Thursday, March 6, 2008

आष्‍टा में प्रतिष्ठा महोत्सव में आज भगवान का च्यवनकल्याणक मनाया

आष्टा 5 मार्च (फुरसत)। मालवा के गिरनार तीर्थ स्वरुप आष्टा तीर्थ में श्री नेमिनाथ श्वेताम्बर जैन किला मंदिर जी में चल रहा भगवान के प्रतिष्ठा एवं अंजल शलाका महोत्सव के आज चौथे दिन महामंगलकारी पंच कल्याणक महोत्सव का शुभारंभ प्रात: 8.30 बजे च्यवन कल्याणक विधान के साथ हुआ।
प्रात: मंदिर में पूय आचार्य देव श्रीमद अजित सेन सू.म.सा. पूय आचार्य देव श्रीमद विजय नयवर्धन सू.म.सा. पन्यास प्रवर पूय श्री हर्ष तिलक विजय जी आदी ठाणा एवं साध्वी मण्डल की निश्रा में इन्द्र इन्द्राणी एवं माता पिता प्रतिष्ठाचार्य धर्माचार्य की स्थापना गुरुपूजन एवं वाराणसी नगरी की महारानी द्वारा देखे चौदस स्वप् दर्शन का धार्मिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। सर्वप्रथम मंदिर जी में विधि-विधान की क्रियाएं हुई।
उसके पश्चात वाराणसी नगरी के स्वरुप के स्टेज पर चौदस स्वप् दर्शन का बड़ा ही सुन्दर एवं आकर्षक कार्यक्रम हुआ। जिसमें महाराजा-महारानी इन्द्र-इन्द्राणी, महामंत्री नगर सेठ, राज योतिष, सेनापति, कोषाध्यक्ष, छडीदार का दरबार सजा इन पात्रों की बोली लेने वाले पात्रों ने शास्त्रों के हिसाब से अपना-अपना किरदार निभाया मंच का शानदार संचालन हितेश भाई ने किया। जिस प्रकार भगवान माता की कुक्षी में पधारे उसके बाद माता ने चौदस स्वप् निंद्रा में देखे और उन स्वप् का जो अर्थ वाराणसी के दरबार के राजयोतिष ने बताया इन सब का सजीव चित्रण मंच के पात्रों ने किया। इसके बाद आज किला मंदिर जी से च्यवन कल्याणक का विशाल वरघोड़ा हाथी, घोड़े, बैण्ड बाजे के साथ नगर में निकला जो नगर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ पुन: मंदिर जी पहुँचा। वरघोड़े में हाथी पर भगवान के माता-पिता बनने की बोली लेने वाले मुम्बई निवासी निलेश भाई एवं उर्वशी बेन भगवान के लिये वरघोड़े में शामिल थे।
वहीं विभिन्न महिला मण्डल की सदस्याएं सिर पर कलश लिये अपनी निर्धारित वेशभूषा में सिर पर कलश लिये शामिल थी। आज वरघोड़े में च्यवन कल्याणक दिवस के अवसर पर श्वेताम्बर समाज के प्रतिष्ठान लगभग बंद रहे। महामंगलकारी पंच कल्याणक दिवस के शुभारंभ के अवसर पर आज म.प्र. के वित्तमंत्री श्री राघवजी भाई की धर्मपत्नि एवं माँ आशापुरा दरबार भोपाल की प्रमुख माता जी गीताबहन जी विशेष रुप से उपस्थित थीं। वरघोड़े में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाएं बड़ी संख्या में शामिल थे। जुलूस का स्थान-स्थान पर रंग बिरंगी पन्नी के कतरने उड़ाकर स्वागत किया गया। वरघोड़े का समापन किला मंदिर जी पर हुआ।