Thursday, January 10, 2008

विवेक की छैनी और संयमरूपी हथौडा जीवन का सही निर्माण करेगा-अवधेशानन्द जी

आष्टा 8 जनवरी (फुरसत)। विवेक की छैनी, संयम का हथौड़ा और सद्गुण की उर्वरा अगर मिल जाऐ तो निर्माण होकर रहेगा। हम जब जीवन के प्रति गंभीर होंगे तब ही जीवन सफल होगा । दीया और बाती प्रकाश नही फैला सकते उसके लिए भी प्रकाश के संसर्ग की आवश्यता होती हैं तब ही उजास होता है । अन्त:करण रूपी मन जब आध्यात्म और भागवत् रूपी प्रकाश के संसर्ग में आयेगा तब मनुष्य जीवन प्रकाश मान होकर रहेगा। े
उक्त प्रेरक उद्गार पूज्य प्रवर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने मां पार्वती की नगरी में भागवत् कथा श्रवण करवाते हुए प्रथम दिन व्यक्त किए । स्वामी जी ने कहा आध्यात्म अर्थात स्वंय की ओर ले जाने, स्वंय को जानने, पहचानने और जागृत करने का नाम है, जो मनुष्य को संचेतन, स्वंय के प्रति जागृत कर इंद्रीय संयम का बल प्रदान करता है। हमारे अंदर ईश्वरीय सत्ता विद्यमान है, वह जागृत नही होती है और इसे जागृत करने के लिए आध्यात्म और भागवत सबसे सरल उपाय है। इसके पूर्व व्यास पीठ का विजेन्द्र कुमार पालीवाल ने सपत्निक पूजन किया, लक्ष्मीनारायण वर्मा, शिरडी के सांसद बी.के.पाटिल आदि ने भी व्यास पीठ का पूजन किया। दीप प्रावलित के बाद स्वामी जी के चरणों में अध्यक्ष ओमप्रकाश सोनी, स्वागत अध्यक्ष प्रेमनारायण गौस्वामी, विजय देशलहरा, ललित अग्रवाल, सुरेश पालीवाल, भवानी शंकर शर्मा, कमलसिंह ठाकूर, ओमप्रकाश गुप्ता, उमेश जैन, राजेन्द्र सिंह, शिवनारायण पटेल, अशोक राठौर, पत्रकार प्रदीप चौहान, नरेन्द्र गंगवाल, ने पुष्प गुच्छ भेट पुष्पांजलि अर्पित की ।
पूज्य स्वामी ने कहा कि पहला साधन सुनने की कला है । निरन्तर सुनने और मनन करने से हमारे अन्तकरण की भूमि योग्य बनती है तब ही हम पात्र बनते है । वासना रूपी जड़ को काटने के लिए सत्संग से बल मिलता है, सत्संग हमें ऊर्जा देता है। संग्रह, संचय हम कितना ही कर ले लेकिन इसमें पूर्णता नही है । जिस तरीके से प्रकृति भी पल-पल परिवर्तनशील है, संसार के पदार्थो में पूर्णता नही है । स्वामी जी ने कहा कि शास्त्र, संत, वेद, पुराण में कहा गया है कि पदार्थ अधूरे है जितने भी चाहे भंडारण कर लो यह जीवन का स्थायी समाधान नही है ।
कथा की शुरूआत भारत मां तेरी जय-जय-जय ..... गीत के साथ करते हुए स्वामी जी ने कहा कि मां पार्वती की आस्था नगरी जहां पर पार्वती का प्रवाह, नर्मदा का नैकटय एवं क्षिप्रा की समीपता है। यह संस्कारित और पावन आस्था नगरी जहां के खेत खलिहानो में हरितिमा, उर्वरा, श्रम की सार्थकता, मानस में निश्छलता और चित्त में धर्म ग्राह्यता ऐसी संपन्न भूमि पर भागवत कथा का आयोजन कर वयोवृद्ध लक्ष्मी नारायण जी नगर के प्रथम नागरिक कैलाश परमार और प्रभु प्रेमियों ने आनन्द विभोर करने वाला कार्य किया है । स्वामी जी ने बीच-बीच में सुमधुर गीतो के माध्यम से भागवत कथा का आकर्षण दुगना कर दिया। कथा श्रवण करने के लिए प्रथम दिन म.प्र. के पूर्व मंत्री व विधायक अजयसिंह पधारे। आष्टा क्षैंत्र के विभिन्न ग्रामों से भी आपार जन समूह ने भी अमृत वचनों को ग्रहण किया।