सीहोर 24 जनवरी (फुरसत)। पशु क्रूरता अधिनियम के तहत आये दिन गाय-बैल से भरे ट्रक पकड़ने वाले पुलिस वालों तथा सामाजिक संगठन पहले यह बतायें कि क्या नगर में चल रही यात्री बसों में यात्रा करने वाले मनुष्य पशुओं से भी गये-बीते हैं। बसों में उन्हे बैठने तो दूर लटकने तक की जगह उपलब्ध नहीं कराई जाती, ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है तो फिर पशुओं की चिंता करने वालों को मनुष्यों की फिक्र क्यों नहीं सताती। क्या यातायात विभाग पहल कर नगर के यात्रियों की दशा सुधारने का काम करना उचित नहीं समझता?
उक्त बात नगर के वरिष्ठ समाजसेवी व सेवा संस्था के संस्थापक नेत्र प्रेरक कमल झंवर ने फुरसत से अपनी बातचीत के दौरान कही। श्री झंवर ने कहा कि नगर में आये दिन पशु क्रूरताओं के मामले देखने-सुनने को मिलते हैं लेकिन देखा गया कि जिन ट्रकों या वाहनों में वह पशु भरे जाते हैं उन्हे कम से कम खड़े रहने की तो जगह मिलती है लेकिन इसके बावजूद भी हर एक पशु से भरे वाहन की जांच पुलिस पूरी मुस्तैदी से करती है कि कहीं कोई मूक पशु के साथ अत्याचार तो नहीं हो रहा ? पुलिस की यह चौकस कार्यप्रणाली तारीफ के काबिल है वह पशु क्रूरता के खिलाफ अपना अभियान जारी रखे इससे कोई गिला शिकवा नहीं है लेकिन नगर में जिस प्रकार मनुष्य के साथ अमानवीय व्यवहार यात्री बस चालकों द्वारा किया जा रहा है उसके खिलाफ भी पुलिस की सक्रियता आवश्यक है।
उल्लेखनीय है कि यहाँ नगर में सीहोर से आष्टा के मध्य चलने वाले वाहनों में अधिकांशत: जितने भी यात्री बैठते हैं उन्हे ठूंस-ठूंस कर ही भरा जाता है। उन्हे सही से बैठने के लिये सीट तक नहीं दी जाती है। महिलाएं भी परेशानी के साथ बैठती हैं। बैठने की सीट पूरी होने के बाद भी दुगनी सवारियाँ इन वाहनों में भरी जाती है। वाहन चालक आगे भी अधिकाधिक सवारी बैठाता है और परिचालक पीछे सीट पूरी होने के बाद कईयों को खड़ा करवा देता है और फिर उसके बाद यात्रियों को लटकवा भी देता है।
इस प्रकार यात्री एक-दूसरे के बीच दबे-सिकुड़े बैठने को और यात्रा करने को मजबूर हो जाते हैं। कईयों की सांस फूल जाती है। कईयों की दशा ही बिगड़ जाती है। जो लटककर जाते हैं उनके जीवन के साथ खिलवाड़ की स्थिति रहती है। कुल मिलाकर पशुओं से यादा अत्याचार यात्री वाहनों में मनुष्यों के साथ हो रहा है और वह भी खुले आम हर दिन हो रहा है।
इसके बावजूद लम्बे समय से यातायात विभाग अपनी सेटिंग के चलते इन वाहन वालों से कभी कुछ नहीं कहता। वाहन चालक जैसे चाहे वैसे अपने वाहनों में यात्रियों को ठूंस-ठूंस कर भरते हैं, अभद्र व्यवहार करते हैं। महिलाओं को खासी परेशानी आती है लेकिन यातायात पुलिस का इसकी तरफ ध्यान नहीं जाता।
यदि कोई यात्री इसका व्यवस्था का विरोध करता है तो वाहन चालक-परिचालक या वाहन मालिक उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं और बात बढ़ने पर नौबत मारपीट तक पहुँच जाती है बल्कि उन्हे बीच रास्ते में भी छोड़ कर उन्हे बेइज्जत करने का क्रम भी यह लोग करने से बाज नहीं आते। आये दिन इस प्रकार की घटनाएं सीहोर से आष्टा के बीच आसानी से देखी जा सकती है।