आष्टा 11 जनवरी (फुरसत)। गुरू शिष्य परंपरा सनातन भारतीय संस्कृति का मूल रूप है । गुरू बनाने के बाद स्वयं को समर्पित करना होता है । आज आप सभी ने गुरू दीक्षा ग्रहण कर स्वयं को मेरे लिए समर्पित कर दिया है और मै स्वयं तुम्हारे लिए समर्पित हूं।
उक्त उद्गार पूज्य प्रवर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने गुरूवार सुबह 10 से 11 बजे के मध्य कथा पांडाल गौलोक धाम में करीब 700 से अधिक प्रभु प्रेमियों को गुरू नाम प्रदान करते हुए व्यक्त किए । पांडाल में निर्धारित समयाविधि से पूर्व ही प्रभु प्रेमी भक्त दीक्षा के लिए पहुंचे चुके थे। आज गुरू दीक्षा ग्रहण करने वालों में लम्बे समय से पूज्य स्वामी जी के प्रति समर्पित भाव रखते वाले आष्टा नगर के प्रथम नागरिक कैलाश परमार ने सपत्निक गुरूनाम ग्रहण किया। प्रभु प्रेमी संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश सोनी, स्वागत अध्यक्ष प्रेमनारायण गौस्वामी, द्वारका सोनी, रमेश चंद्र सेठिया, पुनीत संचेती, मांगीलाल साहू आदि ने करीब 700 से अधिक शिष्यों के साथ गुरू दीक्षा ग्रहण की। शिमला से भी गुरू भक्त गुरू नाम धारण करने आये । स्वामी जी ने शिष्यों को गुरू मंत्रउ देते हुए कहा कि इस मंत्र की बड़ी महत्ता है जो गुरू नाम मैं आपको दे रहा हूं इसमें 5 देवताओं का वास है । जिसमें प्रथम गणेश देवता, दुर्गा जी, शंकर जी, दत्तात्रय और हनुमान जी हैं जिनका आप नित्य ध्यान करें एवं हमेशा प्रभु नाम का स्मरण करते रहे। स्वामी जी ने शिष्यों को गुरू नाम देने के बाद एक हिदायत भी दी कि गुरूनाम लेने के बाद ऐसा नहीं कि आप छोटे-छोटे संकट के समय सन्यास का नाम ध्यान कर आश्रम की ओर रूख कर दें। घर परिवार से रूठकर किसी भी कीमत पर आश्रम न आऐं। ऐसा करने से आश्रम परिवार व स्वंय का परिवार चिंतित रहता हैं। आप गुरू नाम का नित्य ध्यान करें । आपको वर्ष में दो बार हमारे द्वारा भेजे गये पत्र आपके लिखे पते पर मिलेंगें। आपके शहर में प्रमु प्रेमी संघ द्वारा आयोजित कीर्तन भजन में आप शामिल हों और प्रभु का नाम सार्थक करें । आज गुरूनाम लेने से वंचित रह गये श्रद्धालुओं को स्वामी जी ने अगला अवसर देने को वचन दिया है । विदित हो कि आज आसपास से विलम्ब से पहुंचे अनेक भक्त गुरूनाम लेने से वंचित रह गये ।