशी मनाई जा रही थी।
क्रांतिकारी महावीर कोठ ने महावीर कौंसिल स्थापित की जिसके तहत सीहोर कोतवाली में थाना प्रभारी सहित औषधालय से लेकर हर विभाग की स्थापना की गई। महावीर कोठ के कुशल नेतृत्व और आत्मसम्मोहित कर देने वाली नेतृत्व क्षमता के कारण यहाँ 6 माह तक (6 अगस्त 1857 से 14 जनवरी 1858) एक तरह से रामराय की स्थापना रही। लेकिन 6 माह बाद 12 जनवरी 1858 को अंग्रेज अफसर जनरल ह्यूरोज (जिसने महारानी लक्ष्मी बाई झांसी से युध्द किया था) ने बहुत बड़ी सैना को लाकर सीहोर पर हमला कर दिया। भोपाल बेगम उसके साथ थी। अंतत: सारे क्रांतिकारी पकड़ा गये। अंग्रेज अफसर ह्यूरोज ने सबसे कहा कि यदि लिखित माफी मांग लो तो मैं छोड़ दूंगा। उसने डराने के लिये कुछ सैनिको को मार भी दिया लेकिन बहादुर क्रांतिकारियों ने जिनकी संख्या 356 थी ने माफी नहीं मांगी......।
और अंतत: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा काला दिन 14 जनवरी 1858 को सुबह से जनरल ह्यूरोज ने सारे 356 क्रांतिकारियों के सीने पर गोलियाँ चलवाना शुरु कर दी लेकिन इस भारत माता का कोई लाल अंग्रेजों के आगे नहीं झुका और भारत माता की स्वतंत्रता के लिये शहीद हो गया।
क्या हम 14 जनवरी को इन शहीदों की समाधियों पर जाकर श्रध्दांजली-पुष्पांजली भी नहीं चढ़ा सकते हैं.....क्या हम इतने खुदगर्ज हैं....। आईये फुरसत के आव्हान को स्वीकार कर कल सोमवार को दिनभर में कभी भी इन शहीदों को नमन करने, पुष्प चढ़ाने, उन्हे सलाम करने का अपना नैतिक कर्तव्य वहन कीजिये....। इस वीर गाथा के कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम आज उल्लेखित हैं।