उक्त उद्गार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांतीय सेवा प्रमुख अनिल ओक ने नेताजी सुभाष चंद्र चौराहे पर आयोजित 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के 150 वर्ष पूर्ण होने पर उसकी स्मृति में आयोजित युवा संगम एवं सुभाष चंद्र बोस प्रतिमा का अनावरण अवसर पर व्यक्त किये । श्री ओक ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज युवा भटक रहा है । जिस युवा को देश भक्ति राष्ट्रभक्ति के गीत तराने गुनगुनाना चाहिये आज वो युवा जब दिल ही टुट गया तो जी कर क्या करे या इस दिल के टूकडे हजार हुए कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा जैसे गीत गुनगुनाता है जबकि देश के नौजवान की आंखो के सामने इस प्रकार का भविष्य तैरना चाहिये की मै क्यों जी रहा हूं इस देश के लिए मैने क्या किया, इस समय के लिए मैने क्या किया और मुझे देश समाज राष्ट्र के लिए क्या करना चाहिये । श्री ओक ने वीर सावरकर जब जेल में थे उस वक्त का संस्मरण सुनाया कि जब सावरकर जेल मे थे । तो उनकी भाभी ने उनसे कहा कि वे माफी मांगकर जैल से बाहर आ जाये वे बाहर आजायेंगे तो बंश आगे बढ़ेगा । तब उन्होंने भाभी को पत्र लिखा था कि जब देश ही नहीं बचेगा तो वंश का क्या काम? उन्होंने कहा कि आज भी देश में ऐसा युवा है जिनके मन में देश के प्रति एवं देश के लिए कुछ करने के भाव रहते हेै । आज यह जो देश टिका है युवाओं एवं अच्छे लोगों के कारण ही टीका है । दृष्टि को दिल्ली और राजनीति से हटाकर देखों कई अच्छे अच्छे कार्य हो रहे है । युवा उसमें लगा है । उन्होंने वृद्ध हो जाने पर गाय को कसाईयों के हाथों बेचने वालो को आड़े हाथों लिया और पूछा कि जब वो दुध देती है तब तो उसे रखते हो और जब दूध देना बंद कर देती है तो उसे कसाईयों के हाथों बेच देते हो । अनिल जी ने कहा कि अब समय आ गया है ताली बजाने से काम नही चलेगा । अब युवाओं को ताल ठोक कर आगे आना होगा । आज युवाओं को संकल्पित होने की आवश्यकता है युवा संगम के इस शुभ अवसर पर हमें कुछ संकल्प लेना चाहिये आज युवा यह निश्चित करे क ी बुरी नीयत से भारत माता की और जो भी आंख उठेगी जो आक्रमण करेगा उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जायेगा। भारत माता के लिए सर्वस अर्पण करने के लिए वो हमेशा तेयार रहेगा । उन्होंने स्वदेशी और विदेशी का मुद्दा भी सामने रखते हुए आव्हान किया की आज से निर्णय करे की हम अपना चौका और बाथरूम विदेशी बस्तुओं से मुक्त रखेगें । केवल स्वदेशी वस्तुओं का ही उपयोग करेंगे। उन्होंने उदाहरण दिया कि जिस प्रकार पत्नि और वैश्या में अंतर होता है बैसा ही अंतर स्वदेशी ओर विदेशी में है । स्वदेशी वस्तुएं पत्नि की तरह होती है । और विदेशी वस्तुएं वैश्या की तरह होती है । श्रीओक ने कहा कि शास्त्रों की रक्षा शस्त्रों से ही होगी निर्वल की रक्षा तो भगवान भी नही करता है । उन्होंने कहा कि गांधी जी की शांति की अंहिसा की बात करते थे। लेकिन उनके आराध्य भगवान श्री राम के हाथों में भी शस्त्र था आज युवा संगम कार्यक्रम में आष्टा एवं ग्राम-ग्राम से आये युवाओं को मंच सें तीन संकल्प दिलवाये आज से अपने-अपने घरो पर सात दिनों तक शहीदों की याद में एक-एक दीपक लगाऊंगा । घर में एक महापुरूष का चित्र अवश्य लगाऊॅगा । अपना बाथरूम एवं रसोईघर स्वदेशी वस्तुओं से ही सजाऊगा । अगर उक्त संकल्प के कारण आज का यह युवा संगम सफल होगा ।
युवा संगम के प्रारंभ में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चन्दनलाल बनबट कन्हैयालाल भूतिया एवं अनिल ओक ने दानदाता महेश मुदड़ा परिवार द्वारा अपने पिता श्री बाबूलाल मुदड़ा की स्मृति में स्थापित की गई नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया । महेश मुदड़ा ने प्रतिमा पर माल्यापर्ण किया। प्रारंभ मे संतोष झंवर, राजू जायसवाल, दीपेश गौतम, गोविंद चौहान, शिव श्रीवादी आदि ने भजन प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का समापन भजन गायक रामनारायण श्रीवादी के वन्दे मातरम् गीत से हुआ। कार्यक्रम का संचालन बाबू देब्वाल ने तथा अंत में आभार सत्येन्द्र सोंलकी, ने व्यक्त किया । कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवा, समाजसेवी, राजनेता, पत्रकार, आदि उपस्थित थे । आज उक्त कार्यक्रम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवं युवा मंच के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया गया था।
ऐसे प्रतिदिन विदेशों को 3 करोड़ जाते है
आष्टा 23 जनवरी (फुरसत)। हम अपने बाथरूम में विदेशी साबुनो का इस्तेमाल करके किस प्रकार विदेशों की आर्थिक सहायता करते है । इसका उदाहरण अनिल ओक ने एक उदाहरण देकर किया उन्होंने बताया कि हम जो लक्स साबुन का इस्तेमाल करते है । वो उसकी लागत कीमत 1 रुपये 30 पैसें की आती है । बाजार में उक्त साबून 10 रुपये में हम लाते है, एक साबून पर उक्त साबून की निर्माता कंपनी 5रु. कमाती है, देश में 6 लाख ग्राम है 60लाख की टिकिया खरीदते है । प्रतिदिन 3 करोड़ रु. कंपनी कमाती है । इस प्रकार हम 3 करोड़ रु रोज साबून के माध्यम से विदेशों को देते है। कल्पना करों कि हम कब कर्ज से आजाद होगे । आज का युवा संगम तभी सफल होगा जब हम विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनायेगे ।